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शाहजहां-मुमताज से कम नहीं प्यार की ये कहानी, बादशाह अकबर को भी हुआ था पछतावा

मध्यप्रदेश की ऐतिहासिक और पर्यटन नगरी मांडू रानी रुपमती और राजा बाजबहादुर के प्रेम की गवाह है. जहां आज भी इनके इश्क की दास्तान को महसूस किया जा सकता है.

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Published : Mar 21, 2019, 11:54 AM IST

रानी रुपमती और राजा बाजबहादुर

धार। विंध्य की पहाड़ियों पर, जमीन से करीब दो हजार फीट ऊंचाई पर बसी मध्यप्रदेश की ऐतिहासिक नगरी मांडू में प्रवेश करते ही आप हिंदुस्तान में घटी इश्क की सबसे खूबसूरत लेकिन दर्द भरी दास्तानों में से एक से रूबरू होने लगते हैं. ये दास्तान है राजा बाज बहादुर और रानी रूपमती के इश्क की दास्तान, जिसकी गवाही ये शहर आज भी दे रहा है.

रानी रूपमती का ये खूबसूरत शहर आपका स्वागत भी इस अदभुत प्रेमकहानी का साक्षी बनकर करता है. आमतौर पर शहर उन बादशाहों और राजाओं के नाम से जाने जाते हैं जिन्होंने उन्हें बसाया होता है, लेकिन मांडू को रूपमती का शहर कहना इसलिए जायज होगा क्योंकि बाज बहादुर ने इस नगरी में जो खूबसूरत महल बनवाए, उनकी प्रेरणा उसे रानी रूपमती से मिली.

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गीत-संगीत के अपने हुनर के चलते करीब आए बाज बहादुर और रूपमती एक-दूसरे से बेइंतेहां मोहब्बत करते थे, लेकिन रूपमती के गायन, वादन और रूप की चर्चा जब शहंशाह अकबर तक पहुंची तो उसने बाज बहादुर से रानी रूपमती को दिल्ली दरबार में भेजने की बात कही, जिससे बाज बहादुर ने इनकार कर दिया. बाज बहादुर का इनकार अकबर को नागवार गुजरा और उसने सेना भेजकर बाज बहादुर को गिरफ्तार करवा लिया.

बाज बहादुर को गिरफ्तार करने के बाद जब अकबर के सैनिक रूपमती को ले जाने के लिए पहुंचे तो उसने हीरा निगल कर आत्महत्या कर ली. बाज बहादुर के वियोग में जब रूपमती ने आत्महत्या कर ली, तब अकबर को अपने किये पर पछतावा हुआ, उसने बाजबहादुर को कैद से आजाद कर दिया.

बाजबहादुर ने अकबर से कहा कि बाजबहादुर का जीवन रुपमती के बिना अधूरा है और उसे अपनी राजधानी सारंगपुर जाने दिया जाए. सांरगपुर पहुंचकर बाज बहादुर ने रुपमती की मजार पर सिर पटक-पटक कर जान दे दी. जिसके बाद अकबर ने सारंगपुर में दोनों की समाधि बनवाई.

अकबर ने बाज बहादुर के मकबरे पर लिखवाया 'आशिक-ए-सादिक' और रूपमती की समाधि पर लिखवाया 'शहीद-ए-वफा'. रानी रूपमती और बाज बहादुर एक-दूसरे के लिए बने थे, वे साथ जिंदा नहीं रह सके तो उन्होंने साथ-साथ जान दे दी, लेकिन उस वक्त का सबसे ताकतवर शहंशाह भी उनके प्यार को हरा नहीं सका.

धार। विंध्य की पहाड़ियों पर, जमीन से करीब दो हजार फीट ऊंचाई पर बसी मध्यप्रदेश की ऐतिहासिक नगरी मांडू में प्रवेश करते ही आप हिंदुस्तान में घटी इश्क की सबसे खूबसूरत लेकिन दर्द भरी दास्तानों में से एक से रूबरू होने लगते हैं. ये दास्तान है राजा बाज बहादुर और रानी रूपमती के इश्क की दास्तान, जिसकी गवाही ये शहर आज भी दे रहा है.

रानी रूपमती का ये खूबसूरत शहर आपका स्वागत भी इस अदभुत प्रेमकहानी का साक्षी बनकर करता है. आमतौर पर शहर उन बादशाहों और राजाओं के नाम से जाने जाते हैं जिन्होंने उन्हें बसाया होता है, लेकिन मांडू को रूपमती का शहर कहना इसलिए जायज होगा क्योंकि बाज बहादुर ने इस नगरी में जो खूबसूरत महल बनवाए, उनकी प्रेरणा उसे रानी रूपमती से मिली.

