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डिग्री कॉलेज के छात्रों ने सीखा केंचुआ खाद बनाने के गुर

डिंडौरी जिले शहपुरा में शासकीय स्नातक महाविद्यालय के विद्यार्थियों और जनजाति कल्याण केन्द्र बरगांव के आवासीय छात्रों को जैविक कृषि के बारे में प्रशिक्षण दिया गया. इस दौरान प्रशिक्षक बिहारी लाल साहू ने केंचुआ खाद बनाने की जानकारी दी.

Degree college students learned the tricks of making vormi compost
डिग्री कॉलेज के छात्रों ने सीखा केंचुआ खाद बनाने का गुर
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Published : Feb 3, 2020, 9:46 AM IST

Updated : Feb 3, 2020, 11:33 AM IST

डिंडौरी। जिले शहपुरा में शासकीय स्नातक महाविद्यालय के विद्यार्थियों और जनजाति कल्याण केन्द्र बरगांव के आवासीय छात्रों को जैविक कृषि के बारे में प्रशिक्षण दिया गया. इस दौरान प्रशिक्षक बिहारी लाल साहू ने केंचुआ खाद बनाने की जानकारी दी.

डिग्री कॉलेज के छात्रों ने सीखा केंचुआ खाद बनाने के गुर

बिहारी लाल ने बताया कि केंचुए हमारे मिट्टी में पाए जाने वाले प्राकृतिक जीव है, जो कचरे को बारीक पीसकर पचाने के बाद काले रंग की बारिक दानेदार खाद बाहर निकालते हैं, जिसे वर्मी कंपोस्ट भी कहा जाता है. जो मिट्टी के लिए बहुत ही फायदेमंद है. इससे मिट्टी की उपजाऊ क्षमता बढ़ती है.

पिछले तीन-चार दशकों में रासायनिक खेती का प्रभाव बढ़ा है, जिससे मिट्टी में उपलब्ध मित्र कीट नष्ट हो गए हैं. जिसके चलते जमीन में जैविक खाद की बहुत आवश्यकता है. केंचुआ खाद बनाने के लिए कचरे में नमी और हवा रखना आवश्यक होता है. जिससे केंचुए जिंदा रह सकें और कचरा खा सकें. इसके लिए पिट में फुहारे से सिंचाई करने के साथ ही कचरे को पलटते भी रहना चाहिए.

डिंडौरी। जिले शहपुरा में शासकीय स्नातक महाविद्यालय के विद्यार्थियों और जनजाति कल्याण केन्द्र बरगांव के आवासीय छात्रों को जैविक कृषि के बारे में प्रशिक्षण दिया गया. इस दौरान प्रशिक्षक बिहारी लाल साहू ने केंचुआ खाद बनाने की जानकारी दी.

डिग्री कॉलेज के छात्रों ने सीखा केंचुआ खाद बनाने के गुर

बिहारी लाल ने बताया कि केंचुए हमारे मिट्टी में पाए जाने वाले प्राकृतिक जीव है, जो कचरे को बारीक पीसकर पचाने के बाद काले रंग की बारिक दानेदार खाद बाहर निकालते हैं, जिसे वर्मी कंपोस्ट भी कहा जाता है. जो मिट्टी के लिए बहुत ही फायदेमंद है. इससे मिट्टी की उपजाऊ क्षमता बढ़ती है.

पिछले तीन-चार दशकों में रासायनिक खेती का प्रभाव बढ़ा है, जिससे मिट्टी में उपलब्ध मित्र कीट नष्ट हो गए हैं. जिसके चलते जमीन में जैविक खाद की बहुत आवश्यकता है. केंचुआ खाद बनाने के लिए कचरे में नमी और हवा रखना आवश्यक होता है. जिससे केंचुए जिंदा रह सकें और कचरा खा सकें. इसके लिए पिट में फुहारे से सिंचाई करने के साथ ही कचरे को पलटते भी रहना चाहिए.

