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'बेटी की पेटी' का रियलिटी चेक, ग्वालियर पुलिस का अभियान हुआ फेल

ग्वालियर पुलिस द्वारा दिसंबर में शहर की बेटियों और महिलाओं के लिए 'बेटी की पेटी' अभियान चलाया गया. ETV भारत की टीम ने जब इस अभियान का रियलिटी चेक किया तो पाया कि पुलिस की ये कोशिश पूरी तरह फेल हो चुकी है.

campaign beti ki peti is failed
'बेटी की पेटी' का रियलिटी चेक
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Published : Jan 27, 2020, 7:27 PM IST

Updated : Jan 27, 2020, 7:41 PM IST

ग्वालियर। चंबल-अंचल बेटियों की सुरक्षा के लिए बदनाम माना जाता है. इसको लेकर ग्वालियर पुलिस ने दो महीने पहले एक अभियान की शुरुआत की थी. जिसका नाम रखा 'बेटी की पेटी.' इस अभियान को शुरू करने के लिए ग्वालियर पुलिस और खुद एडीजी राजा बाबू सिंह ने शहर के कॉलेज, यूनिवर्सिटी और गर्ल्स हॉस्टल में 'बेटी की पेटी' लगवाई. यदि महिला और लड़की अपने आप को असुरक्षित महसूस करती हैं और वो अपने माता-पिता से बोलने में भी संकोच करती हैं, तो वो अपनी शिकायत इस पेटी में आवेदन डालकर कर सकती हैं. इसका रियलिटी चेक करने के लिए आज हमारी टीम 'बेटी की पेटी' का जायजा लिया.

'बेटी की पेटी' का रियलिटी चेक

इसकी पड़ताल करने के लिए टीम जीवाजी यूनिवर्सिटी के कैंपस में लगी 'बेटी की पेटी' के पास पहुंची तो, वहां के हालात कुछ और ही नजर आए. कैंपस में 'बेटी की बेटी' जब से लगाई गई है, तब से इसका ताला भी नहीं खुला है. इस बात का खुलासा वहां पर बैठे चौकीदार ने किया. चौकीदार का कहना है कि, यहां पर कोई भी महिला, पुलिस अधिकारी इस पेटी का ताला खोलने के लिए नहीं आई. इसमें कुछ लड़कियों ने अपने शिकायती आवेदन तो डाले हैं, लेकिन इसका ताला आज तक नहीं खुला है.

'बेटी की पेटी' का रियलिटी चेक

वहीं कैंपस में मौजूद लड़कियों से बात की, तो उनका कहना है की मुहिम महिलाओं के लिए एक वरदान साबित हो सकती थी, लेकिन प्रचार- प्रसार के अभाव में और पुलिस की उदासीनता के चलते ये अभियान पूरी तरह फेल हो गया. जब से ये पेटी इस कैंपस में लगाई गई है, तब से पुलिस का कोई भी अधिकारी इस पेटी की सूरत तक देखने नहीं पहुंचा.

ग्वालियर पुलिस ने दिसंबर महीने की शुरुआत में गर्ल्स स्कूल, कॉलेज और अन्य सार्वजनिक स्थानों पर 'बेटी की पेटी' लगाई थी. जिनका उद्देश्य था कि यदि कोई महिला या लड़की किसी भी प्रकार की परेशानी में है, तो अपनी शिकायत 'बेटी की पेटी' के जरिए कर सके.

इस बारे में ETV भारत की टीम ने जब ग्वालियर के पुलिस कप्तान नवनीत भसीन से बात की, तो उन्होंने भी माना कि अभियान के असफल होने का सबसे बड़ा कारण यही है कि, इसकी जानकारी महिलाओं और लड़कियों तक नहीं पहुंची है. इसके लिए सभी थाना प्रभारी और अन्य अधिकारियों को निर्देश दिए गए हैं. कि वो अपने-अपने इलाके के स्कूल, कॉलेजों में जाएं और बच्चियों को इसके बारे में जानकारी दें.

