ग्वालियर। चंबल-अंचल बेटियों की सुरक्षा के लिए बदनाम माना जाता है. इसको लेकर ग्वालियर पुलिस ने दो महीने पहले एक अभियान की शुरुआत की थी. जिसका नाम रखा 'बेटी की पेटी.' इस अभियान को शुरू करने के लिए ग्वालियर पुलिस और खुद एडीजी राजा बाबू सिंह ने शहर के कॉलेज, यूनिवर्सिटी और गर्ल्स हॉस्टल में 'बेटी की पेटी' लगवाई. यदि महिला और लड़की अपने आप को असुरक्षित महसूस करती हैं और वो अपने माता-पिता से बोलने में भी संकोच करती हैं, तो वो अपनी शिकायत इस पेटी में आवेदन डालकर कर सकती हैं. इसका रियलिटी चेक करने के लिए आज हमारी टीम 'बेटी की पेटी' का जायजा लिया.
इसकी पड़ताल करने के लिए टीम जीवाजी यूनिवर्सिटी के कैंपस में लगी 'बेटी की पेटी' के पास पहुंची तो, वहां के हालात कुछ और ही नजर आए. कैंपस में 'बेटी की बेटी' जब से लगाई गई है, तब से इसका ताला भी नहीं खुला है. इस बात का खुलासा वहां पर बैठे चौकीदार ने किया. चौकीदार का कहना है कि, यहां पर कोई भी महिला, पुलिस अधिकारी इस पेटी का ताला खोलने के लिए नहीं आई. इसमें कुछ लड़कियों ने अपने शिकायती आवेदन तो डाले हैं, लेकिन इसका ताला आज तक नहीं खुला है.
वहीं कैंपस में मौजूद लड़कियों से बात की, तो उनका कहना है की मुहिम महिलाओं के लिए एक वरदान साबित हो सकती थी, लेकिन प्रचार- प्रसार के अभाव में और पुलिस की उदासीनता के चलते ये अभियान पूरी तरह फेल हो गया. जब से ये पेटी इस कैंपस में लगाई गई है, तब से पुलिस का कोई भी अधिकारी इस पेटी की सूरत तक देखने नहीं पहुंचा.
ग्वालियर पुलिस ने दिसंबर महीने की शुरुआत में गर्ल्स स्कूल, कॉलेज और अन्य सार्वजनिक स्थानों पर 'बेटी की पेटी' लगाई थी. जिनका उद्देश्य था कि यदि कोई महिला या लड़की किसी भी प्रकार की परेशानी में है, तो अपनी शिकायत 'बेटी की पेटी' के जरिए कर सके.
इस बारे में ETV भारत की टीम ने जब ग्वालियर के पुलिस कप्तान नवनीत भसीन से बात की, तो उन्होंने भी माना कि अभियान के असफल होने का सबसे बड़ा कारण यही है कि, इसकी जानकारी महिलाओं और लड़कियों तक नहीं पहुंची है. इसके लिए सभी थाना प्रभारी और अन्य अधिकारियों को निर्देश दिए गए हैं. कि वो अपने-अपने इलाके के स्कूल, कॉलेजों में जाएं और बच्चियों को इसके बारे में जानकारी दें.