Intro:शासकीय स्नातक महाविद्यालय शहपुरा के विद्यार्थियों और जनजाति कल्याण केन्द्र बरगांव के आवासीय छात्रों को जैविक कृषि प्रशिक्षक बिहारी लाल साहू द्वारा जानकारी दिया गया केंचुआ खाद कैसे बनाते हैं केंचुआ को टांके में डालकर प्रायोगिक रूप से बताया गया ।
*केंचुए का परिचय*
बिहारी लाल साहू ने बताया कि केंचुए हमारे मिट्टी में पाए जाने वाले प्राकृतिक जीव है जो बरसात के मौसम में अक्सर मिट्टी के बाहर दिखाई देते हैं। ये कचरे को बारीक पीसकर अकेले या मिट्टी के साथ खाते हैं और पचाने के बाद काले रंग की बारिक दानेदार खाद बाहर निकालते हैं। जिसे हम वर्मी कंपोस्ट कहते हैं ।केंचुए अपना भोजन जमीन के ऊपरी परत तथा निचली परत के कार्बनिक पदार्थों द्वारा प्राप्त करते हैं। जबकि ये अपनी कास्ट छोड़ने जमीन के ऊपर जाते हैं।
केंचुए की कुल 2000-2500 तक की जातियां पाई जाती है। केंचुए उभय लिंगी होते हैं अर्थात् इनके शरीर पर नर व मादा दोनों प्रजनन अंग होते हैं परंतु एक केंचुए द्वारा प्रजनन संभव नहीं है। प्रजनन हेतु दो परिपक्क केचुओं का मिलना आवश्यक है।इस मिलने की क्रिया के दौरान दो कछुए एक दूसरे के सिर विपरीत दिशा में रखते हैं पीछे की तरफ मिलने हैं और एक केंचुए के न छिद्र के पद दूसरे के जुए के मादा
पिछले तीन-चार दशकों में रासायनिक खेती कब बहुत तेजी से बढ़ा है इस प्रकार फसल सुरक्षा के लिए विभिन्न प्रकार के जहरीले कीट नाशी रसायनों का अधिकाधिक प्रयोग होने लगा है इन रसायनों के प्रयोग से अन्य कीटों के साथ-साथ मिट्टी के मित्र जीव भी नष्ट हो जाते हैं गुणवत्ता में गिरावट आ जाती है रासायनिक खादों से प्रारंभ में उत्पादक उत्पादकता तो बढ़ती है लेकिन बाद में धीरे-धीरे जमीन की जैविक उर्वरक का कमजोर होकर समाप्त हो जाती है केंचुआ का परिचय केंचुए हमारे मिट्टी में पाए जाने वाले प्राकृतिक जीव है जो बरसात के मौसम में अक्सर मिट्टी के बाहर दिखाई देते हैं यह कचरे को बारीक पीसकर अकेले या मिट्टी के साथ खाते हैं और पचाने के बाद काले रंग की बारी दानेदार खाद बाहर निकालते हैं जिसे हम वर्मी कंपोस्ट कहते हैं कि वे अपना भोजन जमीन के ऊपर तथा ऊपरी परत तथा निचली परत के कार्बनिक पदार्थ द्वारा प्राप्त करते हैं जबकि यह अपनी कास्ट छोड़ने जमीन के ऊपरी सतह ऊपरी सतह पर जाते हैं 2000 से ढाई हजार तक केंचुए कुमार लिंगी होते हैं अर्थात इनके शरीर पर नर व मादा दोनों प्रजनन अंग होते हैं परंतु एक केंचुए द्वारा प्रजनन संभव नहीं है प्रजनन हेतु दो परिपथ के पीए का मिलना आवश्यक है इस मिलने की क्रिया के दौरान दो केंचुए एक-दूसरे के सिर विपरीत दिशा रखते हुए पीछे की तरफ मिलते हैं और एक केंचुए के नर छिद्र के इपर्भ दूसरे केंचुए के मादा छिद्र के स्पर्धिका में छोड़ते हैं। एक कोनून में 1-20 फर्टीलाईज्ड ओवम हो सकता है परंतु उसमें कुछ ही जिंदा रहते हैं तथा 60-70 दिनों में वयस्क होकर अंडे देने की अवस्था में आ जाते हैं
*केचुओं के प्रकार*-
मिट्टी में रहने के स्थान के अनुसार केंचुए तीन प्रकार के होते हैं:
1- एपीजेईक: भूमि की ऊपरी सतह पर रहने वाले एपीजेईक कहलाते हैं।
2- एनिसिक: ये मिट्टी में नीचे से ऊपर तथा ऊपर से नीचे लम्बवत चलन करते हैं। इनमें लेम्पीटो मारुती स्थानीय प्रजाति पाई जाती है।
3- एण्डोईकः यह गहरी सुरंग बनाने वाले लंबे केंचुए एण्डोजेईक कहलाते हैं।

