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दिल्ली एम्स-मद्रास मेडिकल कॉलेज के बाद ग्वालियर में भी हो सकेगा डिमेंशिया का इलाज, अमेरिकी यूनिवर्सिटी ने दी अनुमति

दिल्ली एम्स और मद्रास मेडिकल कॉलेज के बाद अब ग्वालियर मेडिकल कॉलेज में भी याददाश्त बढ़ाने का मेमोरी सेंटर खुलेगा.

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Published : Feb 12, 2019, 9:38 PM IST


ग्वालियर। बढ़ती उम्र में कमजोर होती याद्दाश्त को दुरुस्त करने का इंतजाम अब ग्वालियर में किया जा रहा है. दिल्ली एम्स और मद्रास मेडिकल कॉलेज के बाद ग्वालियर शहर के गजरा राजा मेडिकल कॉलेज में खोले जाने वाले नोडल सेंटर के लिए यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया लास एंजलिस से अनुमति मिल चुकी है.

जीआरएमसी मेडिकल कॉलेज
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दिल्ली और कैलिफोर्निया की टीम जल्द ही निरीक्षण के लिए ग्वालियर पहुंचने वाली है. साल 2016 में पहली बार देश में ये प्रोजेक्ट लॉन्च किया गया था. 173 देशों की इंटरनेशनल प्रोजेक्ट लॉन्चिंग डेट शुरू किया है. नोडल सेंटर में 60 से अधिक उम्र की डिमेंशिया के मरीजों की जांच कर सैंपल कलेक्ट किए जाएंगे और अगले 20 साल तक हर दो साल में फॉलो भी किया जाएगा.

गौरतलब है कि भूलने की बीमारी की खोज के लिए 173 देशों ने मिलकर लास्ट डेट का स्टडी फॉर्मेट तैयार किया है, जिसका मतलब डायग्नोसिस असेसमेंट ऑफ डिमेंशिया है. प्रदेश में सिर्फ ग्वालियर की जीआरएमसी मेडिकल कॉलेज के डॉक्टर शैलेंद्र भदौरिया ने एम्स में जिरियॉट्रिक विशेषज्ञ एमडी की डिग्री हासिल की है. इसलिए नोडल सेंटर का प्रभार दिल्ली एम्स में डॉक्टर भदौरिया को दिया गया है. सेंटर प्रभारी डॉक्टर का कहना है कि कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी ने अस्पताल की जानकारी मांगी थी, यूनिवर्सिटी को बताया गया है कि 1200 बेड की क्षमता एवं 2700 की ओपीडी है, उसमें 30% मरीज 60 साल के पार हैं, जिसमें अधिकांश डिमेंशिया मरीज हैं.

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डॉक्टर भदौरिया बताते हैं कि 60 की उम्र पार होते ही लोगों को अक्सर शारीरिक परेशानियां होने लगती हैं, जिससे काफी तकलीफ होती है याद्दाश्त को जाने से छोटी छोटी बातें भूलने लगते हैं. परिवार के लोगों को हर वक्त ध्यान रखना पड़ता है. बीमारियों से ग्रस्त होने के कारण व्यक्ति का लोगों से मिलना जुलना भी कम हो जाता है. अकेलापन महसूस करते हैं, साथ ही फाइनेंसियल रूप से भी काफी कमजोर करता है क्योंकि उपचार में काफी पैसा खर्च होता है.


ग्वालियर। बढ़ती उम्र में कमजोर होती याद्दाश्त को दुरुस्त करने का इंतजाम अब ग्वालियर में किया जा रहा है. दिल्ली एम्स और मद्रास मेडिकल कॉलेज के बाद ग्वालियर शहर के गजरा राजा मेडिकल कॉलेज में खोले जाने वाले नोडल सेंटर के लिए यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया लास एंजलिस से अनुमति मिल चुकी है.

जीआरएमसी मेडिकल कॉलेज
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दिल्ली और कैलिफोर्निया की टीम जल्द ही निरीक्षण के लिए ग्वालियर पहुंचने वाली है. साल 2016 में पहली बार देश में ये प्रोजेक्ट लॉन्च किया गया था. 173 देशों की इंटरनेशनल प्रोजेक्ट लॉन्चिंग डेट शुरू किया है. नोडल सेंटर में 60 से अधिक उम्र की डिमेंशिया के मरीजों की जांच कर सैंपल कलेक्ट किए जाएंगे और अगले 20 साल तक हर दो साल में फॉलो भी किया जाएगा.