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गीत-संगीत के अपने हुनर के चलते करीब आए बाज बहादुर और रूपमती एक-दूसरे से बेइंतेहां मोहब्बत करते थे, लेकिन रूपमती के गायन, वादन और रूप की चर्चा जब शहंशाह अकबर तक पहुंची तो उसने बाज बहादुर से रानी रूपमती को दिल्ली दरबार में भेजने की बात कही, जिससे बाज बहादुर ने इनकार कर दिया. बाज बहादुर का इनकार अकबर को नागवार गुजरा और उसने सेना भेजकर बाज बहादुर को गिरफ्तार करवा लिया.

बाज बहादुर को गिरफ्तार करने के बाद जब अकबर के सैनिक रूपमती को ले जाने के लिए पहुंचे तो उसने हीरा निगल कर आत्महत्या कर ली. बाज बहादुर के वियोग में जब रूपमती ने आत्महत्या कर ली, तब अकबर को अपने किये पर पछतावा हुआ, उसने बाजबहादुर को कैद से आजाद कर दिया.

बाजबहादुर ने अकबर से कहा कि बाजबहादुर का जीवन रुपमती के बिना अधूरा है और उसे अपनी राजधानी सारंगपुर जाने दिया जाए. सांरगपुर पहुंचकर बाज बहादुर ने रुपमती की मजार पर सिर पटक-पटक कर जान दे दी. जिसके बाद अकबर ने सारंगपुर में दोनों की समाधि बनवाई.

अकबर ने बाज बहादुर के मकबरे पर लिखवाया 'आशिक-ए-सादिक' और रूपमती की समाधि पर लिखवाया 'शहीद-ए-वफा'. रानी रूपमती और बाज बहादुर एक-दूसरे के लिए बने थे, वे साथ जिंदा नहीं रह सके तो उन्होंने साथ-साथ जान दे दी, लेकिन उस वक्त का सबसे ताकतवर शहंशाह भी उनके प्यार को हरा नहीं सका.

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शाहजहां-मुमताज से कम नहीं प्यार की ये कहानी, बादशाह अकबर को भी हुआ था पछतावा

 



धार। विंध्य की पहाड़ियों पर, जमीन से करीब दो हजार फीट ऊंचाई पर बसी मध्यप्रदेश की ऐतिहासिक नगरी मांडू में प्रवेश करते ही आप हिंदुस्तान में घटी इश्क की सबसे खूबसूरत लेकिन दर्द भरी दास्तानों में से एक से रूबरू होने लगते हैं. ये दास्तान है राजा बाज बहादुर और रानी रूपमती के इश्क की दास्तान, जिसकी गवाही ये शहर आज भी दे रहा है. 



रानी रूपमती का ये खूबसूरत शहर आपका स्वागत भी इस अदभुत प्रेमकहानी का साक्षी बनकर करता है. आमतौर पर शहर उन बादशाहों और राजाओं के नाम से जाने जाते हैं जिन्होंने उन्हें बसाया होता है, लेकिन मांडू को रूपमती का शहर कहना इसलिए जायज होगा क्योंकि बाज बहादुर ने इस नगरी में जो खूबसूरत महल बनवाए, उनकी प्रेरणा उसे रानी रूपमती से मिली. 



गीत-संगीत के अपने हुनर के चलते करीब आए बाज बहादुर और रूपमती एक-दूसरे से बेइंतेहां मोहब्बत करते थे, लेकिन रूपमती के गायन, वादन और रूप की चर्चा जब शहंशाह अकबर तक पहुंची तो उसने बाज बहादुर से रानी रूपमती को दिल्ली दरबार में भेजने की बात कही, जिससे बाज बहादुर ने इनकार कर दिया. बाज बहादुर का इनकार अकबर को नागवार गुजरा और उसने सेना भेजकर बाज बहादुर को गिरफ्तार करवा लिया. 



बाज बहादुर को गिरफ्तार करने के बाद जब अकबर के सैनिक रूपमती को ले जाने के लिए पहुंचे तो उसने हीरा निगल कर आत्महत्या कर ली. बाज बहादुर के वियोग में जब रूपमती ने आत्महत्या कर ली, तब अकबर को अपने किये पर पछतावा हुआ, उसने बाजबहादुर को कैद से आजाद कर दिया. 



बाजबहादुर ने अकबर से कहा कि बाजबहादुर का जीवन रुपमती के बिना अधूरा है और उसे अपनी राजधानी सारंगपुर जाने दिया जाए. सांरगपुर पहुंचकर बाज बहादुर ने रुपमती की मजार पर सिर पटक-पटक कर जान दे दी. जिसके बाद अकबर ने सारंगपुर में दोनों की समाधि बनवाई. 



अकबर ने बाज बहादुर के मकबरे पर लिखवाया 'आशिक-ए-सादिक' और रूपमती की समाधि पर लिखवाया 'शहीद-ए-वफा'. रानी रूपमती और बाज बहादुर एक-दूसरे के लिए बने थे, वे साथ जिंदा नहीं रह सके तो उन्होंने साथ-साथ जान दे दी, लेकिन उस वक्त का सबसे ताकतवर शहंशाह भी उनके प्यार को हरा नहीं सका. 


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