हैदराबाद: चीन अरुणाचल प्रदेश में स्थानों का नाम बदलने और कार्टोग्राफिक आक्रामकता जैसी रणनीति का सहारा लेकर भारतीय क्षेत्रों पर अपना दावा जता रहा है. चीन की ये चालें अपने अवैध दावों के लिए कानूनी औचित्य प्रस्तुत करने के प्रयास के रूप में 'तीन युद्ध रणनीति' (Three Warfare Strategy) के एक घटक के रूप में 'कानूनी युद्ध' का हिस्सा बनती हैं.
तीन युद्ध की चीनी रणनीति: चीन ने जनमत युद्ध, मनोवैज्ञानिक युद्ध और कानूनी युद्ध की अवधारणाओं के साथ इस रणनीति की शुरुआत की, जब उसने 2003 में 'पीपुल्स लिबरेशन आर्मी के राजनीतिक कार्य दिशा-निर्देशों' को संशोधित किया. तीन युद्ध रणनीति का उद्देश्य दुश्मन की लड़ने की इच्छा को दबाकर जीतना है, या सन त्जु (Sun Tzu) के शब्दों में, 'लड़ाई के बिना जीतना' है.
छल-कपट, कूटनीतिक दबाव, अफवाहों, झूठी कहानियों और उत्पीड़न से जुड़ी सूचना संचालन के जरिये, इसका उद्देश्य विरोधी के निर्णय लेने को प्रभावित करना है. अवैध नक्शे, मनोवैज्ञानिक युद्ध और दुष्प्रचार, जिनका अक्सर दुश्मन के संकल्प को कमजोर करने और एक लंबे युद्ध को छेड़ने के लिए घरेलू आबादी का समर्थन हासिल करने के लिए इस्तेमाल किया जाता है.
आइए चालबाज चीन द्वारा भारतीय क्षेत्रों पर दावा करने के लिए अपनाई गई कुछ चालों पर नजर डालते हैं...
अरुणाचल प्रदेश में जगहों का नाम बदलना
चीन अरुणाचल प्रदेश के लगभग 90,000 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र को अपना क्षेत्र बताता है. वह इस क्षेत्र को चीनी भाषा में 'जांगनान' (Zangnan) कहता है और 'दक्षिण तिब्बत' का बार-बार जिक्र करता है. चीनी नक्शे में अरुणाचल प्रदेश को चीन का हिस्सा दिखाया जाता है और कभी-कभी इसे 'तथाकथित अरुणाचल प्रदेश' के रूप में संदर्भित किया जाता है. चीन भारतीय क्षेत्र पर अपने एकतरफा दावे को रेखांकित करने के लिए समय-समय पर प्रयास करता रहता है. अरुणाचल प्रदेश में जगहों को चीनी नाम देना उसी प्रयास का हिस्सा है.
चीन ने 2017 में अरुणाचल प्रदेश में जगहों के नाम बदलने शुरू किए. अब तक चीन ने चार बार नाम बदलने की घोषणा की है और अरुणाचल प्रदेश में 62 जगहों को चीनी नाम दिया है.
18 अप्रैल 2017: चीन ने पहली बार अरुणाचल प्रदेश में छह स्थानों का नाम बदलने की घोषणा की थी, इससे कुछ दिन पहले ही उसने तिब्बती बौद्ध धर्मगुरु दलाई लामा की अरुणाचल प्रदेश यात्रा पर भारत के समक्ष कड़ा विरोध दर्ज कराया था.
30 दिसंबर 2021: जनवरी 2021 में नए सीमा सुरक्षा कानून के प्रभावी होने से पहले चीन ने दूसरी बार अरुणाचल प्रदेश में 15 स्थानों को नया नाम दिया था. तब चीन के नागरिक मामलों के मंत्रालय ने भारतीय राज्य अरुणाचल प्रदेश में 15 स्थानों के लिए 'मानकीकृत' नाम जारी किए और कहा कि जिनका उपयोग अब से आधिकारिक चीनी मानचित्रों पर किया जाएगा. यह बीजिंग द्वारा अपने क्षेत्रीय दावों को बढ़ाने के लिए हाल ही में उठाए गए व्यापक कदमों का हिस्सा है.
11 अप्रैल 2023: चीन ने तीसरी बार अरुणाचल प्रदेश में 11 स्थानों का नाम बदला, ऐसे समय में जब दोनों देश वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) के लद्दाख सेक्टर में सैन्य गतिरोध के कारण छह दशकों में सबसे खराब द्विपक्षीय संबंधों का सामना कर रहे थे.
30 मार्च 2024: चीन ने चौथी बार अरुणाचल प्रदेश में 30 स्थानों का नाम बदला, इनमें 11 आवासीय जिले, 12 पहाड़, चार नदियां, एक झील, एक पहाड़ी दर्रा और जमीन का एक टुकड़ा शामिल है.
