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International Tiger Day: इंसानी दखल कम हुआ तो बेबाक हुए बाघ, 47 गांवों में घूम रहें हैं बिंदास - विश्व बाघ दिवस

बाघों को बसाना आम सी बात नहीं. बिंदास बसाहट के लिए विस्थापन का दर्द सहना भी जरूरी था. सो गांव की बड़ी आबादी को शिफ्ट कराया गया ताकि सतपुड़ा के जंगल बाघों की दहाड़ से गूंज उठे. असर दिख भी रहा है. जहां पर गांव थे शायद वहां बेलौस टहलने घूमने में इन्हें ज्यादा मजा आ रहा है. रिजर्व प्रबंधन के मुताबिक ऐसी जगहों पर 50 से ज्यादा टाइगर्स दिख जाते हैं.

International Tiger Day 2021
विश्व बाघ दिवस 2021
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Published : Jul 29, 2021, 10:39 AM IST

Updated : Jul 29, 2021, 2:20 PM IST

होशंगाबाद। सतपुड़ा टाइगर रिजर्व के जंगलों में दिख रहे 50 में से अधिकांश बाघ ऐसे स्थानों पर दिखाई दे रहे हैं जहां पहले गांव आबाद हुआ करते थे. ऐसे उजाड़ हुए गांवों में बाघों को अपना मनपसंद भोजन शिकार करने के लिए भी खूब मिल रहा है. यही कारण है कि रिजर्व के टाइगर मूवमेंट रिकॉर्ड में 22 से ज्यादा बाघ प्रत्यक्ष देखने की जानकारी शामिल की गई है.रिजर्व के कोर जोन क्षेत्र में पिछले दस सालों में 47 वन ग्रामों को विस्थापित किया गया है. जिससे जंगल के अंदर बहुत बड़ा खाली मैदान जंगली जानवरों को खाली मिल गया है.

इंसानी दखल कम हुआ तो बेबाक हुए बाघ

MP में बढ़ रहा बाघों का कुनबा, 2 साल में बढ़े 100 टाइगर

वन्यप्राणियों की बढ़ी संख्या

ग्रास लैंड विकसित होनेेे के कारण यह क्षेत्र बड़ी संख्या में शाकाहारी वन्यप्राणियों का रहवास बन गया है. अपनी पसंद का शिकार मिलने के कारण बाघों ने भी यहां स्थाई डेरा डाल लिया है. सतपुड़ा टाइगर रिजर्व में लगातार बाघों की संख्या बढ़ाने के लिए कई प्रयोग किए जा रहे हैं. यहां बांधवगढ़, पन्ना, कान्हा आदि टाइगर रिजर्व से बाघों को विस्थापित किया जा रहा है. इसके अलावा पेंच टाइगर रिजर्व से चार सालों में 1100 चीतल सतपुड़ा टाइगर रिजर्व में छोड़े गए हैं.

बाड़े में बंद बारहसिंघा को भी खुले जंगल में छोड़ा गया है, जिससे इनकी संख्या में भी इजाफा हुआ है. इसके अलावा पेयजल के स्रोत और सुरक्षा के बंदोबस्त भी यहां बढ़ाए गए हैं. जिससे बाघों के साथ तेंदुआ, भालू, जंगली कुत्ते सहित अन्य मांसाहारी जानवरों की संख्या भी बढ़ी है. अब पिछले कुछ सालों से मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भी यहां भ्रमण कर बाघों की सुरक्षा और पर्यटन को बढ़ावा देनेे के लिए कई योजनाओंं को लागू करा रहे हैं.

विस्थापित गांवों में मिला खुला मैदान
प्रोजैक्ट टाइगर के तहत सतपुड़ा टाइगर रिजर्व के घने जंगलों से 47 गांव को शहरी क्षेत्र के पास स्थापित किया गया है. जंगल के प्रत्येक गांव में 150 से 500 वनवासी निवास करते थे. अब खाली मैदानों में करीब 85 प्रकार की घास लगाकर बड़े ग्रास लैंड विकसित किए गए हैं. स्वादिष्ट और पौष्टिक घास के कारण धीरेेेे-धीरे शाकाहारी वन्यप्राणियों ने इन खाली गांव को अपना बसेरा बना लिया. इन्हीं के पीछे मांसाहारी वन्यप्राणी आने लगे. स्थिति यह हैै कि खाली गांवों में 100 से 150 वन्यप्राणियों के झुंड हमेशा देखने को मिल जाते हैं.

खाली गांवों में इनका डेरा
बाघ, तेंदुआ, भालू, जंगली कुत्ते, सांभर, लोमड़ी, चीतल, नीलगाय, बारहसिंघा, भेंडकी, बायसन, दुर्लभ उल्लू, उड़ने वाली गिलहरी, बड़ी लाल गिलहरी, पैंगोलिन, लकड़बग्घा, जंगली शूकर, गदरीछ, दुर्लभ सांप सहित कई वन्य प्राणी यहां देखने को मिलते हैं.

