ग्वालियर। मध्यप्रदेश हाईकोर्ट की ग्वालियर खंडपीठ ने विदिशा जिले के पिपरिया गांव में रहने वाले अनुसूचित जाति वर्ग के एक युवक को निचली कोर्ट द्वारा 3 साल की सजा से दंडित किए जाने के बाद उसकी अपील पर मंगलवार को सशर्त जमानत दे दी. हाईकोर्ट ने जो शर्त रखी है उसके पीछे न्यायालय का की सोच है कि अपराधी को सुधरने का मौका दिया जाए क्योंकि उसका पिछला ट्रेक रिकॉर्ड बेहतर रहा है.
खास बात यह है कि महाराज सिंह की एमए की परीक्षा बुधवार से शुरू हो रही है जिसमें उसे शामिल होना है. दरअसल प्रदेश के विदिशा जिले के गुलाबगंज थाना क्षेत्र में पिपरिया गांव में रहने वाले महाराज सिंह नामक अनुसूचित जाति के एक युवक को कुछ दिन पहले ही 3 साल की सजा से दंडित किया गया था. उस पर गांव की एक नाबालिग लड़की का गलत नियत से हाथ पकड़ने का आरोप था.
आरोपी के वकील का कहना है कि गांव में एक ही हैंड पंप पानी के लिए मौजूद था क्योंकि युवक अनुसूचित जाति वर्ग का था इसलिए उसे पानी भरने से बाकी लोग रोकते थे इसे लेकर महाराज सिंह और उसके परिवार का आये दिन गांव वालों से झगड़ा होता रहता था. इसी के चलते 29 अगस्त 2017 को महाराज सिंह के खिलाफ गांव की लड़की ने गलत नियत से हाथ पकड़ने का आरोप लगाया था उसके खिलाफ पॉक्सो एक्ट के तहत मामला दर्ज हुआ था. बाद में विदिशा जिला सत्र न्यायालय में उसके खिलाफ चालान पेश हुआ, जहां 3 साल की सजा सुनाई गई.
इसी साल 5 जनवरी से कोर्ट में सरेंडर होने के बाद महाराज सिंह को जेल भेज दिया गया. उसके पिता ने सजा के खिलाफ हाईकोर्ट ग्वालियर बेंच में अपील दायर की. साथ ही जमानत के लिए भी आवेदन लगाया. न्यायालय ने महाराज सिंह का ट्रैक रिकॉर्ड देखा उसने बीए की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की थी. फिलहाल वह एमए थर्ड सेमेस्टर का छात्र है. साथ ही वह राष्ट्रीय सेवा योजना सहित नेहरू युवा केंद्र द्वारा संचालित जन कल्याणकारी गतिविधियों में भी पिछले 5 सालों से सक्रिय रहा है. उसका कोई आपराधिक रिकॉर्ड भी नहीं है.
यह सब देखते हुए हाईकोर्ट में महाराज सिंह को जमानत दे दी. साथ ही उसे निर्देशित किया कि वह विदिशा जिला चिकित्सालय में 25 फरवरी से 15 मार्च तक सप्ताह में 3 दिन सुबह 9:00 बजे से दोपहर 1:00 बजे तक ओपीडी और वहां भर्ती मरीजों की देखभाल और उनकी सेवा करे. उसके बाद अपने अनुभव या सुझाव से अधीक्षक को अवगत कराए. अधीक्षक उसके सेवा कार्य की रिपोर्ट 20 मार्च तक हाईकोर्ट में जमा करें. इसके पीछे न्यायालय का तर्क है कि जेल में भेजना ही सिर्फ अपराधी को सुधारने का मकसद नहीं होना चाहिए. यदि वह आपराधिक पृष्ठभूमि का नहीं है तो उसे समाज की मुख्यधारा में लाने की कोशिश की जानी चाहिए.