*केंचुए की कार्यशैली*
केंचुए कार्बनिक पदार्थ व मिट्टी को खाते हुए सुरंग बनाकर आगे बढ़ते हैं। इसके लिए इन पदार्थों का गीला होना आवश्यक है। इसके 8-9 वें खंड पर एक कुदरती चक्की लगी होती है जिससे कि जिसे गिजार्ड कहते हैं। देशी प्रजाति की खाद बनाने के साथ-साथ जमीन की उर्वरा शक्ति को भी बढ़ाती है।Body:शासकीय स्नातक महाविद्यालय शहपुरा के विद्यार्थियों और जनजाति कल्याण केन्द्र बरगांव के आवासीय छात्रों को जैविक कृषि प्रशिक्षक बिहारी लाल साहू द्वारा जानकारी दिया गया केंचुआ खाद कैसे बनाते हैं केंचुआ को टांके में डालकर प्रायोगिक रूप से बताया गया ।
*केंचुए का परिचय*
बिहारी लाल साहू ने बताया कि केंचुए हमारे मिट्टी में पाए जाने वाले प्राकृतिक जीव है जो बरसात के मौसम में अक्सर मिट्टी के बाहर दिखाई देते हैं। ये कचरे को बारीक पीसकर अकेले या मिट्टी के साथ खाते हैं और पचाने के बाद काले रंग की बारिक दानेदार खाद बाहर निकालते हैं। जिसे हम वर्मी कंपोस्ट कहते हैं ।केंचुए अपना भोजन जमीन के ऊपरी परत तथा निचली परत के कार्बनिक पदार्थों द्वारा प्राप्त करते हैं। जबकि ये अपनी कास्ट छोड़ने जमीन के ऊपर जाते हैं।
केंचुए की कुल 2000-2500 तक की जातियां पाई जाती है। केंचुए उभय लिंगी होते हैं अर्थात् इनके शरीर पर नर व मादा दोनों प्रजनन अंग होते हैं परंतु एक केंचुए द्वारा प्रजनन संभव नहीं है। प्रजनन हेतु दो परिपक्क केचुओं का मिलना आवश्यक है।इस मिलने की क्रिया के दौरान दो कछुए एक दूसरे के सिर विपरीत दिशा में रखते हैं पीछे की तरफ मिलने हैं और एक केंचुए के न छिद्र के पद दूसरे के जुए के मादा
पिछले तीन-चार दशकों में रासायनिक खेती कब बहुत तेजी से बढ़ा है इस प्रकार फसल सुरक्षा के लिए विभिन्न प्रकार के जहरीले कीट नाशी रसायनों का अधिकाधिक प्रयोग होने लगा है इन रसायनों के प्रयोग से अन्य कीटों के साथ-साथ मिट्टी के मित्र जीव भी नष्ट हो जाते हैं गुणवत्ता में गिरावट आ जाती है रासायनिक खादों से प्रारंभ में उत्पादक उत्पादकता तो बढ़ती है लेकिन बाद में धीरे-धीरे जमीन की जैविक उर्वरक का कमजोर होकर समाप्त हो जाती है केंचुआ का परिचय केंचुए हमारे मिट्टी में पाए जाने वाले प्राकृतिक जीव है जो बरसात के मौसम में अक्सर मिट्टी के बाहर दिखाई देते हैं यह कचरे को बारीक पीसकर अकेले या मिट्टी के साथ खाते हैं और पचाने के बाद काले रंग की बारी दानेदार खाद बाहर निकालते हैं जिसे हम वर्मी कंपोस्ट कहते हैं कि वे अपना भोजन जमीन के ऊपर तथा ऊपरी परत तथा निचली परत के कार्बनिक पदार्थ द्वारा प्राप्त करते हैं जबकि यह अपनी कास्ट छोड़ने जमीन के ऊपरी सतह ऊपरी सतह पर जाते हैं 2000 से ढाई हजार तक केंचुए कुमार लिंगी होते हैं अर्थात इनके शरीर पर नर व मादा दोनों प्रजनन अंग होते हैं परंतु एक केंचुए द्वारा प्रजनन संभव नहीं है प्रजनन हेतु दो परिपथ के पीए का मिलना आवश्यक है इस मिलने की क्रिया के दौरान दो केंचुए एक-दूसरे के सिर विपरीत दिशा रखते हुए पीछे की तरफ मिलते हैं और एक केंचुए के नर छिद्र के इपर्भ दूसरे केंचुए के मादा छिद्र के स्पर्धिका में छोड़ते हैं। एक कोनून में 1-20 फर्टीलाईज्ड ओवम हो सकता है परंतु उसमें कुछ ही जिंदा रहते हैं तथा 60-70 दिनों में वयस्क होकर अंडे देने की अवस्था में आ जाते हैं
*केचुओं के प्रकार*-
मिट्टी में रहने के स्थान के अनुसार केंचुए तीन प्रकार के होते हैं:
1- एपीजेईक: भूमि की ऊपरी सतह पर रहने वाले एपीजेईक कहलाते हैं।
2- एनिसिक: ये मिट्टी में नीचे से ऊपर तथा ऊपर से नीचे लम्बवत चलन करते हैं। इनमें लेम्पीटो मारुती स्थानीय प्रजाति पाई जाती है।
3- एण्डोईकः यह गहरी सुरंग बनाने वाले लंबे केंचुए एण्डोजेईक कहलाते हैं।

