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पेड़ के नीचे पढ़ने को मजबूर 'देश का भविष्य', विकास के दावे खोलता ये स्कूल

देवास की हाटपीपल्या तहसील के साकलघाट गांव के शासकीय स्कूल के बच्चों को स्कूल के बाहर पेड़ के नीचे बैठकर पढ़ाई करनी पड़ रही है. जानिए आखिर ऐसी क्या मजबूरी बनी कि इन्हें ऐसा करना पड़ रहा है.

School under the tree
स्कूल भवन जर्जर, पेड़ के नीचे पाठशाला
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Published : Dec 5, 2019, 10:22 PM IST

देवास। आज हम 21वीं सदी में जी रहे हैं और पूरा विश्व विज्ञान से लेकर अन्य क्षेत्रों में कहां से कहां तक नहीं पहुंच रहा है. हमारे देश में भी आजादी के बाद से काफी विकास हुआ है. लेकिन आज भी हम कई क्षेत्रों में दुनिया के पिछड़े देशों के साथ खड़े नजर आते हैं. मौजूदा केंद्र सरकार 5 मिलियन डॉलर इकॉनमी का सपना देख रही है लेकिन जब देश का भविष्य यानि बच्चों को ही सही से शिक्षा ना मिल पाये तो भविष्य कैसा होगा.

स्कूल भवन जर्जर, पेड़ के नीचे पाठशाला

पेड़ के नीचे लगी है पाठशाला
मध्य प्रदेश के देवास जिले में एक स्कूल ऐसा है जहां बच्चों को स्कूल भवन के अंदर नहीं बल्कि एक पेड़ के नीचे बैठाकर शिक्षा दी जा रही है. जिले की हाटपीपल्या तहसील के साकलघाट गांव का शासकीय विद्यालय, क्षेत्र का एकमात्र स्कूल है. स्कूल में आदिवासी समाज के 74 बच्चे पढ़ते हैं, जो स्कूल भवन जर्जर होने के कारण स्कूल के सामने पेड़ के नीचे बैठकर पढाई करने को मजबूर हैं.

सालों से जर्जर है स्कूल भवन
स्कूल की बिल्डिंग पिछले 2 सालों से जर्जर अवस्था में है. बिल्डिंग की छत में जगह जगह बड़ी-बड़ी दरारें पड़ चुकी है वहीं एक कमरे की छत पूरी तरह से क्षतिग्रस्त हो चुकी है. स्कूल के अंदर जान का खतरा होने के कारण शिक्षकों ने स्कूल को पेड़ के नीचे संचालित करना शुरू कर दिया. हाल यह है कि बारिश के दिनों में गीली जगह में ही बैठकर बच्चों को पढ़ाई करना पड़ती है.

जिम्मेदार नहीं दे रहे ध्यान
स्कूल की हालत देखकर ग्रामीण भी अब अपने बच्चों को स्कूल भेजने से कतराने लगे हैं. इस सबके बावजूद जिम्मेदार जनप्रतिनिधि और शिक्षा विभाग इस ओर ध्यान देना उचित नहीं समझ रहे. जिम्मेदार जनप्रतिनिधि और अधिकारी सिर्फ आश्वासन देकर ही खानापूर्ति कर रहे हैं.

देवास। आज हम 21वीं सदी में जी रहे हैं और पूरा विश्व विज्ञान से लेकर अन्य क्षेत्रों में कहां से कहां तक नहीं पहुंच रहा है. हमारे देश में भी आजादी के बाद से काफी विकास हुआ है. लेकिन आज भी हम कई क्षेत्रों में दुनिया के पिछड़े देशों के साथ खड़े नजर आते हैं. मौजूदा केंद्र सरकार 5 मिलियन डॉलर इकॉनमी का सपना देख रही है लेकिन जब देश का भविष्य यानि बच्चों को ही सही से शिक्षा ना मिल पाये तो भविष्य कैसा होगा.

