ग्वालियर। मध्य प्रदेश के ग्वालियर में गजराराजा मेडिकल कॉलेज में एक अजीबो गरीब मामला सामने आया है. जीआरएमसी मेडिकल कॉलेज के डीन ने मुख्य व जिला चिकित्सा अधिकारी आरके राजोरिया को पत्र लिखा है. जिसमें लिखा गया है कि 'निजी अस्पतालों द्वारा बिना किसी सूचना के जयारोग्य अस्पताल समूह के लिए मरीज रेफर कर दिए जाते हैं. ऐसे में उन मरीजों की स्थिति बेहद नाजुक और मरणासन्न वाली होती है. इसलिए निजी अस्पतालों के संचालक अपने मरीज को रेफर करने से पूर्व सहमति के लिए संबंधित विभाग के चिकित्सकों से संपर्क जरूर करें. अब मेडिकल कॉलेज के डीन द्वारा लिखे गए इस पत्र को लेकर बवाल मचा हुआ है.
जीआरएमसी के डीन ने लिखा पत्र: जीआरएमसी मेडिकल कॉलेज के डीन अक्षय निगम ने पत्र लिखने की सहमति जताते हुए कहा है कि "कोरोना काल से यह चला आ रहा है कि बिना किसी रेफरेंस और बिना कारण के मरीज सीधे भर्ती हो रहे हैं, वह मरीज भर्ती हो रहे हैं, जो निजी अस्पतालों में कई दिनों से भर्ती हैं. ऐसे मरीज को निजी अस्पताल गंभीर स्थिति में या मरणासन्न स्थिति में रेफर कर रहे हैं. जब मरीज को लेकर परिजन गंभीर अवस्था में जयारोग्य अस्पताल में लेकर आते हैं और उनकी इलाज के दौरान मौत हो जाती है या रास्ते में ही दम तोड़ देते हैं. ऐसे में उन परिजनों को नहीं पता होता है कि उनकी मौत का कारण क्या है, फिर वह गंभीर आरोप लगाते हैं."
मरीज रेफर करने से पहले अस्पताल से करें संपर्क: डीन ने कहा "इसलिए यह आदेश निकाला है कि प्राइवेट अस्पताल का संचालक या डॉक्टर मरीज भेजने से पहले वह अस्पताल के विभाग अध्यक्ष या डॉक्टर से संपर्क करें और जानकारी ले पलंग खाली है या नहीं. अगर खाली है तो लेकर आए. साथ में जो डॉक्टर मरीज को जयारोग्य अस्पताल में रेफर कर रहा है, उसके साथ एक अटेंडर साथ में आए. जिसमें वह डॉक्टर को बता सके कि इसको क्या बीमारी है. वहीं सीएमएचओ द्वारा पत्र पर आपत्ति जताने को लेकर उन्होंने कहा कि "शायद उन्होंने पत्र को सही तरीके से पढ़ा नहीं है. पहले वह सही तरीके से उस पत्र के लिखे पर चिंतन करें तो अपने आप यह पत्र उनका व्यावहारिक लगने लगेगा."
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सीएमएचओ ने पत्र पर जताई आपत्ति: वहीं डीन के इस पत्र को लेकर सीएमएचओ डॉक्टर आरके राजोरिया ने आपत्ति जताई है. उन्होंने कहा है कि "जिस तरीके से उसे पत्र में लिखा है. वह व्यावहारिक नहीं है. जिस तरीके से उन्होंने आदेश जारी किया है. उसका पालन करना संभव नहीं है. किसी भी आदेश द्वारा प्रतिबंध लगाने से पहले उसके परिणामों पर गौर करना बहुत जरूरी होता है और उसके दुष्परिणामों को भी देखना चाहिए. जब कोई मरीज गंभीर होता है तो उसे रेफर किया जाता है. अस्पताल में भी सभी डॉक्टर ऐसे नहीं हैं, जो झोलाछाप हैं वह भी विशेषज्ञ हैं. अगर उन डॉक्टरों को आवश्यक है कि यह मरीज गंभीर है तो वह मेडिकल कॉलेज भेजेंगे और मरीज को भर्ती भी करना चाहिए, लेकिन जिस तरीके से मेडिकल कॉलेज प्रबंधन द्वारा जो आदेश जारी किए हैं, वह काफी गंभीर और चिंतनीय है.