ETV Bharat / state

मिट्टी के दिये से रोशन होंगे घर, महंगाई के कारण कुम्हारों ने बढ़ाए दाम - Mangal Prasad of Karaundi village

डिंडौरी जिले के करौंदी गांव के मंगल प्रसाद कई पीढ़ियों से दिये बनाने का काम कर रहे हैं, लेकिन चाइना के दियों का प्रचलन होने से जहां एक ओर इनका व्यवसाय कम होता जा रहा है वहीं लागत अधिक होने से इनके दाम भी बढ़ रहे हैं.

मिट्टी के दिये से रोशन होंगे घर
author img

By

Published : Oct 21, 2019, 8:33 PM IST

Updated : Oct 22, 2019, 12:16 AM IST

डिंडौरी। जिले के शहपुरा और ग्रामीण इलाकों में मिट्टी से दीपक बनाये जाते हैं, यह इनका पारंपरिक व्यवसाय है. खेतों से मिट्टी लाकर उसे फुलाकर कई प्रक्रियाओं से गुजरने के बाद बनते हैं ये दिेये. जिसमें कलाकारों की मेहनत के साथ-साथ लागत भी लगती है, जिसके चलते इनके दामों में बढ़ोत्तरी हुई है. वहीं बाजारों में चाइना के दीपकों के प्रचलन से इनका व्यवसाय भी सिमटता जा रहा है. हालांकि कई संगठनों के प्रयास से मिट्टी के दीपक जलाने के लिए जागरुकता भी बढ़ रही है.

मिट्टी के दिये से रोशन होंगे घर

करौंदी गांव के कुम्हार मंगल प्रसाद ने बताया कि वह करीब बीस साल से मिट्टी के दिये बना रहे हैं, जिसके लिए मिट्टी को चंदिया से लाया गया है. वह करीब दस हजार मिट्टी के दिये बना रहे हैं. जिन्हें बनाने में काफी मेहनत और लागत लगती है इस लिए इस बार इनकी कीमत करीब दस रुपये प्रति दर्जन बढ़ा दी गई है.

मंगल प्रसाद एवं उनका परिवार अपने गांव में हर घर को सालों से रोशन करते आ रहे हैं. गांव के लोग उन्हे दियों के बदले आनाज देते हैं, जिससे उनके परिवार का भरण-पोषण होता है. इनका परिवार कई पीढ़ियों से दिए बनाने का काम कर रहा है, जिसे मंगल प्रसाद बरकरार रखे हुए हैं.

डिंडौरी। जिले के शहपुरा और ग्रामीण इलाकों में मिट्टी से दीपक बनाये जाते हैं, यह इनका पारंपरिक व्यवसाय है. खेतों से मिट्टी लाकर उसे फुलाकर कई प्रक्रियाओं से गुजरने के बाद बनते हैं ये दिेये. जिसमें कलाकारों की मेहनत के साथ-साथ लागत भी लगती है, जिसके चलते इनके दामों में बढ़ोत्तरी हुई है. वहीं बाजारों में चाइना के दीपकों के प्रचलन से इनका व्यवसाय भी सिमटता जा रहा है. हालांकि कई संगठनों के प्रयास से मिट्टी के दीपक जलाने के लिए जागरुकता भी बढ़ रही है.

मिट्टी के दिये से रोशन होंगे घर

करौंदी गांव के कुम्हार मंगल प्रसाद ने बताया कि वह करीब बीस साल से मिट्टी के दिये बना रहे हैं, जिसके लिए मिट्टी को चंदिया से लाया गया है. वह करीब दस हजार मिट्टी के दिये बना रहे हैं. जिन्हें बनाने में काफी मेहनत और लागत लगती है इस लिए इस बार इनकी कीमत करीब दस रुपये प्रति दर्जन बढ़ा दी गई है.

मंगल प्रसाद एवं उनका परिवार अपने गांव में हर घर को सालों से रोशन करते आ रहे हैं. गांव के लोग उन्हे दियों के बदले आनाज देते हैं, जिससे उनके परिवार का भरण-पोषण होता है. इनका परिवार कई पीढ़ियों से दिए बनाने का काम कर रहा है, जिसे मंगल प्रसाद बरकरार रखे हुए हैं.

