ग्वालियर। मध्य प्रदेश की एक ऐसी लेडी ऑफिसर जिसका जीवन संघर्षों से भरा रहा है. जिसने बचपन में अपने सपने को पूरा करने के लिए कई यातनाओं को झेला. इस लेडी ऑफिसर के परिवार वालों ने कम उम्र में उसकी शादी करा दी थी. उसके बाद ससुराल वालों ने उसे नौकरानी बना कर रखा. हालात यह थे कि ससुराल वालों की यातनाओं के कारण टॉयलेट में जाकर रोटी खानी पड़ी थी, लेकिन इसके बावजूद इस महिला ने अपने जीवन में हिम्मत नहीं हारी और आज मध्यप्रदेश के ग्वालियर में नगरीय प्रशासन में जॉइंट डायरेक्टर के पद पर पदस्थ है. इस लेडी ऑफिसर का नाम सविता प्रधान गौड़ है. जिनका जीवन बेहद संघर्षमय रहा है.
लेडी ऑफिसर की कहानी: ग्वालियर में जॉइंट डायरेक्टर के पद पर पदस्थ सविता प्रधान गौड़ एक आदिवासी परिवार से है. उन्होंने बताया है कि मेरा जन्म 1982 में बालाघाट जिले की मंडी गांव में हुआ था. जहां लगभग अधिकांश लोग गरीब ही थे. उन्हीं में शामिल मेरे पिता भी मजदूरी करके ही हमारा पालन-पोषण करते थे. बचपन से ही पढ़ने में मेरी काफी रूचि थी और मेरे माता पिता ने मुझे बेहद प्यार और दुलार से रखते थे. उन्होंने बताया कि मैंने गांव में दसवीं तक स्कूल की पढ़ाई की. उसके बाद 12वीं की पढ़ाई सात किलो मीटर दूर दूसरे गांव के स्कूल से की. इसके बाद मेरी जिंदगी पूरी तरह से पलटने लगी. 12वीं पास करते ही मेरे पिता ने मेरी शादी कराने के लिए रिश्ता देखना शुरु कर दिया. मेरे लिए भी एक रसूखदार परिवार से रिश्ता आया. अच्छे प्रभावी लोग थे, सभी शिक्षक थे. चिकनी चुपड़ी बातें की मुझे मेरे परिवार को डॉक्टर बनाने का सपना दिखाया और शादी की तारीख पक्की की. तय हुई तारीख पर शादी हुई.
सविता प्रधान गौड़ के संघर्ष के दिन: ज्वाइंट डायरेक्टर सविता प्रधान गौड़ ने बताया कि जब वह पहले दिन ससुराल पहुंची. तब तो सब कुछ ठीक-ठाक था. ससुराल जाकर पता चला कि मेरे पति मुझसे 12 साल बडे़ हैं, लेकिन मैं इस बात से खुश थी कि अब आगे की पढ़ाई करने को मिलेगी और मैं भी डॉक्टर बन पाऊंगी. इस एक खुशी ने मैंने सारे गमों को दबा दिया, लेकिन दूसरे दिन से ही पति का एक नया चेहरा सामने आया जो काफी क्रूरता भरा था. रोज की प्रताड़ना, रोज का मारना पीटना यह सब इतना हो रहा था कि मुझे पता ही नहीं चल रहा था कि आखिर यह सब मेरे साथ क्यों हो रहा है.
यातनाओं से परेशान होकर मौत की उम्मीद: सविता प्रधान गौड़ ने बताया कि असहनीय दर्द और यातनाओं को झेलते-झेलते कुछ दिन बाद पता चला कि पति का कहीं और अफेयर है. इसके साथ ही पति और परिवार वाले रोज यह कहते थे कि हम तुम्हें नौकरानी बना कर लाए हैं, इसलिए नौकरानी की हैसियत से यहां पर रहो. वहीं पति ने तो मेरे बर्दाश्त की सारी हदों को पार कर दिया था. सविता ने बताया कि मेरे मन में मारने और मरने का विचार आया. ऐसा लगता था कि मेरी जिंदगी पूरी तरह पलट गई है, मैं घर के एक कोने में जाकर पूरी रात सिसक-सिसक कर रोती थी और सोचती थी कि मेरी मौत कब आएगी, जिससे मैं इस जीवन से छुटकारा पाऊं.