स्कूल भवन जर्जर, पेड़ के नीचे पाठशाला

पेड़ के नीचे लगी है पाठशाला
मध्य प्रदेश के देवास जिले में एक स्कूल ऐसा है जहां बच्चों को स्कूल भवन के अंदर नहीं बल्कि एक पेड़ के नीचे बैठाकर शिक्षा दी जा रही है. जिले की हाटपीपल्या तहसील के साकलघाट गांव का शासकीय विद्यालय, क्षेत्र का एकमात्र स्कूल है. स्कूल में आदिवासी समाज के 74 बच्चे पढ़ते हैं, जो स्कूल भवन जर्जर होने के कारण स्कूल के सामने पेड़ के नीचे बैठकर पढाई करने को मजबूर हैं.

सालों से जर्जर है स्कूल भवन
स्कूल की बिल्डिंग पिछले 2 सालों से जर्जर अवस्था में है. बिल्डिंग की छत में जगह जगह बड़ी-बड़ी दरारें पड़ चुकी है वहीं एक कमरे की छत पूरी तरह से क्षतिग्रस्त हो चुकी है. स्कूल के अंदर जान का खतरा होने के कारण शिक्षकों ने स्कूल को पेड़ के नीचे संचालित करना शुरू कर दिया. हाल यह है कि बारिश के दिनों में गीली जगह में ही बैठकर बच्चों को पढ़ाई करना पड़ती है.

जिम्मेदार नहीं दे रहे ध्यान
स्कूल की हालत देखकर ग्रामीण भी अब अपने बच्चों को स्कूल भेजने से कतराने लगे हैं. इस सबके बावजूद जिम्मेदार जनप्रतिनिधि और शिक्षा विभाग इस ओर ध्यान देना उचित नहीं समझ रहे. जिम्मेदार जनप्रतिनिधि और अधिकारी सिर्फ आश्वासन देकर ही खानापूर्ति कर रहे हैं.

Intro:स्पेशल स्टोरी

बागली (देवास)

पैड निचे लग रही पाठशाला.......।

एंकर.... प्रदेश सरकार लाख दावे करे की प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा के लिए पढ़ने वाले मासूम
बच्चों के लिए पर्याप्त सुविधाएं उपलब्ध कराई जा रही है, लेकिन सारे दावे बागली विकासखंड के कमलापुर संकुल के अंतर्गत संचालित शासकीय प्राथमिक स्कूल साकलघाट की हकीकत झूठा साबित करने के लिए काफी हैं।
उक्त विद्यालय में आदिवासी समाज के 74 बच्चे दर्ज है जो प्रतिदिन स्कूल भवन जर्जर होने के कारण स्कूल के सामने स्थित पैड के निचे बैठकर पढाई करने को मजबूर हैं।

लेकिन जिम्मेदार जनप्रतिनिधि व शिक्षा विभाग इस और ध्यान देना उचित नहीं समझ रहे हैं।
शासकीय प्राथमिक स्कूल का भवन विगत 2 वर्षों से जर्जर अवस्था में है एवं भवन के एक हिस्से की छत भी गीर चुकी हैं। लेकिन जिम्मेदार इस ओर ध्यान देना उचित नहीं समझ रहे हैं।

उक्त भवन में जान का खतरा होने के कारण स्कूल पेड़ के नीचे संचालित किया जा रहा है बारिश के दिनों में गीली जगह में ही बैठकर बच्चों को पढ़ाई करना पड़ती है। जिम्मेदार जनप्रतिनिधि वह अधिकारी सिर्फ आश्वासन देकर ही खानापूर्ति कर रहे हैं।
स्कूल में पढ़ने वाले बच्चे शिक्षा विभाग से मिलने वाली कई सुविधाओं से कोसों दूर है लेकिन आदिवासी क्षेत्र एवं मुख्य शहरों से कोसों दूर जंगल क्षेत्र में स्थित स्कूल होने के कारण अधिकारी व नेता भी स्कूल तक पहुचना उचित नही समझते हैं। ओर इसी के चलते मूलभूत सुविधाएं बच्चों तक नहीं पहुंच पा रही है।
पूरे भवन की छत में जगह जगह बड़ी-बड़ी दरारें पड़ चुकी है वही एक कमरे की छत पूरी तरह से क्षतिग्रस्त हो चुकी है

