ग्वालियर। मुगल शासक अकबर के नवरत्न में शामिल सम्राट तानसेन को कौन नहीं जानता है. (Tamarind Tree Made Tansen Sur Emperor) ग्वालियर का नाम विश्व पटल पर तानसेन के सुर पराक्रम की वजह से ही अमर हुआ है. उनकी याद में हर वर्ष मध्य प्रदेश सरकार तानसेन समारोह का आयोजन भी करती है. यह सब जानते है, लेकिन आपको उस इमकी के पेड़ के बारे में नहीं पता होगा जिसकी पत्तियां खुद तानसेन खाते थे. इतना ही नहीं तानसेन समारोह में शामिल होने वाला हर कलाकार इस पेड़ की पत्तियां खाए बिना मंच पर कदम नहीं रखता. इस पेड़ के नीचे सभी संगीत प्रेमी पत्तियां खाते हुए आसानी से दिखाई देते है. जितना अनोखा यह पेड़ है उतनी ही अनोखी इसकी कहानी भी है. जानिए ईटीवी भारत में पेड़ की रोचक जानकारी...
इमली के पेड़ की पत्तियों के कारण सुरीले हुए तानसेन
इमली के पेड़ से जुड़ी कई कहानियां हैं. एक कहानी यह है कि तानसेन अपनी आवाज को सुरीली और रसीली बनाने के लिए इमली के पेड़ के पत्ते खाते थे. यही वजह है कि आज भी इस इमली के पेड़ की पत्तियों को देशभर के दिग्गज संगीत योद्धा आकर खाते हैं. तानसेन समारोह के दौरान कोई भी संगीत प्रेमी यहां पहुंचता है, तो तानसेन समाधि को नमन करते हुए इमली के पेड़ की पत्तियां जरूर खाता है.
इस इमली के पेड़ में बसती है तानसेन की रूह
इमली के पेड़ की मान्यता है कि मियां सम्राट तानसेन की रूह इस इमली के पेड़ में बसती है. जो भी इस पेड़ की पत्तियां खाता है उसकी आवाज सुरीली हो जाती है. यही वजह है कि तानसेन की समाधि स्थल पर आने वाले लोग इस पेड़ की पत्तियां खाते हैं. हालांकि यह पेड़ कई 100 साल पहले गिर गया था, लेकिन यहां के केयरटेकर ने इस पुराने पेड़ की बीज से नया पेड़ लगा दिया है.
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यह पेड़ भी अब धीरे-धीरे बड़ा आकार लेने लगा है. शनिवार को तानसेन समाधि के बगल से ही विश्व संगीत तानसेन समारोह का आगाज भी होगा. इस दौरान देश-विदेश से आने वाले संगीत प्रेमी भी इस पेड़ के पास पहुंचेगे और पेड़ की पत्तियां खाऐंगे. कहते हैं जो इस पेड़ की पत्तियां खाता है उसे तानसेन का आशीर्वाद मिलता है.
तानसेन समाधि के बगल में है इमली का अनोखा पेड़
शहर के हजीरा इलाके में तानसेन समाधि है. इस समाधि के पास ही तानसेन के गुरु मोहम्मद गौस का मकबरा है. तानसेन समाधि से चंद कदम की दूरी पर एक इमली का पेड़ लगा हुआ है. साल भर संगीत प्रेमी इस पेड़ की पत्तियां खाने यहां पहुंचते है.
कैसे एक मूक बधिर बच्चा बना सुर सम्राट?
ग्वालियर के बेहट गांव में रहने वाले ब्राह्मण परिवार में तानसेन का जन्म हुआ था. लेकिन 5 वर्ष की उम्र में तानसेन के सिर से माता-पिता का साया उठ गया. तानसेन बकरी चराते और गांव वालों से मिलने वाला खाना खाकर अपना गुजर-बसर करने लगा. तभी मोहम्मद गौस ने उनको सहारा दिया. शुरूआत में तानसेन किसी से कुछ नहीं बोलते थे, लेकिन मोहम्मद गौस ने उनको अपना शिष्य बनाया और उनको स्वरों की तालीम दी.
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उस समय मोहम्मद गौस ग्वालियर के संगीत विद्यालय में तालीम देते थे. समय के साथ-साथ तानसेन की सुरों की लय इतनी बुलंद हो गई कि मुगल शासक अकबर ने उन्हें अपने नौ रत्नों में शामिल कर लिया. आज प्रदेश सरकार तानसेन की याद में तानसेन समारोह का आयोजन करती है.
25 दिसंबर से आयोजित होगा तानसेन समारोह
संगीत की नगरी ग्वालियर में 25 दिसंबर से विश्व संगीत तानसेन समारोह का आगाज होने वाला है. इसको लेकर तैयारियां अंतिम चरण में हैं. शहर के हजीरा स्थित संगीत सम्राट तानसेन की समाधि के बगल में तानसेन समारोह का मंच तैयार किया गया है. अब की बार मंच ओमकालेश्वर स्थित सिद्धनाथ मंदिर की तर्ज पर तैयार किया जा रहा है. इसके साथ ही तानसेन समारोह के मुख्य मध्य की भूमि कृषि में भारतीय वास्तुकला के ऐतिहासिक स्मारक को प्रदर्शित किया जाएगा. तानसेन समारोह का शुभारंभ करने के लिए मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और सांस्कृतिक एवं पर्यटन मंत्री उषा ठाकुर पहुंचेगी.