ग्वालियर। मध्य प्रदेश में होने वाले आगामी विधानसभा का चुनाव नजदीक है. ऐसे में बीजेपी और कांग्रेस सत्ता में आने के लिए ऐड़ी और चोटी का जोर लगा रही है. इसी को लेकर ईटीवी भारत मध्य प्रदेश की हर विधानसभा के बारे में सियासी समीकरण के बारे में बता रहा है. आज हम ग्वालियर जिले की ग्वालियर पूर्व विधानसभा इस विधानसभा क्षेत्र की बात करेंगे. इसे 2003 विधानसभा चुनाव तक मुरार विधानसभा के नाम से जाना जाता था. 2008 के परिसीमन के बाद इसे ग्वालियर पूर्व विधानसभा के रूप में पहचान मिली है.
पहले मुरार नाम से जानी जाती थी यह सीट: इस सीट पर वर्तमान में इस विधानसभा पर कांग्रेस के विधायक के रूप में डॉ सतीश सिकरवार काबिज हैं. सतीश सिकरवार को क्षेत्र की जनता ने 2020 में हुए उपचुनाव के दौरान विधायक बनाया है. सतीश शिकरवार इससे पहले 2018 में BJP के टिकिट पर चुनाव लड़े थे, लेकिन उन्हें कांग्रेस के टिकट पर चुनावी मैदान में उतरे मुन्नालाल गोयल ने हरा दिया था. 2020 में हुए उपचुनाव से पहले सिंधिया समर्थक मुन्नालाल गोयल कांग्रेस छोड़ बीजेपी में शामिल हो गए और उन्हें बीजेपी से टिकिट भी मिल गया. इस बात से खफा सतीश सिकरवार ने बीजेपी छोड़कर कांग्रेस का हाथ थाम लिया. 2020 उपचुनाव में सतीश सिकरवार ने 8555 वोट से मुन्नालाल गोयल को हरा दिया और विधायक बन गए. ग्वालियर पूर्व विधानसभा 2008 में हुए परिसीमन के बाद अस्तित्व में आई थी. इससे पहले इस विधानसभा को मुरार विधानसभा के नाम से जाना जाता था. इस विधानसभा में कुल मतदाताओं की संख्या 304084 है. जिनमें पुरुष मतदाता 164349 और महिलाएं 139722 हैं और थर्ड जेंडर - 16 व जेंडर रेशों - 877 है.
ग्वालियर पूर्व विधानसभा की खासियत: बीजेपी का गढ़ रही ग्वालियर पूर्व विधानसभा पर हमेशा से महल का दखल रहा है, क्योंकि सिंधिया का जयविलास पैलेस महल इसी विधानसभा में आता है. इसलिए हमेशा से ही यहां पर बीजेपी हो या कांग्रेस लेकिन महल से जुड़ा ही व्यक्ति विधायक रहा है. इस विधानसभा में जिला मुख्यालय संभागीय मुख्यालय सहित बड़े सरकारी दफ्तर भी आते हैं. ग्वालियर चंबल संभाग का सबसे बड़ा दल बाजार और लोहिया बाजार भी इसी विधानसभा में आता है.
बीजेपी का गढ़ मानी जाती है यह सीट: ग्वालियर पूर्व विधानसभा सीट 2008 के परिसीमन से पहले व्यापारी वर्ग के प्रभुत्व वाली हुआ करती थी, लेकिन अब इसका चुनावी गणित बदलकर ठाकुर, ब्राह्मण बहुल हो गया है. बीजेपी का गढ़ कही जाने वाली इस सीट पर बीजेपी की 2018 में हार दलित आंदोलन और बीजेपी की अंदरूनी लड़ाई का नतीजा थी. मुन्नालाल गोयल लगातार दो चुनाव यहां हारने के बाद जीत सके थे. दोनों बार वे नजदीकी मुकाबले में अनूप मिश्रा और माया सिंह से हारे थे. 2018 में मुन्नालाल गोयल 90133 वोट लेकर जीते थे और बीजेपी के सतीश सिकरवार 72314 वोट ही हासिल कर सके.
