दतिया। जिला मुख्यालय से करीब 55 किलोमीटर दूर निर्जन जंगल एक ऊंची पहाड़ी पर मां रतनगढ़ का मंदिर है. मंदिर में माता रतनगढ़ अपने भाई कुंवर महाराज के साथ विराजमान हैं. मान्यता है कि किसी भी विषैले जीव के काटने के बाद माता के नाम की धूल काटे हुए स्थान पर लगाने एवं माता के नाम का धागा गले में पहनने के बाद विष का प्रभाव नष्ट हो जाता है. यम द्वितीया पर मंदिर पर आकर बंध काटने से विष के प्रभाव से मुक्ति मिल जाती है. इसी कारण यहां दीपावली के बाद भाई दूज के दिन विशाल मेला लगता है और बंध कटते हैं. जिला प्रशासन यहां भाई दूज के दिन स्ट्रेचर से लेकर तमाम ऐसे साधनों की व्यवस्था करता है. माता रतनगढ़ को समूचे बुंदेलखंड में विष हरता देवी माना जाता है. (ईटीवा भारत ऐसे किसी भी दावे की पुष्टि नही करता) (ratangarh bhai dooj mela)
शिवाजी ने कराया था मंदिर का निर्माण: लोगों के मुताबिक शिवाजी के गुरु समर्थ रामदास ने रतनगढ़ मंदिर पर काफी लंबे समय तक तपस्या की थी, जब औरंगजेब ने शिवाजी एवं उनके पुत्र संभाजी राव को बंदी बनाया था तब इसी स्थान पर पहुंच कर समर्थ गुरु रामदास ने शिवाजी को औरंगजेब से की कैद से मुक्त कराने की योजना बनाई थी और शिवाजी औरंगजेब की कैद से मुक्त हुए थे. औरंगजेब की कैद से मुक्त होने के बाद शिवाजी माता रतनगढ़ मंदिर पहुंचे और वहां भव्य मंदिर का निर्माण कराया एवं घंटा भी चढ़ाया था. (ratangarh mandir ka itihas)
रतनगढ़ का इतिहास: जहां आज रतनगढ़ माता मंदिर है वहां पहले कभी एक नगर हुआ करता था. जिसके महाराज रतन सिंह थे. रतन सिंह के एक पुत्र एवं एक पुत्री थी पुत्र का नाम गंगाराम जूदेव एवं पुत्री का नाम मांडूला देवी था. कहा जाता है उस समय अलाउद्दीन खिलजी रतन सिंह की पुत्री को प्राप्त करना चाहता था. जिस कारण रतन सिंह से उनकी लड़ाई हुई रतन सिंह ने कई बार खिलजी को परास्त किया. उसके बाद भी खिलजी ने हार नहीं मानी और लगातार रतनगढ़ पर आक्रमण करता रहा. (ratangarh temple history)
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रतनगढ़ माता के करीब एक और कुंड है कहा जाता है कि इस कुंड के पानी लगाने से घाव कुछ ही क्षणों में ठीक हो जाता था, खिलजी की सेना से युद्ध के बाद महाराज रतन सिंह एवं उनकी फौज इसी कुंड के जल का उपयोग करते थे और स्वस्थ होकर पुनः दूसरे दिन युद्ध के मैदान में कूद जाते थे. जब खिलजी को इस बात का पता लगा तो उसने जल के उस श्रोत बद करवा दिया. जिसके बाद युद्ध में महाराज रतन सिंह की पराजय हुई. रतन सेन की पूरी सेना मारी गई. महाराज रतन सिंह के पुत्र गंगाराम देव एवं पुत्री मांडूला देवी ने नदी में जल समाधि ले ली. कुछ समय पश्चात भाई-बहन की जोड़ी ने देवी स्वरूप ले लिया और तब से उन्हे पूजा जाने लगा. (bhai dooj mela datia)