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उस्ताद बशीर खां की कला को आगे बढ़ा रहे उनके बेटे, नसतरंगों से बजाते हैं वाद्य यंत्र - Carnatic style

नसतरंग से वाद्य यंत्र बजाने वाले देवास के उस्ताद आबिद खां से ETV भारत की खास बातचीत. जानिए कैसे बजाते हैं उस्ताद आबिद खां नसतंरग से वाद्य यंत्र.

ewas's ustad aabid khan plays instrument with vocal vein waves
नसतरंगों से वाद्य यंत्र बजाते उस्ताद आबिद खां
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Published : Dec 2, 2019, 12:33 PM IST

देवास। रियासत कालीन राज दरबार के जमाने में कई विभूतियां शहर की रहीं जिन्होंने देवास शहर का देश में ही नहीं पूरे विश्व में नाम रोशन किया. ऐसे ही रियासतकालीन जमाने के नसतरंग वादक रहे शहर के स्व.उस्ताद बशीर खां साहब उन्होंने अपने इस वादक यंत्र से राजा-महाराजों का मन मोह लिया था. अब उस्ताद बशीर खां के बेटे उस्ताद आबिद खां आज भी नसतरंग वाद्य यंत्र बजा रहे है.

नसतरंगों से वाद्य यंत्र बजाते उस्ताद आबिद खां

उस्ताद बशीर खां के निधन के बाद उनके बेटे उस्ताद आबिद खां साहब ने इस वाद्य यंत्र से अनेकों मंच पर प्रस्तुति देकर इसका सिलसिला बरकरार रखा है. इसके साथ ही इस वाद्य यंत्र को सीख रहे उनके छोटे बेटे आमिर अली भी इसे बजाने में पारंगत हो गए है.

नसतरंग का इतिहास
यह वाद्य यंत्र कर्नाटक शैली का है. ये देवास रियासत के राजघराने में 1954 में लाया गया. उस समय उस्ताद बशीर खां ने कर्नाटक से नसतरंग वादक रामाअप्पा से इसके बजाने की शैली सीखी थी. इस शैली को सीखने के बाद उन्होंने 1989 तक नसतंरग का वादन किया. वहीं अब उनके बेटे उस्ताद आबिद खां इस शैली को जिंदा रखे हुए है.

नसतरंग वाद्य यंत्र की विशेषता
नसतरंग गले की नसों से बजाई जाती है, इस वाद्य यंत्र के ऊपर मोम लगाया जाता है और उस पर सफेद मकड़ी का जाला लगाया जाता है जिसके बाद इसकी सिकाई होती है.

इस संबंध में उस्ताद आबिद खां ने ETV भारत देवास की टीम को बताया की इसे गले की नस से बजाया जाता है इसे बजाने में काफी मेहनत लगती है. ये अनोखा वाद्य यंत्र बजाने पर उनका कई स्थानों पर सम्मान किया जा चुका है. आबिद खां भारत भवन भोपाल, मालवा उत्सव, निमाड़ उत्सव, विक्रम महोत्सव उज्जैन, सुरभी दिल्ली दूरदर्शन सहित कई जगह इसकी प्रस्तुति दे चुके है. वर्तमान में इस कला को उनके बेटे आमीर अली आगे बढ़ा रहे हैं.

देवास। रियासत कालीन राज दरबार के जमाने में कई विभूतियां शहर की रहीं जिन्होंने देवास शहर का देश में ही नहीं पूरे विश्व में नाम रोशन किया. ऐसे ही रियासतकालीन जमाने के नसतरंग वादक रहे शहर के स्व.उस्ताद बशीर खां साहब उन्होंने अपने इस वादक यंत्र से राजा-महाराजों का मन मोह लिया था. अब उस्ताद बशीर खां के बेटे उस्ताद आबिद खां आज भी नसतरंग वाद्य यंत्र बजा रहे है.

नसतरंगों से वाद्य यंत्र बजाते उस्ताद आबिद खां

उस्ताद बशीर खां के निधन के बाद उनके बेटे उस्ताद आबिद खां साहब ने इस वाद्य यंत्र से अनेकों मंच पर प्रस्तुति देकर इसका सिलसिला बरकरार रखा है. इसके साथ ही इस वाद्य यंत्र को सीख रहे उनके छोटे बेटे आमिर अली भी इसे बजाने में पारंगत हो गए है.