ग्वालियर। चंबल-अंचल बेटियों की सुरक्षा के लिए बदनाम माना जाता है. इसको लेकर ग्वालियर पुलिस ने दो महीने पहले एक अभियान की शुरुआत की थी. जिसका नाम रखा 'बेटी की पेटी.' इस अभियान को शुरू करने के लिए ग्वालियर पुलिस और खुद एडीजी राजा बाबू सिंह ने शहर के कॉलेज, यूनिवर्सिटी और गर्ल्स हॉस्टल में 'बेटी की पेटी' लगवाई. यदि महिला और लड़की अपने आप को असुरक्षित महसूस करती हैं और वो अपने माता-पिता से बोलने में भी संकोच करती हैं, तो वो अपनी शिकायत इस पेटी में आवेदन डालकर कर सकती हैं. इसका रियलिटी चेक करने के लिए आज हमारी टीम 'बेटी की पेटी' का जायजा लिया.

'बेटी की पेटी' का रियलिटी चेक

इसकी पड़ताल करने के लिए टीम जीवाजी यूनिवर्सिटी के कैंपस में लगी 'बेटी की पेटी' के पास पहुंची तो, वहां के हालात कुछ और ही नजर आए. कैंपस में 'बेटी की बेटी' जब से लगाई गई है, तब से इसका ताला भी नहीं खुला है. इस बात का खुलासा वहां पर बैठे चौकीदार ने किया. चौकीदार का कहना है कि, यहां पर कोई भी महिला, पुलिस अधिकारी इस पेटी का ताला खोलने के लिए नहीं आई. इसमें कुछ लड़कियों ने अपने शिकायती आवेदन तो डाले हैं, लेकिन इसका ताला आज तक नहीं खुला है.

'बेटी की पेटी' का रियलिटी चेक

वहीं कैंपस में मौजूद लड़कियों से बात की, तो उनका कहना है की मुहिम महिलाओं के लिए एक वरदान साबित हो सकती थी, लेकिन प्रचार- प्रसार के अभाव में और पुलिस की उदासीनता के चलते ये अभियान पूरी तरह फेल हो गया. जब से ये पेटी इस कैंपस में लगाई गई है, तब से पुलिस का कोई भी अधिकारी इस पेटी की सूरत तक देखने नहीं पहुंचा.

ग्वालियर पुलिस ने दिसंबर महीने की शुरुआत में गर्ल्स स्कूल, कॉलेज और अन्य सार्वजनिक स्थानों पर 'बेटी की पेटी' लगाई थी. जिनका उद्देश्य था कि यदि कोई महिला या लड़की किसी भी प्रकार की परेशानी में है, तो अपनी शिकायत 'बेटी की पेटी' के जरिए कर सके.

इस बारे में ETV भारत की टीम ने जब ग्वालियर के पुलिस कप्तान नवनीत भसीन से बात की, तो उन्होंने भी माना कि अभियान के असफल होने का सबसे बड़ा कारण यही है कि, इसकी जानकारी महिलाओं और लड़कियों तक नहीं पहुंची है. इसके लिए सभी थाना प्रभारी और अन्य अधिकारियों को निर्देश दिए गए हैं. कि वो अपने-अपने इलाके के स्कूल, कॉलेजों में जाएं और बच्चियों को इसके बारे में जानकारी दें.

Intro:ग्वालियर- ग्वालियर चंबल अंचल बेटियों की सुरक्षा के लिए बदनाम जाना चाहता है। इसको लेकर ग्वालियर पुलिस ने दो महीने पहले एक अभियान की शुरुआत की थी जिसका नाम था बेटी की पेटी... इस अभियान को शुरू करने के लिए ग्वालियर पुलिस और खुद एडीजी राजा बाबू ने शहर के कॉलेज, यूनिवर्सिटी और गर्ल्स हॉस्टल में बेटी की पेटी लगवाई। ताकि शहर की कोई भी महिला और लड़की अपने आप को असुरक्षित महसूस करती है और वह अपने माता-पिता से बोलने में ही संकोच करती है तो वह अपनी शिकायत इस पेटी मे आवेदन डालकर कर सकती है.... इसका ही रियलिटी चेक करने के लिए आज ईटीवी भारत की टीम "बेटी की पेटी" के पास पहुंची और जानने की कोशिश की कि क्या वाकई यह मुहिम महिलाओं के लिए सही काम कर रही है या नही.....