Intro:ईटीवी भारत Special Story
डिंडौरी-
कि माना अंधेरा बहुत घना है । पर एक दीपक जलाना कब मना है ।
जी हां हम बात कर रहे हैं दीपों के त्यौहार दीपावली पर बनने वाले देशी दीपकों की ।
मिट्टी, जाने कितने परिवारों का पोषण करती है। दीपावली पर ये मिट्टी किसी के घर में रोशनी करती है तो किसी के परिवार को साल भर का राशन जुटाने में मदद करती है। आपको हम बताने जा रहे हैं मिट्टी के ऐसे दीपकों की जिन्हें देसी कलाकार कड़ी मेहनत के बाद अपना पसीना बहाकर बड़ी शिद्दत से बनाते हैं। चायना दीपकों के मुकाबले में मिट्टी के देशी दीपक कम कीमत पर उपलब्ध हैं। कहां से लाई जाती है यह मिट्टी और किस तरह से बढ़ी है इस वर्ष देशी दीपकों की मांग देखिए इस खास रिपोर्ट में...Body:ईटीवी भारत Special Story

देशी मिट्टी के दियों की बढ़ रही मांग
पारंपरिक दीपकों को दी जा रही प्राथमिकता

डिंडौरी जिले के शहपुरा और ग्रामीण इलाकों में पारंपरिक देसी दीपक सजे हुए और बनते देखने को मिल रहे है। आपको बता दें इस बार चायना दीपकों की जगह पारंपरिक दीपकों को प्राथमिकता दी जा रही है। जिसके लिए लोग संकल्पित भी है । वहीं अनेक संगठन दीपावली से पहले मिट्टी के दीपक बांटने का समर्थन भी कर रहे हैं। मिट्टी के पारंपरिक दीपक खरीदने में जहां गरीब परिवारों की आय बढ़ेगी वहीं देश की अर्थव्यवस्था के लिए भी ये फायदेमंद साबित होगी।

चंदिया की मिट्टी से रोशन होगा शहपुरा

शहपुरा विकासखंड के ग्राम करौंदी के कुम्हार मंगल प्रसाद चक्रवर्ती से जब ईटीवी भारत ने बात की तो उन्होंने बताया कि हर बार की तरह इस बार भी देशी दीपक बनाने के लिए मिट्टी उमरिया जिले के चंदिया से और कुछ गांव के खेतों से बुलवाई गई है। चंदिया की मिट्टी दीपक बनाने में बहुत अच्छी होती है जिससे दीपक बनाने में टूटते नहीं है । इस बार लगभग 10-12 हजार के करीब मिट्टी के दीपक सहित मिट्टी के खिलौने, गुल्लक और मिट्टी के ही फैंसी आइटम तैयार कर रहे हैं।

देशी दीपकों की बढ़ रही मांग

आगे कुम्हार ने बताया कि पिछले साल की अपेक्षा इस बार देशी दीपक की मांग ज्यादा बढ़ी है। इस बार चायना दीपकों में शहपुरा विकासखंड में गिरावट देखने को मिल रही है। वहीं पिछले साल 15 रुपये प्रति दर्जन की दर से देसी दीपकों की बिक्री हुई थी लेकिन इस साल 20 से 25 रुपये प्रति दर्जन की दर से देसी दीपक बेचेंगे। पिछले साल की तुलना में लोगों मे देशी दीपक को लेकर जागरूकता बढ़ी है।

महंगाई के चलते दाम का पड़ा असर
कुम्हार ने बताया कि मिट्टी लाने में पिछले वर्ष की अपेक्षा इस बार महंगी पड़ी, क्योंकि इस बार डीजल के बढ़ते दामों ने भाड़ा भी महंगा कर दिया, जिसके चलते महंगाई के कारण दाम बढ़ाना मजबूरी है ।

अनाज के बदले भी देते हैं दीपक

करौंदी के कुम्हार मंगल प्रसाद चक्रवर्ती एवं उनका परिवार अपने गांव में हर घर को वर्षों से रोशन करते आ रहे हैं । ये अपने गांव में दीपकों को पैसे में नहीं बेचते । वे इसके बदले हर घर से अनाज लेते हैं । जिससे उनके परिवार का भरण-पोषण होता है । यह परंपरा उनके पूर्वजों ने चलाई थी जो आज भी वे इसे बरकरार रखे हुए हैं ।

Byte1 - मंगल प्रसाद चक्रवर्ती, कुम्हार
Byte2 - कुमार संतनारायण साहू, ग्रामीणConclusion:डिंडौरी जिले के शहपुरा सहित गांवों में दीपकों की जगह पारंपरिक दीपकों को लोग प्राथमिकता दे रहे हैं, जिससे कुम्हारों की भी अच्छी आय हो रही है।
Last Updated : Oct 22, 2019, 12:16 AM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2025 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.