बाघों की संख्या के लिए उठाए और भी कदम
सतपुड़ा टाइगर रिजर्व के संचालक एल कृष्णमूर्ति बताते हैं कि बाघ सहित अन्य वन्य प्राणियों की संख्या बढ़ाने के लिए रिजर्व में कई प्रयोग किए जा रहे हैं. गांव खाली कराने से लेकर बाघ, चीतल का विस्थापन भी किया जा रहा है. इसके अलावा खाली मैदानों में ग्रास लैंड विकसित किए जा रहे हैं. आगे भी कई नए प्रयोग किए जाएंगे जिससे कि बाघों की संख्या यहां बढ़े. उन्होंने बताया कि वर्तमान में करीब 50 बाघ टाइगर रिजर्व में देखे जा रहे हैं. बाहरी क्षेत्रों में भी टाइगर आम लोगों को दिख रहे हैं. उनकी सुरक्षा को लेकर भी प्रबंधन काम कर रहा है.

अर्थ नेटवेस्ट ग्रुप का अर्थ हीरोज पुरस्कार
प्रकृति संरक्षण के क्षेत्र में सतपुड़ा टाइगर रिजर्व को सर्वश्रेष्ठ प्रबंधन के लिये अर्थ गार्जियन श्रेणी में नेटवेस्ट ग्रुप अर्थ हीरोज का पुरस्कार मिला है. सतपुड़ा टाइगर रिजर्व को विश्व धरोहर की संभावित सूची में भी शामिल किया गया है. इस उपलब्धि पर वन मंत्री डॉ. कुंवर विजय शाह ने सतपुड़ा टाइगर रिजर्व प्रबंधन से जुड़े अमले को बधाई दी है. जिले में सतपुड़ा टाइगर रिजर्व 2130 वर्ग किलोमीटर में फैला क्षेत्र है. यह डेक्कन बायो-जियोग्राफिक क्षेत्र का हिस्सा है. अभूतपूर्व प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर यह देश की प्राचीनतम वन संपदा है, जो बड़ी मेहनत से संजोकर रखी गई है.

हिमालय क्षेत्र में पाई जाने वाली वनस्पतियों में 26 प्रजातियाँ और नीलगिरि के वनों में पाई जाने वाली 42 प्रजातियाँ सतपुड़ा वन क्षेत्र में भी भरपूर पाई जाती हैं. इसलिये विशाल पश्चिमी घाट की तरह इसे उत्तरी घाट का नाम भी दिया गया है. कुछ प्रजातियाँ जैसे कीटभक्षी घटपर्णी, बाँस, हिसालू, दारूहल्दी सतपुड़ा और हिमालय दोनों जगह मिलती हैं. इसी तरह पश्चिमी घाट और सतपुड़ा दोनों जगह जो प्रजातियाँ मिलती हैं, उनमें लाल चंदन मुख्य हैं. सिनकोना का पौधा, जिससे मलेरिया की दवा कुनैन बनती है, यहाँ बड़े संकुल में मिलता है.


ईको-सिस्टम की आत्मा हैं सतपुड़ा के जंगल
सतपुड़ा टाइगर रिजर्व को भारत के मध्य क्षेत्र के ईको-सिस्टम की आत्मा कहा जाता है. यहाँ अकाई वट, जंगली चमेली जैसी वनस्पतियाँ हैं, जो अन्यत्र नहीं मिलती. बाघों की उपस्थिति और उनके प्रजनन क्षेत्र के रूप में सतपुड़ा नेशनल पार्क की अच्छी-खासी प्रसिद्धि है. बाघों की अच्छी उपस्थिति वाले मध्यभारत के क्षेत्रों में से एक है. संरक्षित क्षेत्रों के भीतरी प्रबंधन के मान से सतपुड़ा टाइगर रिजर्व अपने आप में देश का सर्वश्रेष्ठ उदाहरण है. देश के बाघों की संख्या का 17 प्रतिशत और बाघ रहवास का 12 प्रतिशत क्षेत्र सतपुड़ा में ही आता है. यह देश का सर्वाधिक समृद्ध जैव विविधता वाला क्षेत्र है.

क्यों मानते हैं 'विश्व बाघ दिवस'...?
बाघ संरक्षण के प्रति जागरूकता बढ़ाने के लिए 29 जुलाई को 'विश्व बाघ दिवस' यानी 'अंतर्राष्ट्रीय बाघ दिवस' मनाया जाता है. इस दिन बाघों के प्राकृतिक आवासों की सुरक्षा और बाघ संरक्षण के मुद्दों पर लोगों को जागरुक किया जाता है. जानकारी के अनुसार वर्ष 2010 में रूस के सेंट पीटर्सबर्ग में हुए बाघ सम्मेलन में 29 जुलाई को अंतर्राष्ट्रीय बाघ दिवस मनाने का निर्णय लिया. इस सम्मेलन में 13 देशों ने भाग लिया था और उन्होंने 2022 तक बाघों की संख्या में दोगुनी बढ़ोत्तरी का लक्ष्य रखा था.