*केंचुए की कार्यशैली*
केंचुए कार्बनिक पदार्थ व मिट्टी को खाते हुए सुरंग बनाकर आगे बढ़ते हैं। इसके लिए इन पदार्थों का गीला होना आवश्यक है। इसके 8-9 वें खंड पर एक कुदरती चक्की लगी होती है जिससे कि जिसे गिजार्ड कहते हैं। देशी प्रजाति की खाद बनाने के साथ-साथ जमीन की उर्वरा शक्ति को भी बढ़ाती है।Conclusion:शासकीय स्नातक महाविद्यालय शहपुरा के विद्यार्थियों और जनजाति कल्याण केन्द्र बरगांव के आवासीय छात्रों को जैविक कृषि प्रशिक्षक बिहारी लाल साहू द्वारा जानकारी दिया गया केंचुआ खाद कैसे बनाते हैं केंचुआ को टांके में डालकर प्रायोगिक रूप से बताया गया ।
*केंचुए का परिचय*
बिहारी लाल साहू ने बताया कि केंचुए हमारे मिट्टी में पाए जाने वाले प्राकृतिक जीव है जो बरसात के मौसम में अक्सर मिट्टी के बाहर दिखाई देते हैं। ये कचरे को बारीक पीसकर अकेले या मिट्टी के साथ खाते हैं और पचाने के बाद काले रंग की बारिक दानेदार खाद बाहर निकालते हैं। जिसे हम वर्मी कंपोस्ट कहते हैं ।केंचुए अपना भोजन जमीन के ऊपरी परत तथा निचली परत के कार्बनिक पदार्थों द्वारा प्राप्त करते हैं। जबकि ये अपनी कास्ट छोड़ने जमीन के ऊपर जाते हैं।
केंचुए की कुल 2000-2500 तक की जातियां पाई जाती है। केंचुए उभय लिंगी होते हैं अर्थात् इनके शरीर पर नर व मादा दोनों प्रजनन अंग होते हैं परंतु एक केंचुए द्वारा प्रजनन संभव नहीं है। प्रजनन हेतु दो परिपक्क केचुओं का मिलना आवश्यक है।इस मिलने की क्रिया के दौरान दो कछुए एक दूसरे के सिर विपरीत दिशा में रखते हैं पीछे की तरफ मिलने हैं और एक केंचुए के न छिद्र के पद दूसरे के जुए के मादा
पिछले तीन-चार दशकों में रासायनिक खेती कब बहुत तेजी से बढ़ा है इस प्रकार फसल सुरक्षा के लिए विभिन्न प्रकार के जहरीले कीट नाशी रसायनों का अधिकाधिक प्रयोग होने लगा है इन रसायनों के प्रयोग से अन्य कीटों के साथ-साथ मिट्टी के मित्र जीव भी नष्ट हो जाते हैं गुणवत्ता में गिरावट आ जाती है रासायनिक खादों से प्रारंभ में उत्पादक उत्पादकता तो बढ़ती है लेकिन बाद में धीरे-धीरे जमीन