नसतरंग का इतिहास
यह वाद्य यंत्र कर्नाटक शैली का है. ये देवास रियासत के राजघराने में 1954 में लाया गया. उस समय उस्ताद बशीर खां ने कर्नाटक से नसतरंग वादक रामाअप्पा से इसके बजाने की शैली सीखी थी. इस शैली को सीखने के बाद उन्होंने 1989 तक नसतंरग का वादन किया. वहीं अब उनके बेटे उस्ताद आबिद खां इस शैली को जिंदा रखे हुए है.

नसतरंग वाद्य यंत्र की विशेषता
नसतरंग गले की नसों से बजाई जाती है, इस वाद्य यंत्र के ऊपर मोम लगाया जाता है और उस पर सफेद मकड़ी का जाला लगाया जाता है जिसके बाद इसकी सिकाई होती है.

इस संबंध में उस्ताद आबिद खां ने ETV भारत देवास की टीम को बताया की इसे गले की नस से बजाया जाता है इसे बजाने में काफी मेहनत लगती है. ये अनोखा वाद्य यंत्र बजाने पर उनका कई स्थानों पर सम्मान किया जा चुका है. आबिद खां भारत भवन भोपाल, मालवा उत्सव, निमाड़ उत्सव, विक्रम महोत्सव उज्जैन, सुरभी दिल्ली दूरदर्शन सहित कई जगह इसकी प्रस्तुति दे चुके है. वर्तमान में इस कला को उनके बेटे आमीर अली आगे बढ़ा रहे हैं.

Intro:नस तरंग से गुलजार कर रहे अंतरंग......

दादा ने सीखा, पिता ने बढ़ाया, पुत्र भी परंपरा का कर रहे निर्वाह.......

मकड़ी की जाले से गले की नसों से बजाते नस तरंग..... Body:देवास-रियासत कालीन राज दरबार के जमाने में कई विभूतियां शहर की रही जिन्होनें देवास शहर ही नहीं वरन संपूर्ण विश्व में शहर का नाम रोशन किया है। ऐसी कई विभूतियां जिनमें पं. कुमार गंधर्व,संगीत सम्राट उस्ताद रज्जब अली खां सा., लता मंगेशकर के गुरु रहे विख्यात संगीत सम्राट उस्ताद अमानत अली खां सा., उस्ताद छोटे खां सा., रहे है। जिनकी कला और संगीत को आज भी संगीत प्रेमियों द्वारा सुना जाता है। ऐसे ही रियासतकालीन जमाने के नस तरंग वादक रहे शहर के स्व. उस्ताद बशीर खां साहब जिन्हानें अपने इस वादक यंत्र से राजा महाराजों का मन मोह लिया था।उन्होनें इस वादक यंत्र से देश के विभिन्न स्थानों पर कई प्रस्तुती दी है। उस्ताद बशीर खां साहब के पुत्र उस्ताद आबिद खां सा. जो आज भी शहर के नुसरत नगर क्षेत्र में निवास करते हैं जिन्होनें देश के विभिन्न कोनों में अपनी प्रस्तुती दी है, लेकिन रियासतकालीन जमाने से सुनते आ रहे इस वादक यंत्र को लोग भूलते जा रहे हैं। आज देश मे दो ही कलाकार है जो इस नस तरंग को जानते है जिसमे उस्ताद आबिद खां सा. शामिल है।आज भी संगीत प्रेमी रियासतकालीन संगीतकारों के द्वारा रचित संगीत को सुनने के लिए कई प्रकार के जतन तक करते हैं। ऐसे ही शहर के नुसरत नगर में संगीतकार नस तरंग वादक रहे उस्ताद बशीर खां साहब जिन्होनें वर्ष 1955 से लेकर 1989 तक अनेकों मंचों पर संगीत की प्रस्तुती दी है। उनका निधन 5 जुलाई 1990 को होने के उपरांत उनके पुत्र उस्ताद आबिद खां साहब ने इस वाद्य यंत्र से इसकी अनेकों मंचो पर प्रस्तुती दी कर सिलसिला बरकरार रखा है। उनके साथ इस वाद्य यंत्र को सीख रहे उनके छोटे पुत्र आमिर अली भी इस वाद्य यंत्र को बजाने में पारंगत हो गए है। बड़ी बात यह है की इस वाद्य यंत्र को जहां एक ओर रियासतकालीन राजा महाराजा सुनते आए है वहां अब समय के साथ-साथ परिवर्तन हो गया है।