टॉयलेट में खाती थी रोटी: ईटीवी भारत से बात करते हुए लेडी ऑफिसर की आंखे नम हो गई. उन्होंने अपने दर्द को बयां करते हुए कहा कि 1998 में जब मेरी शादी हुई तो और लड़कियों की तरह मेरे भी कई अरमान थे, लेकिन मेरी हैसियत उस घर में नौकरानी के सिवा कुछ और नहीं थी. नौकरानी भी ऐसी जिसे घर के लोगों के अनुसार सामान दिया जाता था. खाना बनाते समय ही चंद रोटियां मैं अपने कपड़ों में रख लेती थी, फिर टॉयलेट में जाकर खाती थी. ऑफिसर आज भी जब उस वक्त को याद भी करती है तो रूह कांप जाती है. सविता प्रधान गौड़ ने बताया कि पिता समान ससुर भी पीछे नहीं रहे. उन्होंने भी मर्यादाओं की सीमा को लांघ दिया. मुझसे मालिश करवाते थे, आज जब उस वक्त को याद करती हूं तो सिर्फ आंखों में आंसू आते हैं.
संघर्ष में बच्चे को दिया जन्म: ऑफिसर ने बताया कि कई संघर्ष और यातनाओं के दौरान बच्चों को भी जन्म दिया, लेकिन उनके जीवन में संघर्ष कम नहीं हुआ. एक दिन उन्होंने ठान लिया कि वह अपने बच्चों को लेकर कहीं बाहर मजदूरी करेंगी. उसके बाद वह अपने बच्चों को लेकर घर से निकल गई. उसके बाद अपनी एक कजिन सिस्टर के यहां पर पहुंच गई. उन्होंने उससे मदद मांगी और उसके बाद वहीं पर रहने लगी. वहां सिलाई-बुनाई कर बच्चों का पालन पोषण करने लगी. उन्होंने बताया कि ग्रेजुएशन तो मैंने ससुराल में रहकर ही प्राइवेट कर ली थी. जिसके लिए मेरे एक परिवारिक भाई ने मदद भी की. तभी एक दिन अखबार पढ़ते वक्त मैंने सिविल सर्विसेज का ऐड देखा, जिसमें सबसे पहली नजर मेरी सैलरी पर पड़ी जो 12000 रुपए थी. बस मैंने उस नौकरी को पाना अपने जीवन का लक्ष्य बना लिया. हालांकि मुझे नहीं पता था कि यह किस तरह से मिलेगी.
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तैयारी कर बनी अधिकारी: इसके लिए मैंने आसपास के लोगों से और ग्रेजुएशन के दौरान मेरी हेल्प करने वाले भाई से जानकारी ली तो उन्होंने मुझे पूरी जानकारी दी. इसके साथ ही तैयारी के लिए कुछ किताबें भी दी. मैं अपने जीवन को एक नई दिशा देने के लिए जुट गई. इस दौरान काफी कमजोर भी हो गई थी. उन्होंने बताया कि मुझे याद भी कम रहने लगा था, कई चीजों को कई बार पढ़ने के बाद मुझे वह चीजें याद होती थी, लेकिन सारे संघर्षों को पूरा करते हुए मैंने एग्जाम को पास कर लिया. अगला आदेश आया कि जिस परीक्षा को मैंने पास किया है, उस पर स्टे लग गया है. तब ऐसा लगा कि शरीर में खून की एक भी बूंद न बची. फिर भी अंतर्मन से आवाज आई कि एक प्रयास और करते हैं. मैंने सिविल सर्विसेज का एग्जाम दिया. इस दौरान मेरे द्वारा दी गई पहली परीक्षा का भी कॉल लेटर आ गया. जिसमें मुझे नरसिंहपुर में म्युनिसिपल ऑफिसर के पद पर तैनात होने की जिम्मेदारी दी गई. बस फिर क्या था मेरी खुशी का कोई ठिकाना ना रहा. उन्होंने बताया मैंने इंटरव्यू नहीं दिया, सीधे जाकर ज्वाइन कर लिया. फिर मेरी जीवन की एक नई शुरुआत हुई. मुझे लगने लगा कि अब मैं अपने बच्चों का लालन-पालन बहुत अच्छे तरीके से कर सकूंगी.
पति से तलाक लेकर की दूसरी शादी: सविता ने बताया कि परेशानियों का सबब कभी भी नहीं थमता, मेरी नौकरी लगने के बाद मेरा पुराना पति जो केवल नाम मात्र का पति था. वह मेरे पास फिर से आने लगा. वह साथ जाने के लिए दबाव बनाता था. जब बात नहीं मानी तो एक बार मारपीट भी की. इसके बाद मैंने कानून का सहारा लेते हुए लीगल तरीके से उस व्यक्ति से तलाक लिया और उसके नाम एफआईआर भी की. इसके बाद 2007 में हमारा तलाक हो गया था. तलाक के कुछ सालों बाद मैंने 2015 में दोबारा शादी की और आज मैं अपने तीनों बच्चों और पति के साथ एक खुशहाल जीवन व्यतीत कर रही हूं.