देवास। रियासत कालीन राज दरबार के जमाने में कई विभूतियां शहर की रहीं जिन्होंने देवास शहर का देश में ही नहीं पूरे विश्व में नाम रोशन किया. ऐसे ही रियासतकालीन जमाने के नसतरंग वादक रहे शहर के स्व.उस्ताद बशीर खां साहब उन्होंने अपने इस वादक यंत्र से राजा-महाराजों का मन मोह लिया था. अब उस्ताद बशीर खां के बेटे उस्ताद आबिद खां आज भी नसतरंग वाद्य यंत्र बजा रहे है.
उस्ताद बशीर खां के निधन के बाद उनके बेटे उस्ताद आबिद खां साहब ने इस वाद्य यंत्र से अनेकों मंच पर प्रस्तुति देकर इसका सिलसिला बरकरार रखा है. इसके साथ ही इस वाद्य यंत्र को सीख रहे उनके छोटे बेटे आमिर अली भी इसे बजाने में पारंगत हो गए है.
नसतरंग का इतिहास
यह वाद्य यंत्र कर्नाटक शैली का है. ये देवास रियासत के राजघराने में 1954 में लाया गया. उस समय उस्ताद बशीर खां ने कर्नाटक से नसतरंग वादक रामाअप्पा से इसके बजाने की शैली सीखी थी. इस शैली को सीखने के बाद उन्होंने 1989 तक नसतंरग का वादन किया. वहीं अब उनके बेटे उस्ताद आबिद खां इस शैली को जिंदा रखे हुए है.
नसतरंग वाद्य यंत्र की विशेषता
नसतरंग गले की नसों से बजाई जाती है, इस वाद्य यंत्र के ऊपर मोम लगाया जाता है और उस पर सफेद मकड़ी का जाला लगाया जाता है जिसके बाद इसकी सिकाई होती है.
इस संबंध में उस्ताद आबिद खां ने ETV भारत देवास की टीम को बताया की इसे गले की नस से बजाया जाता है इसे बजाने में काफी मेहनत लगती है. ये अनोखा वाद्य यंत्र बजाने पर उनका कई स्थानों पर सम्मान किया जा चुका है. आबिद खां भारत भवन भोपाल, मालवा उत्सव, निमाड़ उत्सव, विक्रम महोत्सव उज्जैन, सुरभी दिल्ली दूरदर्शन सहित कई जगह इसकी प्रस्तुति दे चुके है. वर्तमान में इस कला को उनके बेटे आमीर अली आगे बढ़ा रहे हैं.