ग्वालियर। प्रदेश की महिला बाल विकास मंत्री इमरती देवी अपना विधानसभा उपचुनाव हार चुकी हैं. वे अपने रिश्ते में समधी लगने वाले सुरेश राजे से करीब आठ हजार से ज्यादा मतों से पराजित हुई हैं. अपनी जीत पर कांग्रेस के विजयी प्रत्याशी सुरेश राजे ने कहा कि इमरती देवी का दंभ क्षेत्र के विकास के प्रति उनकी बेरुखी और बड़बोलापन उनकी हार का कारण बना.
शुरआत में थे पीछे
सुरेश राजे शुरुआत में करीब 11 राउंड तक करीब तीन हजार से ज्यादा मतों से पीछे चल रहे थे. डबरा विधानसभा के 12 राउंड के बाद स्थिति में बदलाव आया और धीरे-धीरे कर सुरेश राजे आगे चलना शुरू हो गए. इसके बाद उनकी लीड लगातार 1000 से लेकर 8000 तक बढ़ती चली गई. कुल 24 राउंड की गिनती के बाद 8000 मतों से उनकी सुरेश राजे की जीत पक्की हो गई.
चर्चा में रही डबरा विधानसभा सीट
प्रदेश की सबसे चर्चित सीटों में से एक डबरा विधानसभा में इमरती देवी अपना पिछला चुनाव करीब 58000 मतों से जीती थीं. पिछले कुछ दिनों में प्रचार के दौरान उनके ऊपर और उनके द्वारा कहे गए शब्दों ने राजनीति को गर्म करके रखा था. पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ के द्वारा उन्हें आइटम कहने को बीजेपी ने मुद्दा बनाने की कोशिश की तो इमरती देवी ने अपनी जीत का दावा करते हुए कहा था कि उन्हें कलेक्टर चुनाव जिता देंगे और उनका मंत्री पद बरकरार रहेगा.
चौथी बार चुनाव मैदान में थी इमरती देवी
डबरा विधानसभा सीट से बीजेपी प्रत्याशी इमरती देवी 2008 से कांग्रेस के टिकिट पर इस सीट से लगातार तीन चुनाव जीतती आ रही हैं. जहां हर चुनाव में उनकी जीत का मार्जिन भी बढ़ता गया. 2018 के चुनाव में इमरती देवी ने बीजेपी के कप्तान सिंह को 57 हजार 446 हराया और कमलनाथ सरकार में मंत्री बनीं. लेकिन बाद में वे विधायकी से इस्तीफा देते हुए ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ बीजेपी में शामिल हो गईं और शिवराज सरकार में भी मंत्री बनाई गईं. लिहाजा मंत्री पद पर रहते हुए इमरती देवी ने चौथी बार चुनाव लड़ा है.
दिलचस्प रहा मुकाबला
2008 से पहले तक सामान्य रहीं डबरा विधानसभा सीट परिसीमन के बाद अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हो गई. बीजेपी प्रत्याशी इमरती देवी और कांग्रेस प्रत्याशी सुरेश राजे आपस में समधा-समधन हैं. तो दूसरी अहम बात यह है कि दोनों प्रत्याशी यहां दल बदलकर मैदान में उतरे थे. इमरती देवी पहले कांग्रेस में थी लेकिन सिंधिया के साथ बीजेपी में शामिल हो गईं. तो वहीं सुरेश राजे पहले बीजेपी में थे, लेकिन अब कांग्रेस के टिकिट पर चुनावी मैदान में आ गए थे. लिहाजा यहां मुकाबला और दिलचस्प हो गया था.
डबरा का इतिहास और अंकगणित
'आइटम' वाले बयान और सिंधिया के खास समर्थक के मैदान में होने के कारण खबरों में आई डबरा सीट की बात करें तो पिछले तीन चुनावों में यहां इमरती देवी ही विजय हासिल करती आई हैं. ये सीट 2008 तक अनारक्षित थी, लेकिन परिसीमन के बाद यहां का गणित बदला और डबरा अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हो गई, तभी से यहां कांग्रेस का दबदबा बढ़ गया और इमरती देवी ने यहां से जीत हासिल की. 1962 से लेकर अभी तक के चुनाव परिणाम पर नजर डालें तो डबरा की जनता दोनों दलों को बराबरी से मौका देती आई है. 1980 में भाजपा के अस्तित्व में आने के पहले भी संघ समर्थक पार्टियां यहां से जीत हासिल करती रही हैं.