स्थानों के नाम बदलने की होड़ के पीछे चीनी शोधकर्ता
फरवरी 2010 से, चीनी विज्ञान अकादमी के सर्वेक्षण और भूभौतिकी संस्थान में शोधकर्ता हाओ शियाओगुआंग अरुणाचल प्रदेश में भौगोलिक विशेषताओं पर अपने शोध के आधार पर लेख प्रकाशित कर रहे हैं, जिसका उद्देश्य स्थानों के नाम बदलना है क्योंकि चीन के 2002 के मानचित्र में पूरे अरुणाचल प्रदेश में मुश्किल से 6 चीनी नाम थे.
ऐसा कहा जाता है कि हाओ के 15 साल के शोध, फील्डवर्क, कार्टोग्राफी, टोपोनिमी, भूगोल, सर्वेक्षण, मानव-जाति विज्ञान (ethnography) और इतिहास के बाद अरुणाचल प्रदेश में स्थानों के नाम बदलने के लिए एक व्यापक पद्धति विकसित की गई थी. प्रारंभिक इरादा स्थानों को वैकल्पिक नाम प्रदान करना था क्योंकि मौजूदा चीनी मानचित्रों में कोई नाम नहीं था.
कार्टोग्राफी का सहारा क्यों ले रहा चीन
यह मानचित्रण (cartography) डिजाइन के माध्यम से है, चीन ने तिब्बत पर कब्जा करने के बाद अरुणाचल प्रदेश पर दावा किया. वास्तव में, 1958 में, इसने भूटान के बड़े हिस्से को अपना क्षेत्र दिखाते हुए एक मानचित्र जारी किया.
अक्साई चिन में, चीन ने 1956 में और फिर 1960 में एक नई रेखा पर अपना दावा पेश किया, जबकि उसने 1950 में भारत की स्थिति को लगभग स्वीकार किया था, जब भारत के संविधान ने 1947 के भारत स्वतंत्रता अधिनियम के तहत सभी ब्रिटिश भारतीय क्षेत्रों को भारतीय घोषित किया.
1950 के दशक के दौरान, चीन ने केवल गलवान नदी के स्रोत के आसपास के क्षेत्रों पर दावा किया. 1960 तक, इसने नक्शों में और मौखिक दावों में पूरी तरह से वर्तमान स्थिति पर अपना दावा पेश किया.
चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के नेतृत्व में कार्टोग्राफिक युद्ध ने गति पकड़ी है, खासकर 2014 के बाद से - चीनी कम्युनिस्ट पार्टी का नियंत्रण संभालने के दो साल बाद और चीनी राष्ट्रपति बनने के एक साल बाद.
भारत के खिलाफ चीन के कार्टोग्राफिक उकसावे
2014 में : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सत्ता में आने के एक महीने के भीतर चीन ने अपना नया नक्शा जारी किया, जिसमें पूरे अरुणाचल प्रदेश और जम्मू-कश्मीर के बड़े हिस्से को चीनी क्षेत्र बताया गया.
14 मई 2015 : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की चीन की राजकीय यात्रा के दौरान भारत का एक मॉर्फ्ड नक्शा सरकारी स्वामित्व वाले चीनी सेंट्रल टेलीविजन (CCTV) द्वारा प्रसारित किया गया था, जिसमें पूरे जम्मू-कश्मीर को शामिल नहीं किया गया था.
2017: 2017 का डोकलाम गतिरोध चीन-भारत द्विपक्षीय संबंधों में एक महत्वपूर्ण मोड़ के रूप में आया. भूटानी क्षेत्र में एक सड़क के अवैध निर्माण के बाद, डोकलाम को चीन का हिस्सा बताने वाले नक्शे चीनी मीडिया द्वारा अपने दावे को पुख्ता करते हुए व्यापक रूप से प्रसारित किए गए.
अप्रैल 2017: चीन ने अरुणाचल प्रदेश में छह स्थानों के नाम बदल दिए. उस समय, इसे दलाई लामा की अरुणाचल यात्रा के खिलाफ जवाबी कार्रवाई के रूप में देखा गया था. चीन के नागरिक मामलों के मंत्रालय ने उस समय कहा था कि वह 'मानकीकृत' नामों का 'पहला बैच' जारी कर रहा है.
जुलाई 2020 में, पूर्वी लद्दाख में अतिक्रमण के बाद, पिछले नक्शों की तुलना में LAC की चीनी धारणा पश्चिम की ओर बहुत दूर चली गई.
अगस्त 2023: मानक मानचित्र का 2023 संस्करण जारी किया गया, जिसमें अक्साई चिन और अरुणाचल प्रदेश के कुछ हिस्से शामिल हैं.
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