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ग्वालियर: 28 बीघे जमीन के विवाद का मामला, हाईकोर्ट ने शासन को सौपा मालिकाना हक

जिला अपर सत्र न्यायाधीश रामजी गुप्ता ने शासन की उस अपील को स्वीकार कर लिया है, जिसमें कलेक्ट्रेट पहाड़ी के पास 28 बीघा जमीन की बिक्री को चुनौती दी गई थी.

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Published : May 18, 2019, 10:21 PM IST

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ग्वालियर। जिला अपर सत्र न्यायाधीश रामजी गुप्ता ने शासन की उस अपील को स्वीकार कर लिया है, जिसमें कलेक्ट्रेट पहाड़ी के पास 28 बीघा जमीन की बिक्री को चुनौती दी गई थी. कोर्ट ने अधीनस्थ न्यायालय के फैसले को निरस्त करते हुए जमीन को निजी न मानते हुए उसे शासन का मालिकाना हक बताया है.

जिला एंव सत्र न्यायालय ग्वालयिर

लोक अभियोजक ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर अपर सत्र न्यायालय में एक बार फिर इस मामले में अपील को सुना गया. कोर्ट में शासन का पक्ष रखते हुए लोक अभियोजक द्वारा तर्क दिया गया कि दोनों सर्वे क्रमांक शासकीय हैं. उन्होंने कहा कि रिकॉर्ड में हेराफेरी करके दस्तावेज पेश किए गए हैं, जिसमें कुछ भूमि वन विभाग की भी है, वन विभाग की भूमि को वन अधिनियम की धारा के तहत किसी को पट्टे पर नहीं दिया जा सकता. इसलिए डिग्री के आदेश को निरस्त किया जाए दोनों पक्षों को सुनने के बाद कोर्ट ने न्यायिक मजिस्ट्रेट के डिग्री के फैसले को निरस्त कर दिया और जमीन को शासन के मालिकाना हक भी माना

शासन ने अपर सत्र न्यायालय में अपील दायर किया लेकिन न्यायालय ने दावे को खारिज कर दिया. इसी आधार पर हाईकोर्ट ने भी अपील को खारिज कर दिया था. बाद में शासन ने सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी दायर की जिस पर उच्चतम न्यायालय ने आदेश जारी करते हुए कहा कि जमीन काफी कीमती है, इसलिए शासन को उसका पक्ष रखने का पूरा मौका दिया जाए.

लोक अभियोजक बृज मोहन श्रीवास्तव ने बताया कि कलेक्ट्रेट पहाड़ी के पास स्थित सरोल में जमीन पर टावर बिल्डिंग निवासी संदेश सिंह और शिवेंद्र प्रताप ने 2004 में न्यायिक मजिस्ट्रेट के यहां एक दावा पेश किया और कहा कि इस भूमि को उनके दादा गेंदालाल और दुर्गा प्रसाद को पट्टे में मिली थी, 30 साल से ज्यादा इस जमीन पर उनके द्वारा खेती की जा रही है,

जबकि इस मामले में शासन ने तर्क दिया कि जमीन शासकीय है और जमीन का कुछ हिस्सा वन विभाग का है. ऐसे में जमीन को पट्टे पर नहीं दिया जा सकता, इसलिए दावे को खारिज किया जाए लेकिन निचली कोर्ट ने मामले में उचित गवाही नहीं होने पर जमीन के डिग्री संदेश सिंह तोमर और शिवेंद्र प्रताप के नाम हो गई.

ग्वालियर। जिला अपर सत्र न्यायाधीश रामजी गुप्ता ने शासन की उस अपील को स्वीकार कर लिया है, जिसमें कलेक्ट्रेट पहाड़ी के पास 28 बीघा जमीन की बिक्री को चुनौती दी गई थी. कोर्ट ने अधीनस्थ न्यायालय के फैसले को निरस्त करते हुए जमीन को निजी न मानते हुए उसे शासन का मालिकाना हक बताया है.

जिला एंव सत्र न्यायालय ग्वालयिर

लोक अभियोजक ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर अपर सत्र न्यायालय में एक बार फिर इस मामले में अपील को सुना गया. कोर्ट में शासन का पक्ष रखते हुए लोक अभियोजक द्वारा तर्क दिया गया कि दोनों सर्वे क्रमांक शासकीय हैं. उन्होंने कहा कि रिकॉर्ड में हेराफेरी करके दस्तावेज पेश किए गए हैं, जिसमें कुछ भूमि वन विभाग की भी है, वन विभाग की भूमि को वन अधिनियम की धारा के तहत किसी को पट्टे पर नहीं दिया जा सकता. इसलिए डिग्री के आदेश को निरस्त किया जाए दोनों पक्षों को सुनने के बाद कोर्ट ने न्यायिक मजिस्ट्रेट के डिग्री के फैसले को निरस्त कर दिया और जमीन को शासन के मालिकाना हक भी माना

शासन ने अपर सत्र न्यायालय में अपील दायर किया लेकिन न्यायालय ने दावे को खारिज कर दिया. इसी आधार पर हाईकोर्ट ने भी अपील को खारिज कर दिया था. बाद में शासन ने सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी दायर की जिस पर उच्चतम न्यायालय ने आदेश जारी करते हुए कहा कि जमीन काफी कीमती है, इसलिए शासन को उसका पक्ष रखने का पूरा मौका दिया जाए.

