धार। लॉकडाउन के चलते सभी धार्मिक स्थलों पर ताला लटका है, जहां छोटी अयोध्या के नाम से जानी जाने वाली धार की भोजशाला में न पूजा हुई और न ही नमाज अदा की गई. भोजशाला में हर मंगलवार को पूजा अर्चना और शुक्रवार को नमाज अदा की जाती थी. लेकिन लॉकडाउन के चलते धार की भोजशाला में भी मंगलवार को होने वाली पूजा और शुक्रवार को होने वाली नमाज पर रोक लग गई. सरकार के इस निर्णय का दोनों समुदाय के लोगों ने स्वागत किया और लॉकडाउन के नियमों का पालन भी कर रहे हैं.
छोटी अयोध्या का इतिहास
धार जिला राजा भोज की नगरी है, कहा जाता है कि राजा भोज की भक्ति और तपस्या से प्रसन्न होकर ज्ञान की देवी मां सरस्वती राजा भोज को स्वयं प्रकट होकर दर्शन दी थी, जिसके बाद सन 1034 में धार में राजा भोज ने ज्ञान की देवी मां सरस्वती का मंदिर भोजशाला के रूप में तामीर करा दिया, जिसके गर्भगृह में महान मूर्तिकार मंथल द्वारा भूरे रंग के स्फटिक पत्थर से निर्मित मां वाग्देवी की दिव्य प्रतिमा को राजा भोज ने स्थापित किया. जिसके बाद भोजशाला को संस्कृत विश्वविद्यालय के रूप में पहचान मिली, जिसमें बड़ी संख्या में विद्यार्थी संस्कृत विद्या के साथ ही अन्य विद्या अर्जित करते थे. मुस्लिम आक्रांता अलाउद्दीन खिलजी और दिलावर खान गोरी ने धार में अपना आधिपत्य जमाया और भोजशाला परिसर में मौलाना कलामुद्दीन के मकबरे और दरगाह का निर्माण करा दिया, इसके बाद अंग्रेज पॉलिटिकल एजेंट मेजर किनकेड मां वाग्देवी की प्रतिमा को अपने साथ लंदन ले गया, जो आज भी वहां के म्यूजियम में विद्यमान है.
इसलिए कहते हैं छोटी अयोध्या
2003 में आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (एएसआई) ने भोजशाला में पूजा और नमाज की अनुमति दी थी, जिसमें हर मंगलवार और बसन्त पंचमी पर सूर्योदय से सूर्यास्त तक भोजशाला में हिंदुओं को चावल और पुष्प लेकर पूजा करने की अनुमति दी गई, जबकि शुक्रवार को दोपहर 1 से 3 बजे तक मुस्लिमों को नमाज की अनुमति दी गई. सप्ताह के अन्य दिनों में पर्यटक से एक रुपए शुल्क लेकर प्रवेश देने का आदेश दिया गया. शुक्रवार के दिन बसंत पंचमी होने पर भोजशाला में विवाद की स्थिति बनने लगी क्योंकि बसंत पंचमी पर एएसआई के आदेश अनुसार हिंदू समाज यहां पर दिन भर पूजा-अर्चना करने की मांग करते हैं, वहीं मुस्लिम समाज एएसआई के आदेश अनुसार नमाज अदा करने का हक बताते हैं. जिसके चलते यहां पर विवाद की स्थिति बन जाती है. इसी विवाद के चलते भोजशाला छोटी अयोध्या के रूप में जानी जाने लगी.