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नरक चौदस पर श्मशान घाट में जलाए जाते हैं दिए, होती है यमराज की पूजा

दमोह जिले के जटाशंकर मुक्तिधाम पर युवा जागृति संगठन के बैनर तले हर साल नरक चौदस के दिन शाम को दीपक जलाकर युवा अपने पूर्वजों को याद करते हैं और यमराज का पूजन भी करते हैं.

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श्मशान घाट में जलाए दिए
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Published : Nov 14, 2020, 12:47 AM IST

दमोह। दिवाली के एक दिन पहले नरक चौदस के अवसर पर दमोह के मुक्तिधाम में युवा जागृति मंच के द्वारा बीते कई वर्षों से यमराज का पूजन करने के साथ अपने बुजुर्गों को याद करने की परंपरा का निर्वहन किया जा रहा है. यह परंपरा अनादि काल से चली आ रही है. जो पूरा करने के लिए यह लोग मुक्तिधाम में शाम के वक्त पहुंचते हैं और दीपक जलाते हैं.

श्मशान घाट में जलाए दिए

जटाशंकर मुक्तिधाम नरक चौदस के दिन शाम को दीपक की रोशनी से गुलजार हो जाता है. वैसे तो यहां पर लोग केवल शव का दहन करने के लिए आते हैं. लेकिन दीपावली के 1 दिन पहले शहर के कुछ समाजसेवी लोग एक संगठन के बैनर तले यहां पहुंचते हैं और पूर्वजों की परंपरा का निर्वहन करते हैं. इन लोगों को कहना है कि वे लोग नरक चौदस के दिन अपने बुजुर्गों को याद करने के लिए एकत्रित होते हैं. वहां पर श्मशान घाट में जगह जगह दीपक प्रज्वलित करते हैं. साथ ही अपने बुजुर्गों का आशीर्वाद भी प्राप्त करते हैं.

यमराज का भी किया जाता है पूजन

युवाओं का यह भी कहना है कि वे लोग इस दिन यमराज का पूजन करते हैं और यमराज का पूजन करने के साथ यमराज से सभी मानव जाति के लिए सुख समृद्धि की कामना भी करते हैं. प्राचीन काल की इस परंपरा का निर्वहन यह लोग बीते कई वर्षों से करते चले आ रहे हैं. उनका मानना है कि परंपराओं का निर्वहन करना हमारे संस्कार और संस्कृति है.

दीपक की रोशनी से गुलजार हो जाता है श्मशान घाट

नरक चौदस के अवसर पर की जाने वाली रोशनी के बाद रात के अंधेरे में पूरा श्मशान घाट दीपक की रोशनी से गुलजार हो जाता है. ऐसा लगता ही नहीं कि यह मुक्तिधाम है. हालांकि साल के 365 दिन में केवल 1 दिन ही यहां पर रोशनी की जाती है. वह भी परंपरा का निर्वहन करने के लिए एक संगठन के द्वारा ना कि शहर भर के लोग यहां पर आते हैं, लेकिन संगठन द्वारा की जा रही है पहल निश्चित ही सराहनीय है.

दमोह। दिवाली के एक दिन पहले नरक चौदस के अवसर पर दमोह के मुक्तिधाम में युवा जागृति मंच के द्वारा बीते कई वर्षों से यमराज का पूजन करने के साथ अपने बुजुर्गों को याद करने की परंपरा का निर्वहन किया जा रहा है. यह परंपरा अनादि काल से चली आ रही है. जो पूरा करने के लिए यह लोग मुक्तिधाम में शाम के वक्त पहुंचते हैं और दीपक जलाते हैं.

श्मशान घाट में जलाए दिए

जटाशंकर मुक्तिधाम नरक चौदस के दिन शाम को दीपक की रोशनी से गुलजार हो जाता है. वैसे तो यहां पर लोग केवल शव का दहन करने के लिए आते हैं. लेकिन दीपावली के 1 दिन पहले शहर के कुछ समाजसेवी लोग एक संगठन के बैनर तले यहां पहुंचते हैं और पूर्वजों की परंपरा का निर्वहन करते हैं. इन लोगों को कहना है कि वे लोग नरक चौदस के दिन अपने बुजुर्गों को याद करने के लिए एकत्रित होते हैं. वहां पर श्मशान घाट में जगह जगह दीपक प्रज्वलित करते हैं. साथ ही अपने बुजुर्गों का आशीर्वाद भी प्राप्त करते हैं.

यमराज का भी किया जाता है पूजन

युवाओं का यह भी कहना है कि वे लोग इस दिन यमराज का पूजन करते हैं और यमराज का पूजन करने के साथ यमराज से सभी मानव जाति के लिए सुख समृद्धि की कामना भी करते हैं. प्राचीन काल की इस परंपरा का निर्वहन यह लोग बीते कई वर्षों से करते चले आ रहे हैं. उनका मानना है कि परंपराओं का निर्वहन करना हमारे संस्कार और संस्कृति है.

दीपक की रोशनी से गुलजार हो जाता है श्मशान घाट

नरक चौदस के अवसर पर की जाने वाली रोशनी के बाद रात के अंधेरे में पूरा श्मशान घाट दीपक की रोशनी से गुलजार हो जाता है. ऐसा लगता ही नहीं कि यह मुक्तिधाम है. हालांकि साल के 365 दिन में केवल 1 दिन ही यहां पर रोशनी की जाती है. वह भी परंपरा का निर्वहन करने के लिए एक संगठन के द्वारा ना कि शहर भर के लोग यहां पर आते हैं, लेकिन संगठन द्वारा की जा रही है पहल निश्चित ही सराहनीय है.

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