लोक अभियोजक बृज मोहन श्रीवास्तव ने बताया कि कलेक्ट्रेट पहाड़ी के पास स्थित सरोल में जमीन पर टावर बिल्डिंग निवासी संदेश सिंह और शिवेंद्र प्रताप ने 2004 में न्यायिक मजिस्ट्रेट के यहां एक दावा पेश किया और कहा कि इस भूमि को उनके दादा गेंदालाल और दुर्गा प्रसाद को पट्टे में मिली थी, 30 साल से ज्यादा इस जमीन पर उनके द्वारा खेती की जा रही है,

जबकि इस मामले में शासन ने तर्क दिया कि जमीन शासकीय है और जमीन का कुछ हिस्सा वन विभाग का है. ऐसे में जमीन को पट्टे पर नहीं दिया जा सकता, इसलिए दावे को खारिज किया जाए लेकिन निचली कोर्ट ने मामले में उचित गवाही नहीं होने पर जमीन के डिग्री संदेश सिंह तोमर और शिवेंद्र प्रताप के नाम हो गई.

Intro:एंकर-- ग्वालियर में अपर सत्र न्यायाधीश रामजी गुप्ता ने शासन की उस अपील को स्वीकार कर लिया जिसमें कलेक्ट्रेट पानी के पास स्थित 28 बीघा जमीन की बिक्री को चुनौती दी गई थी कोर्ट ने अधीनस्थ न्यायालय के फैसले को निरस्त कर दिया और जमीन को निजी ना मानते हुए 100 करोड़ से अधिक की जमीन शासन के मालिकाना हक की मानी है।


Body:वीओ --- कलेक्ट्रेट पहाड़ी के पास स्थित सरोल में मौजूद जमीन पर टावर बिल्डिंग निवासी संदेश सिंह तोमर व शिवेंद्र प्रताप ने वर्ष 2004 में न्यायिक मजिस्ट्रेट के यहां एक दावा पेश किया उनकी ओर से तर्क दिया गया कि इस भूमि को उनके दादा गेंदालाल व दुर्गा प्रसाद को पट्टे में मिली थी 30 साल से ज्यादा इस जमीन पर उनके द्वारा खेती की जा रही है जबकि इस मामले में शासन ने तर्क दिया था कि जमीन शासकीय है और कुछ जमीन वन विभाग की है ऐसे में जमीन को पट्टे पर नहीं दिया जा सकता इसलिए दावे को खारिज किया जाए लेकिन उस वक्त शासन कोर्ट में उचित गवाही नहीं करा पाया था जिस वजह से जमीन के डिग्री संदेश सिंह तोमर व शिवेंद्र प्रताप के नाम हो गई इसके बाद शासन ने अपर सत्र न्यायालय में अपील दायर की अपील को 24 दिन देवी से पेश करने के आधार पर खारिज कर दिया गया इसी आधार पर हाईकोर्ट मैं अपील की गई जहां से भी शासन की अपील खारिज हो गई इसके बाद शासन ने सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी दायर की जिस पर कोर्ट ने आदेश दिया कि जमीन काफी कीमती है इसलिए शासन को उसका पक्ष रखने का पूरा मौका दिया जाए।


Conclusion:वीओ-- सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर अपर सत्र न्यायालय में एक बार फिर इस मामले में अपील को सुना गया कोर्ट में शासन का पक्ष रखते हुए लोक अभियोजक द्वारा तर्क दिया गया कि दोनों सर्वे क्रमांक शासकीय हैं वहीं रिकॉर्ड में हेराफेरी करके दस्तावेज पेश किए गए हैं जिसमें कुछ भूमि वन विभाग की भी है वन विभाग की भूमि को वन अधिनियम की धारा के तहत किसी को पट्टे पर नहीं दिया जा सकता इसलिए डिग्री के आदेश को निरस्त किया जाए दोनों पक्षों को सुनने के बाद कोर्ट ने न्यायिक मजिस्ट्रेट के डिग्री के फैसले को निरस्त कर दिया और जमीन को शासन के मालिकाना हक की माना।

बाइट--बृज मोहन श्रीवास्तव--लोक अभियोजक, जिला न्यायालय ग्वालियर
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