होशंगाबाद। सतपुड़ा टाइगर रिजर्व के जंगलों में दिख रहे 50 में से अधिकांश बाघ ऐसे स्थानों पर दिखाई दे रहे हैं जहां पहले गांव आबाद हुआ करते थे. ऐसे उजाड़ हुए गांवों में बाघों को अपना मनपसंद भोजन शिकार करने के लिए भी खूब मिल रहा है. यही कारण है कि रिजर्व के टाइगर मूवमेंट रिकॉर्ड में 22 से ज्यादा बाघ प्रत्यक्ष देखने की जानकारी शामिल की गई है.रिजर्व के कोर जोन क्षेत्र में पिछले दस सालों में 47 वन ग्रामों को विस्थापित किया गया है. जिससे जंगल के अंदर बहुत बड़ा खाली मैदान जंगली जानवरों को खाली मिल गया है.

इंसानी दखल कम हुआ तो बेबाक हुए बाघ

MP में बढ़ रहा बाघों का कुनबा, 2 साल में बढ़े 100 टाइगर

वन्यप्राणियों की बढ़ी संख्या

ग्रास लैंड विकसित होनेेे के कारण यह क्षेत्र बड़ी संख्या में शाकाहारी वन्यप्राणियों का रहवास बन गया है. अपनी पसंद का शिकार मिलने के कारण बाघों ने भी यहां स्थाई डेरा डाल लिया है. सतपुड़ा टाइगर रिजर्व में लगातार बाघों की संख्या बढ़ाने के लिए कई प्रयोग किए जा रहे हैं. यहां बांधवगढ़, पन्ना, कान्हा आदि टाइगर रिजर्व से बाघों को विस्थापित किया जा रहा है. इसके अलावा पेंच टाइगर रिजर्व से चार सालों में 1100 चीतल सतपुड़ा टाइगर रिजर्व में छोड़े गए हैं.

बाड़े में बंद बारहसिंघा को भी खुले जंगल में छोड़ा गया है, जिससे इनकी संख्या में भी इजाफा हुआ है. इसके अलावा पेयजल के स्रोत और सुरक्षा के बंदोबस्त भी यहां बढ़ाए गए हैं. जिससे बाघों के साथ तेंदुआ, भालू, जंगली कुत्ते सहित अन्य मांसाहारी जानवरों की संख्या भी बढ़ी है. अब पिछले कुछ सालों से मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भी यहां भ्रमण कर बाघों की सुरक्षा और पर्यटन को बढ़ावा देनेे के लिए कई योजनाओंं को लागू करा रहे हैं.

विस्थापित गांवों में मिला खुला मैदान
प्रोजैक्ट टाइगर के तहत सतपुड़ा टाइगर रिजर्व के घने जंगलों से 47 गांव को शहरी क्षेत्र के पास स्थापित किया गया है. जंगल के प्रत्येक गांव में 150 से 500 वनवासी निवास करते थे. अब खाली मैदानों में करीब 85 प्रकार की घास लगाकर बड़े ग्रास लैंड विकसित किए गए हैं. स्वादिष्ट और पौष्टिक घास के कारण धीरेेेे-धीरे शाकाहारी वन्यप्राणियों ने इन खाली गांव को अपना बसेरा बना लिया. इन्हीं के पीछे मांसाहारी वन्यप्राणी आने लगे. स्थिति यह हैै कि खाली गांवों में 100 से 150 वन्यप्राणियों के झुंड हमेशा देखने को मिल जाते हैं.

खाली गांवों में इनका डेरा
बाघ, तेंदुआ, भालू, जंगली कुत्ते, सांभर, लोमड़ी, चीतल, नीलगाय, बारहसिंघा, भेंडकी, बायसन, दुर्लभ उल्लू, उड़ने वाली गिलहरी, बड़ी लाल गिलहरी, पैंगोलिन, लकड़बग्घा, जंगली शूकर, गदरीछ, दुर्लभ सांप सहित कई वन्य प्राणी यहां देखने को मिलते हैं.