की जैविक उर्वरक का कमजोर होकर समाप्त हो जाती है केंचुआ का परिचय केंचुए हमारे मिट्टी में पाए जाने वाले प्राकृतिक जीव है जो बरसात के मौसम में अक्सर मिट्टी के बाहर दिखाई देते हैं यह कचरे को बारीक पीसकर अकेले या मिट्टी के साथ खाते हैं और पचाने के बाद काले रंग की बारी दानेदार खाद बाहर निकालते हैं जिसे हम वर्मी कंपोस्ट कहते हैं कि वे अपना भोजन जमीन के ऊपर तथा ऊपरी परत तथा निचली परत के कार्बनिक पदार्थ द्वारा प्राप्त करते हैं जबकि यह अपनी कास्ट छोड़ने जमीन के ऊपरी सतह ऊपरी सतह पर जाते हैं 2000 से ढाई हजार तक केंचुए कुमार लिंगी होते हैं अर्थात इनके शरीर पर नर व मादा दोनों प्रजनन अंग होते हैं परंतु एक केंचुए द्वारा प्रजनन संभव नहीं है प्रजनन हेतु दो परिपथ के पीए का मिलना आवश्यक है इस मिलने की क्रिया के दौरान दो केंचुए एक-दूसरे के सिर विपरीत दिशा रखते हुए पीछे की तरफ मिलते हैं और एक केंचुए के नर छिद्र के इपर्भ दूसरे केंचुए के मादा छिद्र के स्पर्धिका में छोड़ते हैं। एक कोनून में 1-20 फर्टीलाईज्ड ओवम हो सकता है परंतु उसमें कुछ ही जिंदा रहते हैं तथा 60-70 दिनों में वयस्क होकर अंडे देने की अवस्था में आ जाते हैं
*केचुओं के प्रकार*-
मिट्टी में रहने के स्थान के अनुसार केंचुए तीन प्रकार के होते हैं:
1- एपीजेईक: भूमि की ऊपरी सतह पर रहने वाले एपीजेईक कहलाते हैं।
2- एनिसिक: ये मिट्टी में नीचे से ऊपर तथा ऊपर से नीचे लम्बवत चलन करते हैं। इनमें लेम्पीटो मारुती स्थानीय प्रजाति पाई जाती है।
3- एण्डोईकः यह गहरी सुरंग बनाने वाले लंबे केंचुए एण्डोजेईक कहलाते हैं।

*केंचुए की कार्यशैली*
केंचुए कार्बनिक पदार्थ व मिट्टी को खाते हुए सुरंग बनाकर आगे बढ़ते हैं। इसके लिए इन पदार्थों का गीला होना आवश्यक है। इसके 8-9 वें खंड पर एक कुदरती चक्की लगी होती है जिससे कि जिसे गिजार्ड कहते हैं। देशी प्रजाति की खाद बनाने के साथ-साथ जमीन की उर्वरा शक्ति को भी बढ़ाती है।
Last Updated : Feb 3, 2020, 11:33 AM IST
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