नर्मदापुरम। जिले में रेत खदानें बंद होने से करीब दो सालों से मजदूरों पर और उनके परिवार पर रोजी रोटी का संकट छाया है. काम नहीं मिलने से मजदूरों ने दूसरे प्रदेशों में पलायन शुरू कर दिया है. यहां तक कि इसका असर यह हुआ है कि, घर की महिलाओं को खेतों में मजदूरी करने जाना पड़ रहा है. कुछ किसानों ने डंगरवाड़ी लगाकर परिवार का पालन पोषण करना शुरू किया. लेकिन मौसम की मार ने भी इन्हें नहीं छोड़ा, उन्हें खेती में भी नुकसान हुआ है. किसानों का कहना है कि जल्द से जल्द रेत खदानों के ठेके हों, ताकि उन्हें बेरोजगारी से निजात मिल सके और अपने परिवार का भरण पोषण कर सकें.
रोजगान गया, बच्चों की छूट गई पढ़ाई: गांव के सतीश बाबरिया ने बताया कि मजदूर परेशान हैं, क्योंकि कुछ सालों से रेत की खदाने बंद हैं. अभी इतनी ज्यादा दिक्कतें होती हैं कि गांव में रोजगार ना होने के कारण बच्चों की पढ़ाई भी नहीं हो पा रही हैं और भी बहुत सारी कई समस्याएं हैं. शहर के लोग तो आगे बढ़ते जा रहे हैं, गांव में बेरोजगारी के कारण आदमी पीछे हो गया है. गांव में कम से कम 2 से 3 हजार मजदूर हैं. रेत खदानों में बाहर के लोग भी यहां पर आकर रोजगार करते थे, रेत खदान चालू थीं तो वह लोग भी यहां से कमाई कर लेते थे. सरकार से यही चाहते हैं कि ठेके पर देकर जल्द से जल्द रेत खदान चालू करें, जिससे रोजगार मिल सके.
महिलाओं को करना पड़ रही मजदूरी: रेत से जुड़े हुए काम करने वाले सुनील पासी बताते है कि हमारे यहां बहुत समस्या है. 20 साल से हम रेत खदान पर मजदूरी करते थे, अब वह सब बंद पड़ी हैं. अभी स्थिति यह है कि लोग घर बैठे हुए हैं, हफ्ते में एक दिन काम मिलता है, तो कर लेते हैं. बाकी दिन काम मिल नहीं रहा है. रेत खदानें बंद होने के चलते गांव की महिलाएं भी खेतों में मजदूरी करने के लिए जा रही हैं, तब जाकर घर का पालन पोषण हो रहा है. डंगरवाड़ी में मजदूर सब्जी बेचने के लिए बाहर भेज रहे हैं, लेकिन सब्जी भाजी का रेट भी नहीं मिल रहा है. रेत के काम में 15 से 16 हजार महीना कमा लिया करते थे. परिवार अच्छे से पाल लेते थे. हमारी एक ही मांग है कि जल्द से जल्द खदानें चालू हो जाए, ताकि सारे मजदूरों को काम मिल जाए, रोजगार अच्छे से मिले और घर परिवार अच्छे से चल जाए.
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रेत खदानें चालू करने की मांग: गांव के धनराज बावरिया बताते हैं कि गांव में खदान को लेकर बहुत समस्या आ रही है. जब से रेत खदान बंद हुई है यहां के मजदूरों की स्थिति बहुत खराब हो गई है. रोटी तो मिल रही है, लेकिन रहने को मकान नहीं मिल पा रहा है. ना ही बच्चों की पढ़ाई हो पा रही है. जो मजदूरी का काम करते थे आज वह घर पर बैठे हुए हैं. कुछ नागपुर काम करने चले गए, कुछ की पत्नियां खेतों में काम करने को मजबूर हैं. रेत खदाने जब चलती थी तो 15 से 16 हजार महीना कमा लिया करते थे. अच्छा खासा जीवन चल जाता था. एक एक टोली में 15 से 16 मजदूर हुआ करते थे. एक एक खदान में करीब 500 से 600 मजदूर काम किया करते थे. पूरे जिले में 7 से 8 हजार मजदूर काम करते हैं. आज उनकी स्थिति बहुत खराब हो गई है. शासन से हमारा निवेदन है रेत खदान सुचारू रूप से चालू हो जाए सभी मजदूरों को काम मिलेगा.