डिंडौरी। जिले के मेंहदवानी विकासखंड के सारसडोली गांव का निवासी भरत कुशवाहा पहले एक स्कूल की बस में ड्राइवर था. पर एक कृषि वैज्ञानिक की सलाह के बाद से ही भरत मधुमक्खी पालन कर रहे है. मधुमक्खी पालन का ये काम वो शहपुरा विकासखंड के मालपुर गांव में अपना तंबू लगाकर करते है.
भरत ने बताया कि वो पिछले पांच सालों मधुमक्खी पालन करते आ रहे हैं. जिससे उन्हें अच्छा मुनाफा हो जाता है. वो मधुमक्खियों को अलग-अलग इलाकों में ले जाकर उनका पालन करते हैं. इस समय रमतिला और राई के खेतों के आस-पास वे ये काम कर रहे है. भरत डिंडौरी जिले के अकेले ऐसे किसान हैं जो कि मधुमक्खी पालन में रूचि ले रहे हैं. उनका कहना है कि अन्य लोगों को भी इस व्यवसाय से जुड़ना चाहिए.
वही कृषि वैज्ञानिक डॉ. सत्येन्द्र कुमार का कहना है कि लोगों को मधुमक्खी पालन के व्यवसाय में आगे आना चाहिए. इससे कम लागत में अच्छा मुनाफा हो सकता है. साथ ही उन्होनें किस तरह मधुमक्खी पालन किया जाता है उसकी जानकारी दी.
मधुमक्खी पालन का तरीका है बेहद आसान
मधुमक्खियों के छत्ते में एक रानी मक्खी होती है, जो मक्खियों की संख्या बढ़ाती और दूसरी मधुमक्खियां शहद बनाने का काम करती हैं. रामतिल और राई की फसल पर मधुमक्खियों के पालन का तरीका भी बेहद आसान है. रामतिल और राई की फसल से मधुमक्खियां पराग निकालकर शहद बनाती हैं. नाडिफ की रिपोर्ट के अनुसार रामतिल से प्राप्त होने वाले शहद की क्वॉलिटी काफी बेहतर होती है, यही वजह है कि रामतिल मुंबई से ऑस्ट्रेलिया तक एक्सपोर्ट किया जाता है.