गुना। कहते हैं दर्द जुबा पर आ ही जाता है. कुछ ऐसा ही हुआ ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ. सिंधिया जब गुना पहुंचे तो उनके समर्थकों ने उनका जोरदार स्वागत किया, लेकिन हर बार की तरह इस बार भी लोकसभा चुनाव में हार का दर्द सिंधिया के चहेरे पर साफ दिखा. सिंधिया ने कहा कि उन्होंने चुनाव में मेहनत करने में कोई कसर नहीं छोड़ी. पता नहीं उनसे ऐसी क्या भूल और गलती हो गई, जिसकी वजह से उन्हें हार का सामना करना पड़ा. गुना की तस्वीर बदलने के लिए उन्होंने हर काम किया, पर ऐसा क्या हुआ कि वे चुनाव हार गए. हार से निराश नहीं हैं, लेकिन परिणाम दिल दुखाने वाले हैं.
दिग्विजय सिंह से मुलाकात पर सिंधिया ने कहा कि दिग्विजय सिंह से मुलाकात कोई अजीब बात नहीं है. हर महीने उनकी दिग्विजय सिंह से मुलाकात होती रहती है. गुना में सामान्य मुलाकात हुई. इसका ये कतई मतलब नहीं है कि इस मुलाकात के राजनीतिक मायने निकाले जाएं. मीडिया इस मामले में बात का बतंगड़ बनाने पर तुली है. विनम्रता से मुलाकात करना हमारे अच्छे संबंधों का परिचायक है. इसे राजनीतिक रूप से लेना ठीक नहीं.
राज्यसभा जाने की अटकलों पर भी दी प्रतिक्रिया
राज्यसभा चुनाव और मध्यप्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष को लेकर चल रही अटकलों के सवाल पर सिंधिया ने कहा कि गुना की मीडिया मुझे 18 सालों से जानती है, इस सवाल के पूछे जाने के बाद मुझे ये लगता है गुना कि मीडिया ने मुझे ठीक तरह से अभी तक जाना ही नहीं. प्रभारी मंत्री को जिला प्रशासन से सहयोग नहीं मिलने के मसले पर सिंधिया ने कहा कि वह एक सामान्य नागरिक के तौर पर गुना की जनता से मिलने के लिए आए हैं. मौजूदा समय में वह कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव और एक सामान्य नागरिक हैं.
यदि गुना जिले की प्रभारी मंत्री इमरती देवी को प्रशासन से कोई शिकायत है तो वह प्रशासनिक अधिकारियों से मिलकर उसे दूर कर सकती हैं. इस मसले पर वह एक सामान्य नागरिक के तौर पर प्रभारी मंत्री की कोई मदद नहीं कर सकते. हालांकि सिंधिया के चेहरे पर हार का दर्द पहले भी कई बार दिखा है, पिछले दिनों सेवादल के कार्यक्रम में उन्होंने कहा था कि वो कुर्सी के पीछे न तो कभी भागे हैं न भागेंगे. एक और बयान में उन्होंने कहा था कि लोकतंत्र में जनता ही भगवान होती है.
बड़ा सवाल ये है कि सिंधिया के चहेरे पर बार-बार हार का दर्द सामने क्यों आ रहा है. क्या वे वाकई हार से दुखी हैं या फिर सियासत के इस खिलाड़ी का कोई नया पैंतरा है. लंबे समय से सिंधिया पीसीसी चीफ और राज्यसभा के लिए प्रबल दावेदार माने जा रहे हैं, पर उनकी राह में हर बार कोई-न-कोई रोड़ा आ रहा है. ऐसे में पल-पल बदल रही प्रदेश की सियासत पर सिंधिया के बयान के कई सियासी मायने निकाले जा रहे हैं.