आदिवासी क्षेत्र मे स्थिति यह स्कूल एकमात्र मासूमों को शिक्षा ग्रहण करने का माध्यम है। लेकिन हमेशा यहां हादसे का भई बना रहता है।।
जिसके कारण शिक्षक मजबूरन स्कूल भवन के बाहर पैड के निचे बिठा कर बच्चों को पढ़ाते हैं। लेकिन बारिश के दिनों में जमीन गीली होने के बावजूद बच्चों को बिठाना पड़ता है।


कंडम भवन को देखते ग्रामीण भी अब अपने बच्चों को स्कूल भेजने से कतराने लगे हैं।

विजवल...... छतिग्रस्त भवन...

बाईट.....

बाईट...प्रेमसिंह शिक्षक प्राथमिक स्कूल साकलघाट. 2

अंनत नागर संकुल प्रभारी कमलापुर 4

अर्जुन मालविय बि आर सी 3

संजय छात्र 1Body:स्पेशल स्टोरी

बागली (देवास)

पैड निचे लग रही पाठशाला.......।

एंकर.... प्रदेश सरकार लाख दावे करे की प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा के लिए पढ़ने वाले मासूम
बच्चों के लिए पर्याप्त सुविधाएं उपलब्ध कराई जा रही है, लेकिन सारे दावे बागली विकासखंड के कमलापुर संकुल के अंतर्गत संचालित शासकीय प्राथमिक स्कूल साकलघाट की हकीकत झूठा साबित करने के लिए काफी हैं।
उक्त विद्यालय में आदिवासी समाज के 74 बच्चे दर्ज है जो प्रतिदिन स्कूल भवन जर्जर होने के कारण स्कूल के सामने स्थित पैड के निचे बैठकर पढाई करने को मजबूर हैं।

लेकिन जिम्मेदार जनप्रतिनिधि व शिक्षा विभाग इस और ध्यान देना उचित नहीं समझ रहे हैं।
शासकीय प्राथमिक स्कूल का भवन विगत 2 वर्षों से जर्जर अवस्था में है एवं भवन के एक हिस्से की छत भी गीर चुकी हैं। लेकिन जिम्मेदार इस ओर ध्यान देना उचित नहीं समझ रहे हैं।

उक्त भवन में जान का खतरा होने के कारण स्कूल पेड़ के नीचे संचालित किया जा रहा है बारिश के दिनों में गीली जगह में ही बैठकर बच्चों को पढ़ाई करना पड़ती है। जिम्मेदार जनप्रतिनिधि वह अधिकारी सिर्फ आश्वासन देकर ही खानापूर्ति कर रहे हैं।
स्कूल में पढ़ने वाले बच्चे शिक्षा विभाग से मिलने वाली कई सुविधाओं से कोसों दूर है लेकिन आदिवासी क्षेत्र एवं मुख्य शहरों से कोसों दूर जंगल क्षेत्र में स्थित स्कूल होने के कारण अधिकारी व नेता भी स्कूल तक पहुचना उचित नही समझते हैं। ओर इसी के चलते मूलभूत सुविधाएं बच्चों तक नहीं पहुंच पा रही है।
पूरे भवन की छत में जगह जगह बड़ी-बड़ी दरारें पड़ चुकी है वही एक कमरे की छत पूरी तरह से क्षतिग्रस्त हो चुकी है

आदिवासी क्षेत्र मे स्थिति यह स्कूल एकमात्र मासूमों को शिक्षा ग्रहण करने का माध्यम है। लेकिन हमेशा यहां हादसे का भई बना रहता है।।
जिसके कारण शिक्षक मजबूरन स्कूल भवन के बाहर पैड के निचे बिठा कर बच्चों को पढ़ाते हैं। लेकिन बारिश के दिनों में जमीन गीली होने के बावजूद बच्चों को बिठाना पड़ता है।


कंडम भवन को देखते ग्रामीण भी अब अपने बच्चों को स्कूल भेजने से कतराने लगे हैं।

विजवल...... छतिग्रस्त भवन...