यह रहा नसतरंग का इतिहास

यह वाद यंत्र कर्नाटक शैली का है, देवास रियासत के राजघराने में सन 1954 में कर्नाटक से श्री रामाअप्पा जी पधारे थे। जब देवास महाराज के सामने श्री रामाअप्पा जी ने नसतरंग की प्रस्तुती दी और उस्ताद बशीर खां साहब ने गायन की प्रस्तुति दी थी। इस दौरान देवास महाराज को नसतरंग काफी पसंद आया था, उन्होंने श्री रामअप्पा जी से नसतरंग की कला का आदान-प्रदान करने को कहा श्री रामाअप्पा जी ने नसतरंग उस्ताद बशीर खाँ साहब को सिखाई और उस्ताद बशीर खाँ साहब श्री रामा अप्पा जी को शास्त्रीय संगीत गायन सिखाया। उस्ताद बशीर खॉ साहब ने उनके जीवन में 1955 से 1989 तक अनेक जगह नसतरंग की प्रस्तुती दी। 5 जुलाई 1990 में उनके निधन के बाद उनके सुपुत्र श्री आबिद खाँ साहब ने इस कला की अनेक जगह प्रस्तुति दी।

इन प्रमुख स्थानों पर दी प्रस्तुत

आबिद खाँ साहब ने भारत भवन भोपाल, मालवा उत्सव, निमाड़ उत्सव, विक्रम महोत्सव उज्जैन, सुरभी दिल्ली दूरदर्शन, सुबह सवेरे स्टार प्लस, माटी की महक जी मध्यप्रदेश और अनेक जगह प्रस्तुती दी। वर्तमान में इस कला को इनके सुपुत्र आमीर अली आगे बढ़ा रहे हैं।दिलचस्प बात यह सामने आई कि इनकी चौथी पीढ़ी भी अपने बचपन मे रियाज करते हमारे कैमरे में कैद हो गया जो बड़ी ही मासूमियत से हारमोनियम पर अपनी उंगलियो से सूर पैदा करता नजर आ रहा है।

नसतरंग वाद्य यंत्र की विशेषता

नसतरंग गले की नसों से बजाई जाती है, इस वाद्य यंत्र के ऊपर मोम लगाया जाता है, और उस पर सफेद मकड़ी का जाला लगाया जाता है, और इसकी सिकाई होती है।
उस्ताद बशीर खाँ साहब के छोटे सुपुत्र श्री आबिद खाँ साहब और अब श्री आमीर अली तीनों की संगीतज्ञों का प्रमुख राग विहाग, काफी, बिंद्राबनी, सारंग, रागेश्री, बंगेश्री, हंस, कंगनी, जैक श्री आदि है। सभी रागों की अपनी अलग-अलग विशेषताएं है।

परंपरा को आगे बढ़ा रहे

इस संबंध में उस्ताद आबिद खां ने ETV भारत देवास की टीम को बताया की इसको गले की नस से बजाया जाता है इसे बजाने में काफी मेहनत लगती है, इसे वाद्य यंत्र को इस कला से बजाने पर उनका कई स्थानों पर सम्मान किया गया है। वहीं आमिर अली ने बताया की इसका रियाज करने के लिए दो से तीन घंटों का समय लगता है, काफी मेहनत लगती है। इस वाद्य यंत्र को बजाने के लिए गले की नसों का पूरा जोर लगता है। जो परंपरा मेरे दादा व पिता ने बनाई है उसे मैं आगे लेकर चलूंगा।दिलचस्प बात यह सामने आई कि इनकी चौथी पीढ़ी भी अपने बचपन मे रियाज करते हमारे कैमरे में कैद हो गया जो बड़ी ही मासूमियत से हारमोनियम पर अपनी उंगलियो से सूर पैदा करता नजर आ रहा है।


बाईट 01 उस्ताद आबिद खां
बाईट 02 छोटे पुत्र उस्ताद आमिर अलीConclusion:नस तरंग से गुलजार कर रहे अंतरंग......

दादा ने सीखा, पिता ने बढ़ाया, पुत्र भी परंपरा का कर रहे निर्वाह.......

मकड़ी की जाले से गले की नसों से बजाते नस तरंग.....
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