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कोरोना का साइड इफेक्ट: 12 हजार दिव्यांग छात्र शिक्षा से महरूम, निजी संस्थाओं के रहमों करम पर दिव्यांग

कोरोना काल का सबसे ज्यादा असर दिव्यांग छात्रों पर पड़ा है. करीब 12 हजार दिव्यांग छात्र छात्राओं को न सिर्फ पढ़ाई से महरूम होना पड़ा है बल्कि उन्हें रहने और खाने-पीने जैसी समस्याओं से भी जूझना पड़ रहा है. पढ़िए पूरी खबर...

divyang children Not getting education
दिव्यांग छात्र शिक्षा से महरूम
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Published : Jul 26, 2020, 10:27 PM IST

ग्वालियर। कोरोना काल का सबसे ज्यादा असर दिव्यांग छात्रों पर पड़ा है. करीब 12 हजार दिव्यांग छात्र-छात्राओं को न सिर्फ पढ़ाई से महरूम होना पड़ा है बल्कि उन्हें रहने और खाने-पीने जैसी समस्याओं से भी जूझना पड़ रहा है. कई बच्चे लॉकडाउन की अवधि में अपने अपने घरों को रवाना हो गए, पर कई बेसहारा छात्र ऐसे भी हैं जो अपने घरों को नहीं जा सके हैं. लिहाजा वे निजी संस्थाओं के रहमोकरम पर हैं. संस्था की बदौलत उन्हें रहने और खाने पीने का सामान मिल रहा है.

दिव्यांग छात्र शिक्षा से महरूम

वहीं कुछ सेवानिवृत्त शिक्षक इन बच्चों को ऑनलाइन और ऑफलाइन शिक्षा देकर उनकी पढ़ाई को निरंतरता देने की कोशिश कर रहे हैं, शिक्षकों का मानना है कि यह दिव्यांग बच्चे पहले से ही तमाम तरह की परेशानियों और चुनौतियों से जूझ रहे हैं. ऐसे में एक बार पढ़ाई से उनका मोहभंग हो गया तो उन्हें दोबारा मुख्यधारा में लाने में काफी समय लग सकता है.

बाधित बच्चों को ऑनलाइन शिक्षा

ग्वालियर के अधिकांश सरकारी शिक्षण एवं पुनर्वास केंद्र बंद पड़े हुए हैं. निजी संस्थाओं के कुछ केंद्र चालू हैं, लेकिन उनमें भी दिव्यांग छात्रों की संख्या ना के बराबर है. सामाजिक कल्याण एवं न्याय विभाग के अफसरों का कहना है कि अस्थि बाधित बच्चों को ऑनलाइन शिक्षा दी जा रही है लेकिन दृष्टि बाधित और श्रवण बाधित बच्चों को ये सुविधाएं फिलहाल नहीं दी जा रही हैं.

जहां तक दिव्यांग बच्चों के खाने पीने का सवाल है तो उन्हें हर 15 दिन बाद फोन के जरिए संपर्क कर जरूरतों के बारे में पूछा जाता है और उनकी जरूरत पूरी की जाती है. ग्वालियर में कुल 12 हजार दिव्यांग हैं, उनमें 3500 बच्चे स्कूलों में पढ़ते हैं जहां वे आवास के साथ स्कूलिंग की शिक्षा भी लेते हैं.

ग्वालियर। कोरोना काल का सबसे ज्यादा असर दिव्यांग छात्रों पर पड़ा है. करीब 12 हजार दिव्यांग छात्र-छात्राओं को न सिर्फ पढ़ाई से महरूम होना पड़ा है बल्कि उन्हें रहने और खाने-पीने जैसी समस्याओं से भी जूझना पड़ रहा है. कई बच्चे लॉकडाउन की अवधि में अपने अपने घरों को रवाना हो गए, पर कई बेसहारा छात्र ऐसे भी हैं जो अपने घरों को नहीं जा सके हैं. लिहाजा वे निजी संस्थाओं के रहमोकरम पर हैं. संस्था की बदौलत उन्हें रहने और खाने पीने का सामान मिल रहा है.

दिव्यांग छात्र शिक्षा से महरूम

वहीं कुछ सेवानिवृत्त शिक्षक इन बच्चों को ऑनलाइन और ऑफलाइन शिक्षा देकर उनकी पढ़ाई को निरंतरता देने की कोशिश कर रहे हैं, शिक्षकों का मानना है कि यह दिव्यांग बच्चे पहले से ही तमाम तरह की परेशानियों और चुनौतियों से जूझ रहे हैं. ऐसे में एक बार पढ़ाई से उनका मोहभंग हो गया तो उन्हें दोबारा मुख्यधारा में लाने में काफी समय लग सकता है.

बाधित बच्चों को ऑनलाइन शिक्षा

ग्वालियर के अधिकांश सरकारी शिक्षण एवं पुनर्वास केंद्र बंद पड़े हुए हैं. निजी संस्थाओं के कुछ केंद्र चालू हैं, लेकिन उनमें भी दिव्यांग छात्रों की संख्या ना के बराबर है. सामाजिक कल्याण एवं न्याय विभाग के अफसरों का कहना है कि अस्थि बाधित बच्चों को ऑनलाइन शिक्षा दी जा रही है लेकिन दृष्टि बाधित और श्रवण बाधित बच्चों को ये सुविधाएं फिलहाल नहीं दी जा रही हैं.

जहां तक दिव्यांग बच्चों के खाने पीने का सवाल है तो उन्हें हर 15 दिन बाद फोन के जरिए संपर्क कर जरूरतों के बारे में पूछा जाता है और उनकी जरूरत पूरी की जाती है. ग्वालियर में कुल 12 हजार दिव्यांग हैं, उनमें 3500 बच्चे स्कूलों में पढ़ते हैं जहां वे आवास के साथ स्कूलिंग की शिक्षा भी लेते हैं.

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