धार। जिला केंद्र के समीप ग्राम लबरावदा के किसान गाय पर आधारित प्राकृतिक खेती कर उन्नत किसान की श्रेणी में आए हैं. किसान द्वारा फसलों में डाली जाने वाली खाद को बाजार से रासायनिक खाद लाने के बजाय उसे अपने घर व खेत पर ही तैयार कर रहे हैं. इसके लिए गाय माता को किसान ने अपना मुख्य स्रोत बनाया है. स्वदेशी खेती को पुन स्थापित करने के उद्देश्य से किसान खाद का तरल पदार्थ तैयार कर उसका खेतों में छिड़काव कर रहे हैं हालांकि जैविक खाद को अपनी खेती किसानी तक पहुंचने के शुरुआती दौर में किसान को कई दिक्कतों का सामना भी करना पडा. किंतु किसान ने शुरु 3 सालों में किए संघर्ष के बाद अब इसे लाभ का धंधा बनाते हुए जैविक खाद का उपयोग कर एक मिसाल पेश की है. खेती - किसानी को ही लाभ का धंधा बनाकर सालाना लाखों रुपए नरेंद्र कमा रहे है.
किसान मित्र: कृषक नरेंद्र सिंह राठौर जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए सफल प्रयास किया है. वे पिछले एक दशक से जैविक खेती करते आ रहे हैं. जैविक खेती के लिए उन्हें उत्तम कृषक का अवार्ड में मिल चुका है. विपरीत परिस्थितियां के बाद भी हार नहीं मानी उसका नतीजा यह कि उन्हें गुजरात और दक्षिण भारत के कुछ शहरों में फार्मर फ्रेंड यानी किसान मित्र माना जाने लगा है. कृषक नरेंद्र सिंह राठौर के बताया कि माता स्व-रामकन्या बाई की से प्रेरणा मिलने के बाद उनके भाई कल्याण सिंह के साथ 60 बीघा जमीन पर पिछले एक दशक से जैविक खेती करते आ रहे हैं. कई लोगों ने सलाह दी कि खेत में वे रासायनिक खाद का उपयोग कर लें लेकिन उनके मजबूत इरादे और पर्यावरण की रक्षा के लिए दोनों भाइयों ने कभी भी समझौता नहीं किया. नरेंद्र सिंह एक उन्नत कृषक है आज वे विविधता भरी खेती कर रहे हैं. जिसमें गेहूं, चने से लेकर वे करीब 14 तरह की अलग अलग उद्यानिकी और अन्य फसलों की बोवनी करते हैं.
जैविक खेती की शुरुआत: सोशल मीडिया के माध्यम से पतंजलि के राजीव दीक्षित की किताब सहित वीडियो देखे थे, जिसके बाद निर्णय कर जैविक खेती की शुरुआत की. जैविक खाद को तैयार करने के लिए गाय का गोबर, गाय का गोमूत्र, बड के पेड़ के नीचे की मिट्टी, बेसन और गुड का उपयोग करके तरल पदार्थ खाद का बनाया था. एक एकड़ के लिए करीब 200 लीटर तरल पदार्थ तैयार किया जाता है. नरेंद्र बताते हैं कि लोग यहां उनकी पहल के बाद अन्य लोगों ने भी सीखने के साथ जैविक खेती को अपनाने लगे हैं. आसपास के क्षेत्र के करीब 100 किसान इस तरह से छोटे छोटे स्तर पर उनके अनुसरण भी करने लगे हैंं जिससे अब उन्हें भी जैविक खेती का महत्व पता चला और वह भी दूसरे को इसे अपनाने के लिए प्रेरणा देते हैं. नरेंद्र ने बताया कि उनका लक्ष्य है कि खेती को प्राकृतिक तरीके से किया जाए. फसलों के पोषण के लिए इस प्रकार से तरल खाद पदार्थ को तैयार किया जाता है.
जैविक गेहूं की बिक्री: किसान नरेंद्र के अनुसार जैविक खाद का उपयोग करने के कारण फसलों का उत्पादन भी बेहतर होता है. पुराने समय में बसी प्रजाति सहित शरबती गेहूं की फसलें ली जाती थी, अब इस खाद का उपयोग करके पहले ही तरह दोनों प्रजाति के गेहूं की फसल उगाई जाती है. इस गेहूं में तमाम पोषक तत्व मौजूद होते हैं, साथ ही केमिकल वाली खाद के बिना गेंहू लेने से क्वालिटी अच्छी होती है. जिसके कारण ही इसकी मांग बढ गई हैं. करीब 135 क्विंटल गेहूं का उत्पादन अपनी जमीन पर किसान नरेंद्र कर रहे है. बंशी प्रजाति करीब 5 हजार रुपए प्रति क्विंटल व सरबती 6 हजार रुपए प्रति क्विंटल तक उत्पादन के बाद बेचा जाता है. इसे इंदौर, गुजरात, चेन्नई, कोयम्बतूर तक भेजा जा रहा है. पोषक तत्वों के कारण इस गेहूं की मांग बढ़ चुकी है. इस गेहूं की रोटी खाने से लोगों को पेट में होने वाले बीमारियों से निजात मिलती है.
Green Apple Cultivation: इंदौर में ग्रीन एप्पल की खेती, स्वाद में कश्मीरी सेब को दे रहा मात
12 सालों से रासायनिक खाद से बनाई दूरी: किसान नरेंद्र बताते हैं कि 12 वर्षों से जैविक खेती कर रहे हैं जिसका उन्हें अब लाभ भी मिलने लगा है शुरुआती 2-3 वर्षों में कठिनाइयां जरूर आई थी लेकिन अब उन्हें उनकी फसल का उचित दाम भी मिल रहा है किसान का कहना है कि उन्होंने अपने खेत में लगभग 12 वर्षों पूर्व से ही रासायनिक खाद दवाइयों का उपयोग पूर्ण रूप से बंद कर दिया था. रसायनिक खाद्य से उत्पादन क्षमता तो बढ़ती है परंतु उसके कई हानिकारक परिणाम भी होते हैं जिसके कारण उन्होंने जैविक खेती को चुना.