धार। मध्य प्रदेश की जिन 28 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव हो रहे हैं. उन्हीं में से एक है धार जिले की बदनावर विधानसभा सीट, जो ज्योतिरादित्य सिंधिया के कट्टर समर्थक राज्यवर्धन सिंह दत्तीगांव के इस्तीफे से खाली हुई है. बदनावर विधानसभा सीट मालवांचल की सियासत में राजनीतिक लिहाज से काफी अहम मानी जाती है. 2018 के विधानसभा चुनाव में राज्यवर्धन सिंह ने यहां बीजेपी के भवर सिंह शेखावत को हराया था. लेकिन राज्यवर्धन के विधायक पद से इस्तीफा देने के बाद यहां उपचुनाव की स्थिति बनी.
बदनावर में पहली बार हो रहा उपचुनाव
बदनावर में पहली बार उपचुनाव हो रहा है. जहां बीजेपी ने राज्यवर्धन सिंह दत्तीगांव को चुनावी मैदान में उतारा है. तो कांग्रेस ने कमल पटेल को मौका दिया है. बदनावर विधानसभा सीट पर कभी भी निर्दलीय प्रत्याशी को जीत नहीं मिला. यहां हमेशा जनसंघ, बीजेपी और कांग्रेस के प्रत्याशी ही जीतते रहे हैं. जबकि यहां कभी भी उपचुनाव की स्थिति नहीं बनी.
बदनावर में हो चुके हैं 15 विधानसभा चुनाव
1951 से अस्तित्व में आई बदनावर विधानसभा सीट पर अब तक 15 विधानसभा चुनाव हो चुके हैं. जिनमें आठ बार कांग्रेस ने बाजी मारी, तो सात बार जनसंघ और बीजेपी ने जीत का स्वाद चखा है. बदनावर में मुकाबला कांग्रेस और बीजेपी के बीच ही होता रहा है. यहां तीसरी पार्टी का कोई प्रभाव नहीं रहा. शुरुआत में यहां कांग्रेस की जड़े मजबूत मानी जाती थी. लेकिन धीरे-धीरे जनसंघ का प्रभाव बढ़ा और यहां जनसंघ के प्रत्याशी भी जीत दर्ज करते रहें.
जातिगत फैक्टर सबसे अहम
बदनावर में हमेशा जातिगत समीकरण हमेशा प्रभावी फैक्टर रहा है. इस विधानसभा सीट पर सबसे ज्यादा आदिवासी समाज के करीब 35 प्रतिशत वोटर, राजपूत सामाज के 30 प्रतिशत और पाटीदार समाज के 25 प्रतिशत वोटर हैं. तो बाकी 10 प्रतिशत वोट मुस्लिम, वैश्य ,ब्राह्मण और अन्य समाज से आते हैं. यहां राजपूत और पाटीदार समाज का प्रभाव माना जाता है. ऐसे में उपचुनाव में दोनों पार्टियों ने राजपूत समाज से आने वाले प्रत्याशियों पर दांव लगाया है. क्योंकि राजपूत और पाटीदार समाज का वोट जिस प्रत्याशी के साथ चला उसका चुनाव जीतना आसान हो जाता है.
बदनावर के कुल मतदाता
वही बात अगर बदनावर विधानसभा सीट के मतदाताओं की जाए तो यहां कुल 2 लाख 3 हजार 524 मतदाता है. जिनमें 1 लाख 1999 पुरुष मतदाता ,तो वही 1लाख 1523 महिला मतदाता है. जबकि दो अन्य मतदाता है. जो उपचुनाव में पहली बार वोटिंग कर अपने नए विधायक का चयन करेंगे.
6वीं बार चुनावी मैदान में राज्यवर्धन सिंह
ज्योतिरादित्य सिंधिया की तरह ही राज परिवार से आने वाले राज्यवर्धन सिंह दत्तीगांव पहली बार 1998 में कांग्रेस से टिकट नहीं मिलने पर निर्दलीय चुनाव मैदान में उतरे और अपने पहले ही प्रयास में दत्तीगांव ने करीब 30 हजार वोट हासिल कर तमाम राजनीतिक पंडितों को चौका दिया था. 2003 और 2008 के चुनाव में उन्होंने कांग्रेस के टिकिट पर जीत दर्ज की. लेकिन 2013 में बीजेपी के भवर सिंह शेखावत ने उनका विजयी रथ रोक दिया. लिहाजा पिछली हार से सबक लेते हुए 2018 में दत्तीगांव ने शेखावत को रिकॉर्ड 41 हजार मतों के अंतर से करारी शिकस्त दी. अब राज्यवर्धन इस्तीफा देकर बीजेपी के टिकिट पर छटवीं बार सियासी भाग्य आजमा रहे हैं.
कांग्रेस प्रत्याशी भी भर रहे जीत का दम
वही कांग्रेस ने यहा अभिषेक सिंह राठौर का टिकिट बदलकर कमल पटेल को टिकिट दिया है. लिहाजा वे भी अपने जीत का दम भरते नजर आ रहे हैं. कमल पटेल का कहना है कि राज्यवर्धन सिंह ने बदनावर के जनमत को बेच दिया. जनता को धोखा दिया. इसलिए अब जनता उन्हें उपचुनाव में सबक सिखाने का मन बना चुकी है. कमल पटेल पहली बार विधानसभा चुनाव लड़ रहे हैं.
राजनीतिक जानकारों की राय
दोनों प्रत्याशियों की सियासी जंग पर राजनीतिक जानकार महेश पाटीदार कहते है कि राज्यवर्धन सिंह जब तक कांग्रेस में थे, तो कमल पटेल उनके सिहसलार माने जाते थे. वे राज्यवर्धन सिंह पिता और पूर्व कांग्रेस नेता प्रेम सिंह दत्तीगांव के भी करीबी रहे. राज्यवर्धन सिंह जब तक कांग्रेस से चुनाव लड़े उनके प्रचार की जिम्मेदारी कमल पटेल ही संभालते थे. अब राज्यवर्धन सिंह बीजेपी की तरफ पहुंच चुके हैं. तो कांग्रेस ने कमल पटेल पर दांव लगाया है. जबकि दोनों एक ही समाज से आते हैं. इसलिए यह कहना मुश्किल है, कि उपचुनाव में पलड़ा किसका भारी है.
राज्यवर्धन को फिर से जीत का सेहरा बाधने की जिम्मेदारी उनके राजनीतिक गुरु ज्योतिरादित्य सिंधिया के जिम्मे हैं. तो कांग्रेस के कमल को जिताने की जिम्मेदारी कमलनाथ की है. लिहाजा बदनावर विधानसभा सीट बीजेपी और कांग्रेस दोनों के लिए प्रतिष्ठा का सवाल बन गयी है. जहां जीत किसे मिलेगी यह तो 10 नवबंर को ही पता चलेगा.