इंदौर। मध्यप्रदेश के सारे पब्लिक ट्रस्ट और सामाजिक संस्थाएं भारतीय पब्लिक ट्रस्ट एक्ट और मध्य प्रदेश के रजिस्ट्रार पब्लिक ट्रस्ट के अधीन पंजीकृत हैं. लेकिन इंदौर की एकमात्र खासगी अहिल्या बाई होलकर चैरिटेबल ट्रस्ट का मामला थोड़ा अलग है. यह एक ऐसी संस्था है, जिस पर मध्य प्रदेश के पब्लिक ट्रस्ट एक्ट के कानून लागू ही नहीं होते. खासगी को लेकर ये बड़ा खुलासा भी खुद खासगी ट्रस्ट ने किया है.
भारतीय पब्लिक ट्रस्ट एक्ट के अधिनियम 36-A को लेकर खासगी ट्रस्ट के विधान में संशोधन होने की बात सामने आई. कहा जा रहा है कि इसके बाद ये ट्रस्ट इंडियन पब्लिक ट्रस्ट एक्ट के अधीन नहीं रह गया. इसके अलावा मध्य प्रदेश पब्लिक ट्रस्ट एक्ट को लेकर भी तत्कालीन मुख्य सचिव ने विधि विभाग से परामर्श लेकर स्पष्ट किया था कि खासगी ट्रस्ट पर मध्य प्रदेश पब्लिक ट्रस्ट एक्ट लागू नहीं होता. जिन संस्थाओं पर ये नियम लागू हैं, उन्हें संपत्तियां बेचने के लिए राजस्थान पब्लिक ट्रस्ट से अनुमति लेनी होती है. ऐसे में खासगी ट्रस्ट के राज्य में दो नामित सदस्यों और केंद्र के एक नामित ट्रस्टी की अन्य ट्रस्टीज के साथ सर्व सम्मति के बाद संपत्तियां बेची गईं. हालांकि संपत्तियों को बेचने के विरोध में आई अनापत्ति के बाद इंदौर हाई कोर्ट ने आदेश जारी किया और ट्रस्ट ने खुद संपत्तियों को बेचने पर रोक लगा दी. ट्रस्ट की माने तो जो भी संपत्तियां पहले बेंची गई हैं, उनसे हासिल राशि ट्रस्ट के ही खाते में आई है. जिसे ट्रस्ट आवश्यकतानुसार खर्च करता है.
ऐसे अस्तित्व में आया खासगी ट्रस्ट
1734 में मध्य भारत राज्य बनने से पहले होलकर राजघराने के सूबेदार मल्हार राव होलकर ने देशभर में फैले अहिल्याबाई होलकर के मंदिरों और धार्मिक विरासत के रखरखाव के लिए तत्कालीन पेशवा से व्यवस्था बनाने का अनुरोध किया था. इसके बाद होलकर राजघराने में राज्य की संपत्तियों के रखरखाव के लिए दौलत और खासगी नामक दो विभाग अस्तित्व में आए. दौलत विभाग राज्य के प्रशासनिक तंत्र एवं अन्य व्यवस्थाओं के अधीन था, जबकि खासगी विभाग राजाओं की रानियों के आधिपत्य में संचालित किया जाता था. खासगी विभाग की संपत्तियां राजा के परिवार की निजी संपत्तियां मानी जाती थीं. जिनकी मुखिया रानियां होती थीं. 1948 में जब रियासतों का मध्य भारत राज्य में विलीनीकरण हुआ तो होलकर राज्य के तत्कालीन शासक यशवंत राव होल्कर ने केंद्र और राज्य शासन से देश के 28 स्थानों पर स्थापित किए गए, 246 मंदिरों, घाट और धर्मशालाओं के सुचारू संचालन की व्यवस्था स्थापित करने की मांग की.
1962 में बना खासगी ट्रस्ट
इसके बाद 1962 में तय हुआ कि होलकर राज घराने से संबंधित मंदिरों और अन्य धार्मिक क्रियाकलापों के लिए एक ट्रस्ट बनाया जाए, जिसका नाम खासगी देवी अहिल्याबाई होल्कर चैरिटेबल ट्रस्ट रखा गया. इस ट्रस्ट की पहली ट्रस्टी महारानी उषा राजे होलकर बनीं, इसके बाद उनके द्वारा नामित प्रतिनिधि में उनके पति सतीश मल्होत्रा और रंजीत होलकर चुने गए. इसके अलावा राज्य शासन की ओर से दो शासकीय प्रतिनिधि नामित किए गए, जिनमें तत्कालीन संभागायुक्त बी.जे. हिरजी, तत्कालीन मुख्य सचिव पीएन श्रीवास्तव शामिल थे.
हरिद्वार में संपत्ति की बिक्री से गरमाया मामला-
खासगी ट्रस्ट के मुताबिक विलीनीकरण के बाद मध्यप्रदेश शासन की ओर से ट्रस्ट को 2 लाख 98 हजार रुपए के राजस्व की राशि ट्रस्ट की गतिविधियां संचालित करने के लिए प्रदान की जाती थी. शेष राशि की व्यवस्था महारानी उषा होलकर और उनके पति सतीश मल्होत्रा द्वारा की जाती थी. ट्रस्ट के मुताबिक इसी दौरान ट्रस्ट की आर्थिक स्थिति बिगड़ी तो खासगी ट्रस्ट द्वारा 6 अलग-अलग संपत्तियां कालांतर में बेची गईं. इन संपत्तियों को बेचने के लिए ट्रस्ट के सभी पदाधिकारियों ने एकत्रित होकर स्वीकृति दी थी.
EOW करेगा मामले की जांच-
खासगी ट्रस्ट मामले में सरकार द्वारा जांच करने के लिए टीम का गठन कर दिया गया है. इस टीम में 2 एसपी सहित 39 सदस्यों को शामिल किया गया है. खासगी ट्रस्ट मामले में सीएम शिवराज ने उच्च स्तरीय बैठक ली थी और तत्काल ही इस मामले की जांच करने का जिम्मा ईओडब्ल्यू को दिया था. इसी कड़ी में डीएसपी के नेतृत्व में मणिबाग रोड स्थित ट्रस्ट के दफ्तर पर एक टीम पहुंची और वहां पर ट्रस्ट के बारे में जानकारी ली. वहीं टीम ने ट्रस्ट के बारे में भी कर्मचारियों से पूछताछ की. कर्मचारियों ने बताया कि रिचर्ड होलकर के बेटे यशवंत होलकर एक ट्रस्टी हैं जो इस समय मुंबई में हैं. एक अन्य ट्रस्टी नीरव भटनागर हैं जो ओमेक्स सिटी टाउनशिप में रहते हैं।