होशंगाबाद। मध्यप्रदेश में हाल ही आयोजित किसान सम्मेलन का आयोजन किया गया था. जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) ने होशंगाबाद के पिपरिया अनुमंडल में कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग (Contract farming) का उदाहरण दिया था और इसे सफलतम प्रयोग के रूप में प्रस्तुत भी किया गया था. साथ ही पिपरिया मॉडल को नए कृषि कानूनों से भी जोड़ा गया. जिसमें ये जताने की कोशिश की गई कि नए कृषि कानून किसानों का भला करेंगे. लेकिन इन तमाम दावों की हकीकत कुछ और ही है...
धीरे-धीरे बदलीं परिस्थितियां...
पिपरिया के गड़ाघाट गांव के किसानों ने फॉर्चून कंपनी से अनुबंध किया था. अनुबंध के हिसाब से धान की खेती की गई. चार साल तक तो मामला सही चला. लेकिन उसके बाद तो स्थितियां ही बदल गईं.
जो तय हुआ वो नहीं मिला
किसानों ने बताया कि इस साल जो कॉन्ट्रैक्ट था उसके हिसाब से तय हुआ था कि जो बाजार भाव होगा, उससे 50 रुपए प्रति क्विंटल ज्यादा लेंगे. जब तक धान का बाजार भाव कम था, तो सब ठीक-ठाक चलता रहा, लेकिन जैसे ही धान का रेट 2,950 रूपए प्रति क्विंटल हुआ, तो फॉर्चून के अलावा जितनी कंपनियां थीं, सभी ने खरीद करने से मना कर दिया. अब तरह-तरह के बहाने बनाए जा रहे हैं.
किसान ने सुनाई आपबीती...
गड़ाघाट गांव के किसान ब्रजेश पटेल ने बताया कि उन्होंने भी फॉर्चून कंपनी (Fortune Company) से अनुबंध किया था. 20 एकड़ में धान लगाया था. फसल तैयार हो गई तो कंपनी ने धान उठाने से मना कर दिया. कहा जा रहा है कि धान में हैक्सा ( एक प्रकार का कीटनाशक) की मात्रा आ गई है. दो बार लैब टेस्ट करवाया, लेकिन एक बार भी रिपोर्ट नहीं दी. अब रिपोर्ट देने के बदले 8,000 रुपये मांगे जा रहे हैं. ब्रजेश पूसा-वन क्वॉलिटी का धान उगाते है. ब्रजेश का कहना है कि कंपनी बहाने बना रही है. अब कभी इस तरह का कॉन्ट्रैक्ट नहीं करेंगे. मंडी में उपज बेचेंगे.
ये गेम देखिए...
फॉर्चून कंपनी का कहना है की हम जो सैंपल फेल करते है, उसकी रिपोर्ट डीलर को लिखित देते हैं. अब सवाल है कि डीलर कौन है..? तो इनका नाम है आशीष सोडानी. जिनकी पिपरिया में ही खाद-बीज की एग्रो सर्विस सेंटर के नाम से बड़ी दुकान है. आशीष का कहना है कि किसान सीधे कम्पनी से सेम्पल फेल होने की रिपोर्ट ले सकता है. यहीं पेंच फंस गया... क्योंकि किसानो का कहना है की जब अनुबंध में डीलर का नाम साफ-साफ लिखा है, तो हम कम्पनी से कैसे बात कर सकते हैं. अब डीलर का काम निकल गया. तो धान खरीदने में आना-कानी हो रही है. आशीष खुद को कंपनी और किसानों के बीच की एक कड़ी मात्र बता रहे हैं.
दूसरे कंपनियों का भी यही हाल
ये हाल सिर्फ एक कंपनी नहीं अन्य कंपनियों का भी है. पिपरिया के ही एक किसान ने दूसरी कंपनी वीटी के साथ अनुबंध किया था. अब वो भी परेशान हैं. दूसरे किसानों की भी यही कहानी है. कंपनियों की तरफ से मिले धोखे पर किसानों ने सबक लिया है. उनका कहना है कि उन्हें इस तरह के कॉन्ट्रैक्ट में फंसना ही नहीं है.
नए कानून के तहत भी किसानों को नहीं मिल रही मदद
कृषक (सशक्तिकरण व संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा पर करार अधिनियम, 2020 के मुताबिक अगर किसानों और कंपनी के बीच कॉन्ट्रैक्ट को लेकर कोई विवाद हो जाता है तो, इसका हल एसडीएम करेगा. लेकिन किसानों को अभी तक किसी तरह की मदद नहीं मिल पाई है.
मीडिया से बच रहे अधिकारी
अधिकारी मीडिया से बात करने में कतरा रहे हैं. दबी जुबान में किसानों पर ही इसका ठीकरा फोड़ा जा रहा है. कहा जा रहा है किसानों को इस तरह के एग्रीमेंट से बचना चाहिए. लेकिन फिर सवाल तो वही उठ जाता है, कि गांव का एक किसान मल्टीनेशनल कंपनियों के दांव-पेच कैसे समझेगा. लिहाजा सरकार को इस मामले में सीधे हस्तक्षेप की जरूरत है. ताकि किसानों को न्याय मिल सके.
क्या कहता है सरकार का नया कानून
- कृषक (सशक्तिकरण व संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा पर करार अधिनियम, 2020.
- कृषकों को व्यापारियों, कंपनियों, प्रसंस्करण इकाइयों, निर्यातकों से सीधे जोड़ना.
- कृषि करार के माध्यम से बुवाई से पूर्व ही किसान को उसकी उपज के दाम निर्धारित करना. बुवाई से पूर्व किसान को मूल्य का आश्वासन. दाम बढ़ने पर न्यूनतम मूल्य के साथ अतिरिक्त लाभ.
- इस अधिनियम की मदद से बाजार की अनिश्चितता का जोखिम किसानों से हटकर प्रायोजकों पर चला जाएगा. मूल्य पूर्व में ही तय हो जाने से बाजार में कीमतों में आने वाले उतार-चढ़ाव का प्रतिकूल प्रभाव किसान पर नहीं पड़ेगा.
- इससे किसानों की पहुंच अत्याधुनिक कृषि प्रौद्योगिकी, कृषि उपकरण एवं उन्नत खाद बीज तक होगी.
- इससे विपणन की लागत कम होगी और किसानों की आय में वृद्धि सुनिश्चित होगी.
- किसी भी विवाद की स्थिति में उसका निपटारा 30 दिवस में स्थानीय स्तर( एसडीएम) पर करने की व्यवस्था की गई है.
- कृषि क्षेत्र में शोध एवं नई तकनीकी को बढ़ावा देना.