दमोह। बुंदेलखंड की काशी या उपकाशी के नाम से मशहूर हटा विधानसभा दमोह का एक महत्वपूर्ण नगर है, जो अपने वैभवशाली इतिहास और महारानी दुर्गावती की वीरता की कहानियां कहता है. हटा विधानसभा की बात करें, तो ये विधानसभा बीजेपी के गढ के रूप में जानी जाती है क्योकिं 1985 से लेकर 2018 तक हटा विधानसभा में सिर्फ एक बार बीजेपी की हार 1993 में हुई है, जब कांग्रेस के सुंदर यहां से विधायक चुने गए थे. इसके अलावा 2008 में हुए परिसीमन के बाद ये सीट अनुसूचित जााति वर्ग के लिए आरक्षित हो गई है और तब से लगातार बीजेपी जीत हासिल करती आ रही है. यहां दलित वोटों की संख्या सबसे ज्यादा है, लेकिन कुर्मी और लोधी मतदाता भी यहां के चुनाव परिणाम को प्रभावित करते हैं.
हटा का इतिहास: बुंदेलखंड की काशी के नाम से मशहूर हटा दमोह जिले की सबसे बड़ी तहसील है, हटा की पहचान एक धार्मिक और ऐतिहासिक नगरी के रूप में है. हटा कस्बा केन नदी के पूर्वी तट पर स्थित है, जिला मुख्यालय दमोह से लगभग 40 किलोमीटर की दूरी पर दक्षिण-पश्चिम दिशा में स्थित हटा गौंड़ साम्राज्य के 52 गढों में से एक गढ था. ऐतिहासिक तथ्य बताते हैं कि गौंड़ साम्राज्य के समय हटा का रंगमहल अपने वैभव की कहानी कहता है, जो महारानी दुर्गावती की वीरताा से भी जुड़ा हुआ है.
खास बात ये है कि हटा की सीमा बुंदेलखंड के चार जिलों से लगती है, पूर्व में पन्ना, पश्चिम में टीकमगढ़, उत्तर में छतरपुर और दक्षिण में दमोह से जुड़ा है. हटा को काशी की संज्ञा दिए जाने के पीछे यहां का प्रसिद्ध गौरीशंकर मंदिर है, जहां भगवान महादेव शिवलिंग के रूप में स्थापित ना होकर दूल्हे के रूप में नंदी पर विराजे हैं. इसके अलावा यहां प्रसिद्ध चंडी जी मंदिर भी है.
हटा विधानसभा का चुनावी इतिहास: हटा विधानसभा की बात करें, तो पिछले 38 सालों में यहां से कांग्रेस सिर्फ एक बार चुनाव जीती है.से भाजपा की जीत का सिलसिला शुरू हुआ, तो 1993 में कांग्रेस के सुंदर ने जीत हासिल की थी. इसके बाद हमेशा हटा विधानसभा से भाजपा ने चुनाव जीता है. 2008 में परिसीमन के बाद ये सीट अनुसूचित जाति वर्ग के लिए आरक्षित हो गई, तब से 2 बार उमादेवी खटीक और 2018 में पीएल तंतुवाय ने जीत हासिल की है.
हटा विधानसभाा चुनाव 2008: अनुसूचित जाति के लिए 2008 में आरक्षित होने के बाद हटा विधानसभा से उमादेवी खटीक ने चुनाव जीता. बीजेपी की उमादेवी खटीक ने 38 हजार 239 वोट हासिल किए और वहीं कांग्रेस के खूबचंद्र तंतुवाय को 27 हजार 341 वोट मिले और उन्हें 10 हजार 898 वोट से हार का सामना करना पड़ा.
हटा विधानसभा चुनाव 2013: 2013 के विधानसभा चुनाव में मोदी लहर के बाद कांग्रेस ने हटा में बीजेपी के लिए कड़ी चुनौती दी, हालांकि कड़े मुकाबले में कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा. बीजेपी ने दूसरी बार उमादेवी पर भरोसा जताते हुए टिकट दिया और कांग्रेस ने हरिशंकर चौधरी को टिकट दिया. उमादेवी खटीक ने 59 हजार 231 वोट हासिल किए, वहीं कांग्रेस के हरिशंकर चौधरी को 56 हजार 379 वोट मिले. इस तरह हरिशंकर चौधरी को महज 2 हजार 852 वोट से हार का सामना करना पड़ा.
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हटा विधानसभा चुनाव 2018: 2018 विधानसभा चुनाव में भाजपा ने जहां उमादेवी खटीक का टिकट काटकर पी एल तंतुवाय पर भरोसा जताया, तो 2013 में हरिशंकर चौधरी का अच्छा प्रदर्शन देखते हुए कांग्रेस ने फिर भरोसा जताया. 2018 विधानसभा चुनाव में भाजपा के पीएल तंतुवाय ने 76 हजार 607 वोट हासिल किए, वहीं कांग्रेस के हरिशंकर चौधरी को 56 हजार 702 वोट मिली. भाजपा के पीएल तंतुवाय ने 19 हजार 905 वोटों के अंतर से बड़ी जीत हासिल की.
हटा विधानसभा के जातीय समीकरण: 2008 चुनाव परिसीमन के बाद अनुसूचित जाति वर्ग के लिए आरक्षित हटा विधानसभा सीट में सबसे ज्यादा अनुसूचित जाति के मतदाताओं की संख्या है. यहां करीब 35 हजार अनुसूचित जाति के मतदाता है, वहीं कुर्मी जाति के करीब 20 हजार और करीब 15 हजार लोधी मतदाता है. इसके अलावा ब्राह्मण, तंतुवााय, मुस्लिम, जैन और साहू समाज के मतदाता भी अच्छी संख्या में है, हटा में अनुसूचित जाति के मतदाताओं के साथ लोधी और कुर्मी मतदाता जीत और हार के फैसले में अहम भूमिका निभाते हैं.
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भ्रष्टाचार, बेरोगारी और दलित उत्पीड़न बड़ा मुद्दा: हटा विधानसभा में भ्रष्टाचार एक अहम मुद्दा है, इसके अलावा बेरोजगारी के कारण यहां दलित समुदाय लगातार पलायन के लिए मजबूर है और दिल्ली के अलावा इंदौर और पुणे जैसे शहरों में रोजगार की तलाश में भटक रहे हैं. इसके अलावा दलित बाहुल्य इलाके में दलित विधायक के बावजूद भी यहां दलित उत्पीड़न की घटनाएं लगातार देखने को मिलती है.
भाजपा कांग्रेस के दावेदार: जहां तक भाजपा के दावेदारों की बात करें तो वर्तमान विधायक पीएल तंतुवाय, पूर्व विधायक उमादेवी खटीक के अलावा पथरिया की पूर्व विधायक सोनाबाई भी हटा से टिकट की दावेदारी कर रहे हैं. वहीं दूसरी तरफ 2013 और 2018 में कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़े हरिशंकर चौधरी सिंधिया की बगावत के साथ बीजेपी में शामिल हो गए, जो टिकट की दावेदारी कर रहे हैं. इसके अलावा कांग्रेस से प्रदीप खटीक, भगवान दास चौधरी और के के वर्मा दावेदार बताए जा रहे हैं.