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आजादी के इतिहास को खुद में समेटे दमोह का घंटाघर उपेक्षा का शिकार - मप्र समाचार

दमोह। जिले का हृदय स्थल माना जाने वाला घंटाघर उपेक्षा का शिकार होता नजर आ रहा है. नगर पालिका ने घंटाघर के सुधार के लिए कई बार राशि खर्च की है, लेकिन यह घंटाघर आज भी अपने सही समय का इंतजार कर रहा है.

अपनी दुर्दशा पर आंसू बहा रहा घंटाघर
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Published : Mar 26, 2019, 2:52 PM IST

सर्च इंजन में भी दमोह सर्च करने पर पहली तस्वीर घंटाघर की ही आती है. घंटाघर के चारों ओर बने बाजार में रौनक देखने को मिलती है. समय के साथ जैसे-जैसे बाजार का विस्तार होता गया, वैसे-वैसे घंटाघर के चारों ओर का इलाका छोटा पड़ता गया. जानकारों की मानें, तो जब घंटाघर का निर्माण हुआ था, उस समय वहां आसपास इतना विकास नहीं था. वहां पर पेड़ और झाड़ियां हुआ करती थीं.

अपनी दुर्दशा पर आंसू बहा रहा घंटाघर


घंटाघर में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की फोटो लगाई गई है, लेकिन रात के समय लाइट नहीं जलने से यह क्षेत्र अंधेरे में डूबा रहता है. जानकारों की मानें तो पहले इस स्थान पर फव्वारा हुआ करता था, जिसे आजादी के बाद तोड़कर घंटाघर बनाया गया. लेकिन आजादी के इतने साल बीत जाने के बाद यह घंटाघर उपेक्षा का शिकार हो चुका है.

सर्च इंजन में भी दमोह सर्च करने पर पहली तस्वीर घंटाघर की ही आती है. घंटाघर के चारों ओर बने बाजार में रौनक देखने को मिलती है. समय के साथ जैसे-जैसे बाजार का विस्तार होता गया, वैसे-वैसे घंटाघर के चारों ओर का इलाका छोटा पड़ता गया. जानकारों की मानें, तो जब घंटाघर का निर्माण हुआ था, उस समय वहां आसपास इतना विकास नहीं था. वहां पर पेड़ और झाड़ियां हुआ करती थीं.

अपनी दुर्दशा पर आंसू बहा रहा घंटाघर


घंटाघर में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की फोटो लगाई गई है, लेकिन रात के समय लाइट नहीं जलने से यह क्षेत्र अंधेरे में डूबा रहता है. जानकारों की मानें तो पहले इस स्थान पर फव्वारा हुआ करता था, जिसे आजादी के बाद तोड़कर घंटाघर बनाया गया. लेकिन आजादी के इतने साल बीत जाने के बाद यह घंटाघर उपेक्षा का शिकार हो चुका है.

Intro:आजादी के इतिहास को अपनी यादों में समेटे दमोह का घंटाघर उपेक्षा का शिकार

घंटाघर के चारों ओर लगी घड़ियां है नहीं बताती समय

Anchor. दमोह जिले की पहचान दमोह के हृदय स्थल में बने घंटाघर से है. सर्च इंजन पर भी जब दमोह की खोज की जाती है. तो उसमें भी इसी घंटाघर की तस्वीर उभरकर सामने आती है. लेकिन यह घंटाघर वर्तमान में उपेक्षा का शिकार नजर आ रहा है. कहने को तो नगर पालिका प्रशासन द्वारा कई बार घंटाघर के सुधार के लिए पैसे लगाए गए. लेकिन अनदेखी एवं उपेक्षा के कारण यह घंटाघर आज भी अपने सही समय के लिए आंसू बहा रहा है.


Body:Vo. यूं तो अनेक शहरों में घंटाघर वहां की पहचान है. लेकिन दमोह की खास पहचान ही घंटाघर है. घंटाघर के चारों ओर बने बाजार में ही रौनक का माहौल देखने मिलता है. समय के साथ जैसे-जैसे बाजार का विस्तार होता गया वैसे-वैसे घंटा घर के चारों ओर का इलाका छोटा पड़ता गया. जानकारों की मानें तो जब घंटाघर का निर्माण हुआ था उस दौर में यहां आसपास इतना विकास नहीं था यहां पर पेड़ झाड़ियां आदि इलाके को बंजर वीरान हुए थे. ज्यों-ज्यों दमोह में लोगों की बसाहट होती गई. त्यों त्यों घंटाघर का क्षेत्र बाजार के रूप में परिवर्तित होता चला गया. पहले इस स्थान पर फव्वारा हुआ करता था. जिसे आजादी के बाद तोड़कर घंटाघर बनाया गया. लेकिन आजादी के इतने साल बीत जाने के बाद अब यह घंटाघर उपेक्षित बनकर केवल नाम के लिए रह गया है. कहने को तो यहां पर देश के राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की प्रतिमा स्थापित की गई है. लेकिन यहां पर रात के समय लाइट नहीं जलने से यह क्षेत्र अंधेरे में डूबा रहता है. घंटाघर की पहचान इसके चारों ओर लगी घड़ियां हैं. लेकिन यह घड़ियां कई बार बदले जाने के बाद भी ज्यादा समय तक चलती नहीं है. ऐसे में वर्तमान में कई सालों से यह घड़ियां बिना समय बताएं घंटाघर की दुर्दशा को बयां कर रही हैं. आसपास के दुकानदार एवं शहर के लोग कहते हैं कि घंटाघर का अपना महत्व है. लेकिन उस महत्व को नहीं समझा जाना उदासीनता ही कहा जाएगा.

बाइट कपिल खरे शिक्षाविद दमोह

बाइट प्रहलाद स्थानीय दुकानदार दमोह


Conclusion:
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