गौरतलब है कि भूलने की बीमारी की खोज के लिए 173 देशों ने मिलकर लास्ट डेट का स्टडी फॉर्मेट तैयार किया है, जिसका मतलब डायग्नोसिस असेसमेंट ऑफ डिमेंशिया है. प्रदेश में सिर्फ ग्वालियर की जीआरएमसी मेडिकल कॉलेज के डॉक्टर शैलेंद्र भदौरिया ने एम्स में जिरियॉट्रिक विशेषज्ञ एमडी की डिग्री हासिल की है. इसलिए नोडल सेंटर का प्रभार दिल्ली एम्स में डॉक्टर भदौरिया को दिया गया है. सेंटर प्रभारी डॉक्टर का कहना है कि कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी ने अस्पताल की जानकारी मांगी थी, यूनिवर्सिटी को बताया गया है कि 1200 बेड की क्षमता एवं 2700 की ओपीडी है, उसमें 30% मरीज 60 साल के पार हैं, जिसमें अधिकांश डिमेंशिया मरीज हैं.

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डॉक्टर भदौरिया बताते हैं कि 60 की उम्र पार होते ही लोगों को अक्सर शारीरिक परेशानियां होने लगती हैं, जिससे काफी तकलीफ होती है याद्दाश्त को जाने से छोटी छोटी बातें भूलने लगते हैं. परिवार के लोगों को हर वक्त ध्यान रखना पड़ता है. बीमारियों से ग्रस्त होने के कारण व्यक्ति का लोगों से मिलना जुलना भी कम हो जाता है. अकेलापन महसूस करते हैं, साथ ही फाइनेंसियल रूप से भी काफी कमजोर करता है क्योंकि उपचार में काफी पैसा खर्च होता है.

Intro:ग्वालियर- बढ़ती उम्र में अक्सर कमजोर हो जाने वाली याददाश्त को दुरस्त करने का हल अब ग्वालियर में भी ही हो जायेगा । दिल्ली एम्स और मद्रास मेडिकल कॉलेज के बाद ग्वालियर शहर में गजरा राजा मेडिकल कॉलेज में खोले जाने वाले नोडल सेंटर के लिए यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया लास एंजलिस से अनुमति मिल चुकी है । जल्द ही दिल्ली और कैलिफोर्निया का दल निरीक्षण के लिए ग्वालियर आने वाला है । सन 2016 में पहली बार देश में यह प्रोजेक्ट लॉन्च किया गया था 173 देशों की इंटरनेशनल प्रोजेक्ट लॉन्चिंग डेट शुरू किया है नोडल सेंटर में 60 से अधिक उम्र की डिमेंशिया के मरीज का चेकअप कर सैंपल कलेक्ट किए जाएंगे । अगले 20 साल तक हर 2 साल में फॉलो भी किया जाएगा ।


Body:गौरतलब है कि भूलने की बीमारी की खोज के लिए 173 देशों ने मिलकर लास्ट डेट का स्टडी फॉर्मेट तैयार किया है। जिसका मतलब डायग्नोसिस असेसमेंट ऑफ डिमेंशिया है ।प्रदेश में केवल ग्वालियर की जीआरएमसी मेडिकल कॉलेज के डॉक्टर शैलेंद्र भदोरिया ने एम्स में जिरियाट्रिक विशेषक एमडी की डिग्री हासिल की है। इसलिए नोडल सेंटर का प्रभार दिल्ली एम्स में डॉक्टर भदौरिया को दिया है। इस सेंटर के प्रभारी डॉक्टर का कहना है कि कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी ने अस्पताल की जानकारी मांगी थी यूनिवर्सिटी को बताया गया है कि 1200 बेड क्षमता एवं 2700 की ओपीडी है उसमें 30% मरीज 60 साल के पार के हैं जिसमें अधिकांश डिमेंशिया मरीज अधिक है ।


Conclusion:डॉभदोरिया बताती है कि 60 की उम्र पार होती ही लोगों को अक्सर शारीरिक परेशानियां होने लगती है जिससे काफी तकलीफ होती है याददाश्त को जाने से छोटी छोटी बातें भूलने लगते हैं परिवार के लोगों को हर वक्त ध्यान रखना पड़ता है बीमारियों से ग्रस्त होने के कारण व्यक्ति का लोगों से मिलना जुलना भी कम हो जाता है अकेलापन महसूस करते हैं साथ ही फाइनेंसियल रूप से भी काफी कमजोर करता है क्योंकि उपचार में काफी पैसा खर्च होता है
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