ग्वालियर। फूलबाग में फूल की तरह सहेज कर रखे गये करोड़ों के हीरे-पन्ने, सोने-चांदी साल में सिर्फ एक बार ही निकाले जाते हैं, जिससे जन्माष्टमी पर राधा-कृष्ण का श्रंगार किया जाता है. सिंधिया के रियासत काल में निर्मित गोपाल मंदिर को जन्माष्टमी पर दुल्हन की तरह सजाया जाता है, राधा-कृष्ण की मूर्तियों का कीमती गहनों से श्रंगार किया जाता है, जिसे देखने के लिए लोग देश-विदेश से आते हैं. लगभग 100 साल पुराने इस मंदिर में जन्माष्टमी की तैयारियां पहले से ही शुरु कर दी जाती है.
सांप्रदायिक सद्भाव का प्रतीक माने जाने वाले गोपाल मंदिर की स्थापना 1921 में माधवराव प्रथम ने की थी. जिसके एक तरफ निर्मित मस्जिद में दिन में पांच बार इबादत की जाती है, जबकि दूसरी ओर स्थित गुरूद्वारे में सुबह-शाम अरदास की जाती है. मस्जिद-गुरुद्वारे के बीच तामीर किये गये मंदिर में श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर भगवान का विशेष श्रंगार किया जाता है.
खास बात ये है कि मंदिर में राधा-कृष्ण की मूर्तियों को करोड़ों रुपए के हीरे-जवाहरात से सजाया जाता है. जिसमें 55 पन्नों जड़ित सात लड़ी का हार, सोने की बासुरी, सोने की नथ और चांदी के बर्तन शामिल हैं. हीरे-मोती, पन्ने जैसे बेशकीमती रत्नों से सुसज्जित मुकुट और आभूषण भगवान को पहनाए जाते हैं. जिनकी कीमत लगभग 50 करोड़ रुपये से भी ज्यादा है. बताया जाता है कि आजादी के पहले तक भगवान इन जेवरातों से श्रंगारित रहते थे, जिसे आजादी के बाद बैंकों के लॉकर में कैद कर दिया गया. 2007 में मंदिर के देखरेख की जिम्मेदारी नगर निगम को मिलने के बाद हर जन्माष्टमी पर राधा-कृष्ण की प्रतिमाओं का इन जेवरातों से श्रंगार किया जाने लगा. यही वजह है कि जन्माष्टमी पर सुरक्षा के विशेष इंतजाम किये जाते हैं.