दमोह। जिले में खजुराहो के जैसी युगल मिथुन मूर्तियों की परिकल्पना नहीं की जा सकती है. लेकिन दमोह के पुरातत्व संग्रहालय में 11वीं और 12वीं शताब्दी में निर्मित हुए मंदिरों में इस तरह की प्रतिमाओं की छाप देखी जाती है. जहां पर रखी चार द्वार शाखाओं में खजुराहो जैसी प्रतिमाएं है. यहां पर दोनी अलोनी से लाई गई प्रतिमाओं की कला देखकर यहां आने वाले लोग तारीफ करने से नहीं थकते.
जिले के पुरातत्व संग्रहालय में इन मंदिरों को कलचुरी काल में बनाया गया था. इसमें रखी प्रतिमाएं उस समय की मूर्ति कला को प्रदर्शित करता है. लेकिन खुजराहो के अलावा दमोह के ध्वस्त हो चुके मंदिरों के भग्नावशेष में यह कला का नजारा देखने को मिलता है. आने वाले लोग बरबस ही इन प्रतिमाओं को देखकर खजुराहो की याद कर लेते हैं.
पुरातत्व के जानकार बताते हैं कि दमोह जिले में नष्ट हुए मंदिरों के भग्नावशेष अभी भी उन स्थानों पर बिखरे पड़े हैं. जिनको यदि बेहतर तरीके से निकाला जाए तो अनेक मूर्तियां अनेक कलाकृतियों की जानकारी विश्व पटल पर सामने आ सकती है. जिसमें दमोह का नाम और रोशन भी हो सकता है. लेकिन आवश्यकता है कि पुरातत्व विभाग इसके लिए पहल करने के साथ इन प्रतिभाओं को इन भग्नावशेष को सुरक्षित करने के लिए प्रयास शुरू करें.