विधानसभा में कौन विधायक किस पार्टी से जीते: इस क्षेत्र में 1972 में कांग्रेस पार्टी के राजेन्द्र सिंह को 24714 वोट मिले थे, जबकि भारतीय जन संघ के नरेश जौहरी को 19450 वोट मिले. राजेन्द्र सिंह 5264 वोट से जीत गए थे. वहीं 1977 में जनता पार्टी के माधव राव शंकर राव इंद्रापुरकर को 18401 वोट मिले थे. जबकि कांग्रेस के राजेन्द्र सिंह को 13061 वोट मिले. माधव राव शंकर राव इंद्रापुरकर 5340 वोट से जीत गए थे. वहीं साल 1980 में कांग्रेस के कप्तान सिंह को 12036 वोट तो BJP से ध्यानेन्द्र सिंह को 9208 वोट मिले थे. 2828 वोट से कांग्रेस के कप्तान सिंह जीत गए थे. 1985 में बीजेपी ने ध्यानेन्द्र सिंह को टिकट दिया था जिसके बाद बीजेपी के ध्यानेंद्र सिंह को 21380 के गिरवर सिंह को 12961 वोट मिले थे. 8419 वोट के अंतर से ध्यानेन्द्र सिंह जीत गए थे.
1990 से 2003 तक का सियासी समीकरण: वहीं साल 1990 में भी बीजेपी ने ध्यानेन्द्र सिंह को ही टिकट दिया और वह जीते भी. ध्यानेंद्र सिंह को 23488 और कांग्रेस की टिकट से लड़े रामवरन सिंह को 18019 वोट मिले थे. 5469 वोट के अंतर से ध्यानेन्द्र सिंह जीत गए थे. साल 1993 में कांग्रेस की जीत हुई. कांग्रेस के रामवरन सिंह को 28599 और BSP के फूल सिंह बरैया को 23402 वोट मिले. 5197 वोट से रामवरन सिंह की जीत हुई थी. 1998 में एक बार फिर बीजेपी ने ध्यानेन्द्र सिंह को टिकट दिया और वह फिर जीता. ध्यानेंद्र सिंह को 40969 जबकि कांग्रेस के रामवरन सिंह गुर्जर को 23192 वोट मिले. ध्यानेन्द्र सिंह 17777 से चुनाव जीत गए. अगर बात 2003 की करें तो इस साल पर बीजेपी से ध्यानेन्द्र सिंह की फतह हुई. ध्यानेंद्र सिंह को 30866 और SP के मुन्नालाल गोयल को 18852 वोट मिले. 12014 वोट से ध्यानेन्द्र सिंह जीत गए थे.
साल 2008 से 2018 का सियासी तानाबाना: साल 2008 में बीजेपी ने अनूप मिश्रा को टिकट दिया. इस बार बीजेपी की जीत हुई. अनूप मिश्रा को 37105 और कांग्रेस के मुन्नालाल गोयल को 35567 वोट मिले थे. अनूप मिश्रा 1538 वोटों से चुनाव जीत गए थे. 2013 में बीजेपी ने माया सिंह को टिकट देकर चुनावी मैदान में उतारा. इस बार फिर बीजेपी ने अपने जीत का सफर जारी रखा. माया सिंह को 59824 वोट मिले, जबकि कांग्रेस के मुन्नालाल गोयल को 58677 वोट मिले. लिहाजा माया सिंह 1147 वोट से जीत गईं थी. जबकि 2018 में बीजेपी के जीत का क्रम टूटा. इस बार फिर कांग्रेस ने मुन्नालाल गोयल पर भरोसा जताकर टिकट दिया. मुन्नालाल गोयल को 90133 और बीजेपी से सतीश सिकरवार को 72314 वोट मिले थे. मुन्नालाल गोयल 17819 वोट से चुनाव जीत गए थे. वहीं सिंधिया सहित मुन्नालाल गोयल कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में शामिल हो गए थे. जिसके बाद साल 2020 में उपचुनाव हुए. इस बार बीजेपी ने कांग्रेस से आए मुन्नालाल गोयल को टिकट दिया. जिससे नाराज होकर बीजेपी के सतीश सिकरवार पार्टी छोड़कर कांग्रेस में शामिल हो गए और कांग्रेस ने उन्हें प्रत्याशी बनाया. नतीजा कांग्रेस के पक्ष में रहा. कांग्रेस के सतीश सिकरवार को 75342 और बीजेपी के मुन्नालाल गोयल को 66787 वोट मिले. 8555 वोट से सतीश सिकरवार जीत गए.