बाघों की संख्या के लिए उठाए और भी कदम
सतपुड़ा टाइगर रिजर्व के संचालक एल कृष्णमूर्ति बताते हैं कि बाघ सहित अन्य वन्य प्राणियों की संख्या बढ़ाने के लिए रिजर्व में कई प्रयोग किए जा रहे हैं. गांव खाली कराने से लेकर बाघ, चीतल का विस्थापन भी किया जा रहा है. इसके अलावा खाली मैदानों में ग्रास लैंड विकसित किए जा रहे हैं. आगे भी कई नए प्रयोग किए जाएंगे जिससे कि बाघों की संख्या यहां बढ़े. उन्होंने बताया कि वर्तमान में करीब 50 बाघ टाइगर रिजर्व में देखे जा रहे हैं. बाहरी क्षेत्रों में भी टाइगर आम लोगों को दिख रहे हैं. उनकी सुरक्षा को लेकर भी प्रबंधन काम कर रहा है.

अर्थ नेटवेस्ट ग्रुप का अर्थ हीरोज पुरस्कार
प्रकृति संरक्षण के क्षेत्र में सतपुड़ा टाइगर रिजर्व को सर्वश्रेष्ठ प्रबंधन के लिये अर्थ गार्जियन श्रेणी में नेटवेस्ट ग्रुप अर्थ हीरोज का पुरस्कार मिला है. सतपुड़ा टाइगर रिजर्व को विश्व धरोहर की संभावित सूची में भी शामिल किया गया है. इस उपलब्धि पर वन मंत्री डॉ. कुंवर विजय शाह ने सतपुड़ा टाइगर रिजर्व प्रबंधन से जुड़े अमले को बधाई दी है. जिले में सतपुड़ा टाइगर रिजर्व 2130 वर्ग किलोमीटर में फैला क्षेत्र है. यह डेक्कन बायो-जियोग्राफिक क्षेत्र का हिस्सा है. अभूतपूर्व प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर यह देश की प्राचीनतम वन संपदा है, जो बड़ी मेहनत से संजोकर रखी गई है.

हिमालय क्षेत्र में पाई जाने वाली वनस्पतियों में 26 प्रजातियाँ और नीलगिरि के वनों में पाई जाने वाली 42 प्रजातियाँ सतपुड़ा वन क्षेत्र में भी भरपूर पाई जाती हैं. इसलिये विशाल पश्चिमी घाट की तरह इसे उत्तरी घाट का नाम भी दिया गया है. कुछ प्रजातियाँ जैसे कीटभक्षी घटपर्णी, बाँस, हिसालू, दारूहल्दी सतपुड़ा और हिमालय दोनों जगह मिलती हैं. इसी तरह पश्चिमी घाट और सतपुड़ा दोनों जगह जो प्रजातियाँ मिलती हैं, उनमें लाल चंदन मुख्य हैं. सिनकोना का पौधा, जिससे मलेरिया की दवा कुनैन बनती है, यहाँ बड़े संकुल में मिलता है.


ईको-सिस्टम की आत्मा हैं सतपुड़ा के जंगल
सतपुड़ा टाइगर रिजर्व को भारत के मध्य क्षेत्र के ईको-सिस्टम की आत्मा कहा जाता है. यहाँ अकाई वट, जंगली चमेली जैसी वनस्पतियाँ हैं, जो अन्यत्र नहीं मिलती. बाघों की उपस्थिति और उनके प्रजनन क्षेत्र के रूप में सतपुड़ा नेशनल पार्क की अच्छी-खासी प्रसिद्धि है. बाघों की अच्छी उपस्थिति वाले मध्यभारत के क्षेत्रों में से एक है. संरक्षित क्षेत्रों के भीतरी प्रबंधन के मान से सतपुड़ा टाइगर रिजर्व अपने आप में देश का सर्वश्रेष्ठ उदाहरण है. देश के बाघों की संख्या का 17 प्रतिशत और बाघ रहवास का 12 प्रतिशत क्षेत्र सतपुड़ा में ही आता है. यह देश का सर्वाधिक समृद्ध जैव विविधता वाला क्षेत्र है.

क्यों मानते हैं 'विश्व बाघ दिवस'...?
बाघ संरक्षण के प्रति जागरूकता बढ़ाने के लिए 29 जुलाई को 'विश्व बाघ दिवस' यानी 'अंतर्राष्ट्रीय बाघ दिवस' मनाया जाता है. इस दिन बाघों के प्राकृतिक आवासों की सुरक्षा और बाघ संरक्षण के मुद्दों पर लोगों को जागरुक किया जाता है. जानकारी के अनुसार वर्ष 2010 में रूस के सेंट पीटर्सबर्ग में हुए बाघ सम्मेलन में 29 जुलाई को अंतर्राष्ट्रीय बाघ दिवस मनाने का निर्णय लिया. इस सम्मेलन में 13 देशों ने भाग लिया था और उन्होंने 2022 तक बाघों की संख्या में दोगुनी बढ़ोत्तरी का लक्ष्य रखा था.

Last Updated : Jul 29, 2021, 2:20 PM IST
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