ग्वालियर। नवाचार का समाज में काफी महत्व है. नवाचार के अंतर्गत कुछ नया और उपयोगी तरीका अपनाया जाता है. इनोवेशन को अर्थतंत्र का सारथी माना जाता है. देश के कई विश्वविद्यालयों में भी इनोवेशन किए जाते हैं, जिसमें ग्वालियर का जीवाजी विश्वविद्यालय भी शामिल हैं. ऐसे ही एक इनोवेशन के तहत जीवाजी यूनिवर्सिटी में इन दिनों हर्बल प्रोडक्ट को बड़े स्तर पर तैयार किया जा रहा है. इसमें मौजूदा कोरोना महामारी, डायबिटीज को लेकर ऐसे आयुर्वेदिक उत्पाद तैयार कराए जा रहे हैं, जो ना सिर्फ बाजार के प्रोडक्ट से सस्ते हैं, बल्कि इनके साइड इफेक्ट भी नहीं हैं.
ये उत्पाद लोगों के लिए बेहद फायदेमंद साबित हुए हैं. 6 महीने के भीतर विश्वविद्यालय ने अपने यहां तैयार होने वाले 20 हर्बल प्रोडक्ट का पेटेंट कराया है, जबकि प्रोडक्ट को बाजार में उतारने और अपने यहां के शोधार्थियों को फायदा पहुंचाने के मकसद से सात कंपनियों से MOU भी साइन किया गया है.
दरअसल जीवाजी विश्वविद्यालय में 2014 में सेंटर फॉर ट्रांसलेशन की स्थापना की गई थी. यहां शोध करने वाले और इनोवेशन का जोश रखने वाले छात्र-छात्राओं ने भारत की प्राचीन परंपरा आयुर्वेद को मौजूदा दौर में भी जिंदा रखा है. आयुर्वेद की महत्ता को समझते हुए किस तरह से आयुर्वेद उपयोग में लाया जाए, इस पर काम करना शुरू किया है, जिससे यहां अब तक दो दर्जन से ज्यादा हर्बल प्रोडक्ट इजाद किए गए हैं.
इन उत्पादों में सबसे ज्यादा वे हैं जो शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाते हैं, इसके अलावा डायबिटीज रोगियों की दवाएं, हर्बल सैनिटाइजर, प्राकृतिक चिकित्सा में काम आने वाला पंचकर्म और उसके उपयोग में आने वाले प्रोडक्ट साथ ही कई फलों की वाइन भी इजाद की गई है, जो डायबिटीज के रोगियों के लिए अमृत के समान हैं.
विश्वविद्यालय का फूड टेक्नोलॉजी डिपार्टमेंट और आयुर्वेदिक वैलनेस सेंटर नए इनोवेशन करने में जुटा हुआ है. विश्वविद्यालय की कुलपति संगीता शुक्ला का कहना है कि इनोवेशन से छात्रों को एक नया स्टार्टअप का रास्ता खुलता है और अलग तरीके से सोचने में मदद मिलती है. उन्होंने कहा कि औद्योगिक संस्था CIA से भी विश्वविद्यालय जुड़ गया है, जिससे छात्रों को प्लेसमेंट में फायदा मिलेगा. प्रदेश का जीवाजी ऐसा विश्वविद्यालय है, जिसने नैक से ए प्लस मान्यता के साथ (QS) क्वालिटी स्टैंडर्ड में अपना स्थान बनाया है. आयुर्वेदिक कंपनियां लगातार विश्वविद्यालय के संपर्क में हैं और यहां के उत्पादों को बड़े स्तर पर बनाने और उनकी मार्केटिंग करने के लिए तैयारी चल रही है.
विश्वविद्यालय ने डायबिटीज रोगियों के लिए ऐसी चॉकलेट बनाई है, जो शुगर फ्री होने के साथ ही बच्चे से बुजुर्गों तक के लोगों के लिए लाभदायक है. साथ ही घाव भरने के लिए मधुमेह रोगियों के लिहाज से ऑइंटमेंट भी तैयार किया गया है, जिसका चूहों पर सफल परीक्षण हो चुका एहै. ट्रांसलेशनल रिसर्च सेंटर में 8 करोड़ की लागत से भारी भरकम उपकरण खरीदे गए हैं, जहां हर्बल प्रोडक्ट पर रिसर्च और उससे नए उत्पाद बनाने के लिए रात दिन काम चल रहा है. फिलहाल देखना होगा कि आगे और क्या-क्या संभावनाएं हो सकती हैं.