ग्वालियर।देश का सबसे बड़ा एयरबेस सेंटर ग्वालियर के महाराजपुरा इलाके में है. राफेल से लेकर अन्य हर तरह के अत्याधुनिक फाइटर प्लेन प्रशिक्षण उड़ान भरते हैं, लेकिन इसके आसपास मौजूद लगभग दो सौ से ज्यादा नीलगायों ने इनमे अड़चन डाल रखी है. अब इनको काबू करने के लिए सरकार पहली बार बोमा तकनीक का इस्तेमाल करने की तैयारी में है. इस तकनीक से रणनीतिक ढंग से एक बाडा बनाकर इन्हें पकड़ा जाता है.
फाइटर प्लेन उड़ाने में दिक्कत: वैसे तो नील गायों ने पूरे उत्तर भारत में आतंक फैला रखा है. उनके झुंड मध्यप्रदेश में भी करोड़ो रूपये की खड़ीं फसल उजाड़कर चले जाते हैं. अनेक बार यह समस्या विधानसभा में भी चर्चा का विषय बन चुकी है, लेकिन इस बार नीलगायों ने देश की सुरक्षा के लिए तैनात लड़ाकू विमानों की उड़ानों में भी चिंताजनक ढंग से खलल डालना शुरू कर दिया है. ग्वालियर के महाराजपुरा में भारतीय वायुसेना के सबसे बड़ा बेस स्टेशन है. जो कई किलोमीटर भूभाग पर फैला है. मिराज से लेकर फ्रांस की चर्चित राफेल जैसे अत्याधुनिक लड़ाकू विमानों का हैंगर भी यहीं है. जहां इन फाइटर विमानों की नियमित अभ्यास उड़ानें होती रहती है लेकिन इस इलाके में नीलगायों के कई बड़े झुंडों ने बसेरा बना रखा है जो हवाई पट्टी तक पर कुलांचें भरने लगते है.
बोमा तकनीक का प्रस्ताव: यहां अभ्यास उड़ान के दौरान किसी खतरनाक दुर्घटना की आशंका बनी रहती है. एक बार तो दुर्घटना हो भी चुकी है. इस समस्या को लेकर भारतीय रक्षा मंत्रालय ने मध्यप्रदेश सरकार से सहयोग मांगा है, लेकिन यह क्षेत्र अत्यंत संवेदनशील होने के कारण वन विभाग ने इसके लिए बोमा तकनीक का इस्तेमाल करने का प्रस्ताव भेजा है. इससे नील गाय को पकड़ा जा सकता है. पहले इन्हें मारने का प्रस्ताव भेजा गया था, लेकिन संवेदनशीलता के चलते इसे मंजूरी नही मिली तो इस पर विचार शुरू हुआ.
क्या होती है बोमा तकनीक: जंगली जानवर और पशुओं को पकड़ने की यह तकनीक दक्षिण अफ्रीका में उपयोग की जाती है ताकि उनकी जान भी बच जाए और वे पकड़े भी जा सकें. विशेषज्ञों के अनुसार इसमें नील गाय को पकड़ने के लिए बाकायदा एक स्थान को चयनित कर एक खास हैबिटेट तैयार किया जाता है जो नील गाय फ्रेंडली हो फिर वहां नमक बिछाया जाता और अन्य ऐसे केमिकल डाले जाते हैं जिनकी गन्ध नीलगाय को आकर्षित करती हैं. इनके सहारे नीलगायों के झुंड उस क्षेत्र में ही आ जाते है. दरअसल यह एक बाडा होता है. फिर इसका एक गेट बनांया जाता है. जहां खास तरह से खुले हुए ट्रक लगा दिए जाते है और जैसे ही नील गाय उस ट्रक में घुसती है वैसे ही वह कैद हो जाती है.
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वन विभाग कर रहा है इसकी तैयारी: एसडीओ फारेस्ट राजीव कौशल का कहना है कि अभी इस मामले को लेकर पत्र व्यवहार चल रहा है. एक बार विशेषज्ञों के साथ सीसीएफ और डीएफओ के नेतृत्व में टीम स्थल निरीक्षण कर चुकी है और प्रोजेक्ट भी बन चुका है. सरकार से स्वीकृति मिलते ही विशेषज्ञों द्वारा बोमा हेबिटेट बनाने का काम शुरू होगा. बता दे नीलगाय को सबसे फुर्तीला और मजबूत देहयष्टि वाला जानवर माना जाता है, लेकिन इसे पकड़ना या मारना बहुत मुश्किल होता है. इसकी वजह उसकी देह ही है. वह इतनी छलांग लगाते हुए भागती है कि गोली का निशाना भी चूक जाता है. यह घोड़े के आकार की होती है, लेकिन इसका पीछे हिस्सा आगे के हिस्से से कम बड़ा होता है. इसलिए यह दौड़ते में अलग नजर आती है. निशाना भी चूक जाता है. इसका बजन भी काफी होता है. हर नीलगाय औसतन डेढ़ सौ से ढाई सौ किलो तक वजन की होती है.