बाईट.....

बाईट...प्रेमसिंह शिक्षक प्राथमिक स्कूल साकलघाट. 2

अंनत नागर संकुल प्रभारी कमलापुर 4

अर्जुन मालविय बि आर सी 3

संजय छात्र 1Conclusion:स्पेशल स्टोरी

बागली (देवास)

पैड निचे लग रही पाठशाला.......।

एंकर.... प्रदेश सरकार लाख दावे करे की प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा के लिए पढ़ने वाले मासूम
बच्चों के लिए पर्याप्त सुविधाएं उपलब्ध कराई जा रही है, लेकिन सारे दावे बागली विकासखंड के कमलापुर संकुल के अंतर्गत संचालित शासकीय प्राथमिक स्कूल साकलघाट की हकीकत झूठा साबित करने के लिए काफी हैं।
उक्त विद्यालय में आदिवासी समाज के 74 बच्चे दर्ज है जो प्रतिदिन स्कूल भवन जर्जर होने के कारण स्कूल के सामने स्थित पैड के निचे बैठकर पढाई करने को मजबूर हैं।

लेकिन जिम्मेदार जनप्रतिनिधि व शिक्षा विभाग इस और ध्यान देना उचित नहीं समझ रहे हैं।
शासकीय प्राथमिक स्कूल का भवन विगत 2 वर्षों से जर्जर अवस्था में है एवं भवन के एक हिस्से की छत भी गीर चुकी हैं। लेकिन जिम्मेदार इस ओर ध्यान देना उचित नहीं समझ रहे हैं।

उक्त भवन में जान का खतरा होने के कारण स्कूल पेड़ के नीचे संचालित किया जा रहा है बारिश के दिनों में गीली जगह में ही बैठकर बच्चों को पढ़ाई करना पड़ती है। जिम्मेदार जनप्रतिनिधि वह अधिकारी सिर्फ आश्वासन देकर ही खानापूर्ति कर रहे हैं।
स्कूल में पढ़ने वाले बच्चे शिक्षा विभाग से मिलने वाली कई सुविधाओं से कोसों दूर है लेकिन आदिवासी क्षेत्र एवं मुख्य शहरों से कोसों दूर जंगल क्षेत्र में स्थित स्कूल होने के कारण अधिकारी व नेता भी स्कूल तक पहुचना उचित नही समझते हैं। ओर इसी के चलते मूलभूत सुविधाएं बच्चों तक नहीं पहुंच पा रही है।
पूरे भवन की छत में जगह जगह बड़ी-बड़ी दरारें पड़ चुकी है वही एक कमरे की छत पूरी तरह से क्षतिग्रस्त हो चुकी है

आदिवासी क्षेत्र मे स्थिति यह स्कूल एकमात्र मासूमों को शिक्षा ग्रहण करने का माध्यम है। लेकिन हमेशा यहां हादसे का भई बना रहता है।।
जिसके कारण शिक्षक मजबूरन स्कूल भवन के बाहर पैड के निचे बिठा कर बच्चों को पढ़ाते हैं। लेकिन बारिश के दिनों में जमीन गीली होने के बावजूद बच्चों को बिठाना पड़ता है।


कंडम भवन को देखते ग्रामीण भी अब अपने बच्चों को स्कूल भेजने से कतराने लगे हैं।

विजवल...... छतिग्रस्त भवन...

बाईट.....

बाईट...प्रेमसिंह शिक्षक प्राथमिक स्कूल साकलघाट. 2

अंनत नागर संकुल प्रभारी कमलापुर 4

अर्जुन मालविय बि आर सी 3

संजय छात्र 1
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