Body:जब हम इसकी पड़ताल करने के लिए जीवाजी यूनिवर्सिटी के कैंपस में लगी बेटी की पेटी के पास पहुंचे तो वहां के हालात कुछ और ही नजर आए.. कैंपस में या बेटी की बेटी जब से लगाई गई है तब से इसका ताला भी नहीं खुला है। इस बात का खुलासा वहां पर बैठे चौकीदार ने किया। चौकीदार का कहना है कि यहां पर कोई भी महिला पुलिस अधिकारी इस पेटी का ताला खोलने के लिए नहीं आया है। इसमें कुछ लड़कियों ने अपने शिकायती आवेदन तो डाले हैं लेकिन इसका ताला आज तक नहीं खुला है। वही कैंपस में मौजूद जब लड़कियों से बात की तो उनका कहना है की मुहिम महिलाओं के लिए एक वरदान साबित हो सकती थी। लेकिन प्रचार-प्रसार के अभाव में और पुलिस की उदासीनता के चलते पूरी तरह से खत्म हो चुकी है। जब से यह पेटी इस कैंपस में लगाई गई है तो उसे पुलिस का कोई भी अधिकारी इस पेटी की सूरत तक नहीं देखने आया है। वही उनका कहना है कि कुछ लड़कियों ने अपनी इस पेटी में शिकायत भी की होगी तो वह ताले बंद पेटी में धूल खा रही होगी। ग्वालियर पुलिस द्वारा शुरू की गई अभियान बेटी की पेटी प्रचार-प्रसार एवं जागरूकता के अभाव में दम तोड़ती नजर आ रही है। शहर के विभिन्न इलाकों में लगाई गई बेटियों में महज चंद शिकायतें ही आई है जिन की भी जानकारी पुलिस कप्तान को नहीं है कि आखिर किस तरह की शिकायतें बेटियों के माध्यम से पहुंची है।


Conclusion:दरअसल ग्वालियर पुलिस ने दिसंबर महीने की शुरुआत में गर्ल्स स्कूल, कॉलेज और अन्य सार्वजनिक स्थानों पर पुलिस के द्वारा बेटी की पेटी लगाई गई थी जिनका उद्देश्य था कि यदि कोई महिला या लड़की किसी भी प्रकार की परेशानी में है तो अपनी शिकायत पेटी में डाल सकती है। इसके साथ ही इस बात को भी सुनिश्चित किया गया था कि शिकायतकर्ता का नाम उजागर नहीं किया जाएगा। पुलिस को उम्मीद थी कि जो लड़कियां किसी डर की वजह से अपने साथ होने वाली हिंसा के बारे में किसी को नहीं बता पाती है इस पेटी के माध्यम से पुलिस को बताएंगे।लेकिन ऐसा नहीं हुआ। इस बारे में हमने ग्वालियर के पुलिस कप्तान नवनीत भसीन से बात की तो उन्होंने भी माना अभी तक असफल होने का सबसे बड़ा कारण यही है कि इसकी जानकारी महिलाओं और लड़कियों तक नहीं पहुंची है कि आखिर क्यों लगाई गई है। और उन्हें कैसे शिकायत करनी है। इसके लिए सभी थाना प्रभारी और अन्य अधिकारियों को निर्देश दिए हैं अपने अपने इलाके में पढ़ने वाले स्कूल कॉलेजों में जाएं और बच्चियों को इसके बारे में जानकारी दें। ताकि आने वाले समय में यदि उनके साथ किसी प्रकार की कोई हिंसा हो तो वह इसकी जानकारी पुलिस को दे सकें।

ओपनिंग पीटीसी - अनिल गौर

वॉक थ्रू - लड़कियों से बातचीत

बाईट - नवनीत भसीन , एसपी ग्वालियर
Last Updated : Jan 27, 2020, 7:41 PM IST
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