ग्वालियर पूर्व विधानसभा का राजनीतिक समीकरण: ग्वालियर पूर्व विधानसभा का राजनीतिक समीकरण पूरी तरह से बदल चुका है, क्योंकि 2020 के उपचुनाव में यहां कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में शामिल हुए मुन्नालाल गोयल और भाजपा छोड़कर कांग्रेस में शामिल हुए सतीश सिंह सिकरवार के बीच चुनाव हुआ. उसमें कांग्रेस से सतीश सिकरवार विधायक बने. वर्तमान में कांग्रेस विधायक का प्रभाव अच्छा खासा माना जा रहा है, क्योंकि इस विधानसभा में कांग्रेस विधायक सतीश सिकरवार यह जमीनी पकड़ बना ली है और वह लगातार इस विधानसभा में विकास कार्यों को नई-नई ऊंचाइयां दे रहे हैं. यही कारण है कि अब कांग्रेस विधायक सतीश सिकरवार की टक्कर में उतारने के लिए बीजेपी तमाम मंथन कर रही है, लेकिन अभी तक उन्हें कोई उम्मीदवार नहीं मिल पाया है.
आसान नहीं मुन्नालाल गोयल की राह: नई परिस्थितियों में मुन्नालाल बीजेपी के टिकट पर चुनाव लड़ सकते है, लेकिन 15 महीने के कार्यकाल में उनके पास उपलब्धि के नाम पर कुछ नहीं है. सिंधिया परिवार के प्रभाव को यहां नकारा तो नहीं जा सकता है. इसलिए बीजेपी के परम्परागत वोटरों के आधार पर मुन्नालाल की सम्भवना को अन्य सीटों की तुलना में खारिज नहीं किया जा सकता है. बुनियादी दिक्कत बीजेपी के कार्यकर्ताओं के साथ मुन्नालाल को हैं, जो बहुत ही दुष्कर काम है. कांग्रेस के नेता ओर दावेदारों की बात मानें तो अब मुन्नालाल की राह आसान नहीं है, क्योंकि उन्होंने कांग्रेस के वोट को बेचा था. साथ ही जिन वायदों को लेकर वो लोगों के बीच गए थे. वो पूरे नहीं किए हैं. भले ही कांग्रेस और बीजेपी चुनाव के समय एक दूसरे पर गंभीर आरोप लगाएं, लेकिन राजनीतिक जानकारों की माने, पूर्व विधायक मुन्नालाल को पार्टी बदलने से बड़ा फर्क पड़ सकता है. क्योंकि उनका वोटर सबसे ज्यादा मुस्लिम और एससीएसटी है.
इस क्षेत्र की समस्याएं: बिजली, सड़क, पानी के मुद्दे किसी भी चुनाव में बहुत अहम होते है, लेकिन अब यही मुद्दे ग्वालियर पूर्व विधानसभा के उपचुनाव में कांग्रेस के बागी रहे बीजेपी के उम्मीदवार मुन्नालाल के लिए परेशानी का सबब बन रहे हैं. ग्वालियर पूर्व विधानसभा के कई इलाकों में इन्हीं मुद्दों को लेकर लोगों ने अभी से चुनाव का बहिष्कार कर दिया है. जिससे भुनाने के लिए कांग्रेस ने अभी से अपना सियासी जाल बिछाना शुरू कर दिया है. नई परिस्थितियों में मुन्नालाल गोयल अब बीजेपी के टिकट पर चुनाव लड़ सकते हैं. 15 महीने के कार्यकाल में उनके पास उपलब्धि के नाम पर कुछ नहीं है. हालांकि इस सीट पर सिंधिया परिवार के प्रभाव को नकारा तो नहीं जा सकता है. इसलिए बीजेपी के परम्परागत वोटरों के आधार पर मुन्नालाल की सम्भवना को अन्य सीटों की तुलना में खारिज नहीं किया जा सकता है, लेकिन मुन्नालाल के लिए सबसे बड़ा चैलेंज बीजेपी के नेताओं से निपटने का ज्यादा है. जिनको अपनी सियासी जमीन मुन्नालाल की वजह से खिसकने का डर है.