ग्वालियर। हर नागरिक की काया को निरोगी रखने के लिए सरकारें तमाम जतन करती हैं, इसके लिए पैसा भी पानी की तरह बहाने से नहीं कतरातीं, फिर भी नजीता सिफर ही रहता है. भले ही इंदौर के स्वच्छता मॉडल का प्रदेश सरकार घूम-घूम कर ढिंढोरा पीट रही है, लेकिन ग्वालियर में एक साल में 60 करोड़ रूपए खर्च करके भी नगर निगम शहर को साफ-सुथरा करने में नाकाम साबित हो रहा है, जिसके चलते पिछले 10 महीने में 13 लाख मरीज अस्पताल पहुंच चुके हैं.
शहर की स्वच्छता सिर्फ फाइलों में अच्छी लगती है. जिसके चलते शहर में पीलिया, टाइफाइड, मलेरिया, दमा और टीवी के रोगियों की संख्या में बेतहासा बढ़ोत्तरी हो रही है, पिछले 10 महीने में 13 लाख मरीजों के इलाज पर स्वास्थ्य विभाग ने 70 करोड़ रुपए खर्च किया है. यदि निगम का अमला ठीक से अपनी जिम्मेदारी निभाता तो लोगों को बेवजह अस्पतालों के चक्कर न लगाना पड़ता और न ही सरकार को इतनी मोटी रकम बेवजह खर्च करनी पड़ती.
विकास के नाम पर खोदे गए गड्ढे, टूटी सड़कें, उड़ती धूल आवाम की सांसे रोकने के लिए काफी हैं. टूटी सड़कों के चलते लोग सर्वाइकल, रीड की हड्डी में परेशानी के अलावा हादसे भी लोगों को अस्पताल पहुंचा देते हैं, जबकि उड़ती धूल इन्फेक्शन की वजह बन रही है.
सांसद विवेक नारायण शेजवलकर भी मानते हैं कि हर साल बजट बढ़ता है, लेकिन नगर निगम के पास कचरा निस्तारण का कोई प्रबंध नहीं है. नगर निगम कमिश्नर संदीप माकिन का कहना है कि शहर में 200 से 300 कचरे के ढेर लगे थे, जो अब घटकर 20 से 25 पर आ गए हैं. कचरा गाड़ी की कमी होने की वजह से कुछ जगहें ऐसी हैं, जहां कचरों का ढेर लगा है.
गजरा राजा मेडिकल कॉलेज के प्रवक्ता डॉक्टर केपी रंजन का मानना है कि मौसम में बदलाव और गंदगी की वजह से बीमारी फैल रही है. उन्होंने लोगों को सलाह दी है कि जब भी लोग घर से निकलें तो मुंह ढक कर ही निकलें और खाने पीने की चीजों में भी सावधानी बरतें.
सरकार हर नागरिक को स्वास्थ्य सुविधाएं मुहैया कराने का दावा करती है, लेकिन ये दावे कितने सच हैं, इसकी जमीनी हकीकत बयां करने के लिए ग्वालियर शहर के आंकड़े ही काफी हैं.