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इंजीनियरिंग की नौकरी छोड़ किसान बने छिंदवाड़ा के दो भाई, पॉलीहाउस फार्मिंग कर कमा रहे लाखों, कईयों को दिया रोजगार

छिंदवाड़ा के दो इंजीनियर भाई अपनी मेहनत के बल पर ना सिर्फ अपना, बल्कि इलाके के कई लोगों का भविष्य संवार रहे हैं. इंजीनियरिंग की नौकरी छोड़ दोनों भाईयों ने फूलों की खेती शुरू की है. कोरोना काल में की इस नई पहल से आज उन्हें लाखों का फायदा हो रहा है, साथ ही कई लोगों को उन्होंने रोजगार भी दिया है. (polyhouse farming in Chhindwara)

polyhouse farming in Chhindwara
इंजीनियर की नौकरी छोड़ शुरू की फूलों की खेती
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Published : Feb 2, 2022, 8:16 PM IST

छिंदवाड़ा। कोविड-19 की पहली लहर के दौरान इंजीनियर की नौकरी छोड़ कर अपने घर छिंदवाड़ा लौटे दो भाइयों ने फूलों की खेती कर नई इबारत लिखी है. दोनों भाई आज की तारीख में एक एकड़ जमीन पर देश के साथ-साथ विदेशों में बिकने वाले झरबेरा के फूलों की खेती कर हर महीने लाखों की कमाई खुद भी कर रहे हैं और आठ से 10 लोगों को रोजगार भी दे रहे हैं.

इंजीनियर की नौकरी छोड़ शुरू की फूलों की खेती
इंजीनियर की नौकरी छोड़ शुरू की फूलों की खेती
छिंदवाड़ा के रहने वाले सौरव और शुभम रघुवंशी दोनों पुणे और दिल्ली जैसे बड़े शहरों में इंजीनियर की नौकरी करते थे. कोरोना काल में लगे पहले लॉकडाउन के दौरान ही दोनों भाई नौकरी छोड़कर वापस छिंदवाड़ा लौट आए और फिर उन्होंने खेती करने की सोची. करीब 8 महीने पहले झरबेरा के फूलों की खेती शुरू की और आज दोनों भाई हर महीने 4 से 5 लाख रुपए के फूल बेच रहे हैं.
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इंजीनियर की नौकरी छोड़ शुरू की फूलों की खेती
विदेशों में भी है डिमांड
दोनों भाइयों ने शुरुआती तौर पर 1 एकड़ जमीन में झरबेरा के फूलों की खेती शुरू की है. अपने खेतों के फूलों को दोनों भाई मजदूरों की सहायता से तोड़ कर खुद ही नागपुर और जबलपुर ले जाकर बेचते हैं. इस फूल की डिमांड सिर्फ भारत ही नहीं बल्कि विदेशों में भी है. दूसरे देशों में ये फूल सबसे ज्यादा बिकते हैं. एक फूल की कीमत 10 से ₹15 तक होती है.
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हर महीने लाखों की कमाई

पॉलीहाउस फार्मिंग, 10-15 दिन की स्टोरेज कैपेसिटी
झरबेरा की खेती खुले आसमान के नीचे नहीं की जाती, इसके लिए पॉलीहाउस बनाना पड़ता है. दोनों भाइयों ने सरकारी सहायता से कर्ज लेकर पॉलीहाउस बनाया. इंजीनियर सौरभ रघुवंशी ने बताया कि फूल के स्टोरेज की कैपेसिटी 10 से 15 दिन की होती है, इसलिए इसकी डिमांड भी बाजार में ज्यादा होती है और शादियों के सीजन में मांग दोगुनी बढ़ जाती है.

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पॉलीहाउस फार्मिंग

अब किसानों को रुला रहा प्याज ! लागत मूल्य तक नहीं मिल रहा, खेतों में फेंकने का मजबूर

दूसरों को भी दे रहे रोजगार
कुछ महीनों पहले तक दोनों भाई जहां किसी कंपनी में नौकरी करते थे, दूसरे के लिए काम करते थे, अब वो खुद लोगों को रोजगार दे रहे हैं. साथ ही खुद भी हर महीने 4 से ₹5 लाख रुपए के फूल बेचते हैं. हालांकि युवा इंजीनियर्स का कहना है कि खेती करने के लिए काफी महंगी दवाइयां और खाद का उपयोग करना पड़ता है, तब जाकर झरबेरा का पौधा छिंदवाड़ा की जलवायु में तैयार हो रहा है. (polyhouse farming in Chhindwara) (Flower farming in Chhindwara) (engineer brothers of Chhindwara)

छिंदवाड़ा। कोविड-19 की पहली लहर के दौरान इंजीनियर की नौकरी छोड़ कर अपने घर छिंदवाड़ा लौटे दो भाइयों ने फूलों की खेती कर नई इबारत लिखी है. दोनों भाई आज की तारीख में एक एकड़ जमीन पर देश के साथ-साथ विदेशों में बिकने वाले झरबेरा के फूलों की खेती कर हर महीने लाखों की कमाई खुद भी कर रहे हैं और आठ से 10 लोगों को रोजगार भी दे रहे हैं.

इंजीनियर की नौकरी छोड़ शुरू की फूलों की खेती
इंजीनियर की नौकरी छोड़ शुरू की फूलों की खेती
छिंदवाड़ा के रहने वाले सौरव और शुभम रघुवंशी दोनों पुणे और दिल्ली जैसे बड़े शहरों में इंजीनियर की नौकरी करते थे. कोरोना काल में लगे पहले लॉकडाउन के दौरान ही दोनों भाई नौकरी छोड़कर वापस छिंदवाड़ा लौट आए और फिर उन्होंने खेती करने की सोची. करीब 8 महीने पहले झरबेरा के फूलों की खेती शुरू की और आज दोनों भाई हर महीने 4 से 5 लाख रुपए के फूल बेच रहे हैं.
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इंजीनियर की नौकरी छोड़ शुरू की फूलों की खेती
विदेशों में भी है डिमांड
दोनों भाइयों ने शुरुआती तौर पर 1 एकड़ जमीन में झरबेरा के फूलों की खेती शुरू की है. अपने खेतों के फूलों को दोनों भाई मजदूरों की सहायता से तोड़ कर खुद ही नागपुर और जबलपुर ले जाकर बेचते हैं. इस फूल की डिमांड सिर्फ भारत ही नहीं बल्कि विदेशों में भी है. दूसरे देशों में ये फूल सबसे ज्यादा बिकते हैं. एक फूल की कीमत 10 से ₹15 तक होती है.
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हर महीने लाखों की कमाई

पॉलीहाउस फार्मिंग, 10-15 दिन की स्टोरेज कैपेसिटी
झरबेरा की खेती खुले आसमान के नीचे नहीं की जाती, इसके लिए पॉलीहाउस बनाना पड़ता है. दोनों भाइयों ने सरकारी सहायता से कर्ज लेकर पॉलीहाउस बनाया. इंजीनियर सौरभ रघुवंशी ने बताया कि फूल के स्टोरेज की कैपेसिटी 10 से 15 दिन की होती है, इसलिए इसकी डिमांड भी बाजार में ज्यादा होती है और शादियों के सीजन में मांग दोगुनी बढ़ जाती है.

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अब किसानों को रुला रहा प्याज ! लागत मूल्य तक नहीं मिल रहा, खेतों में फेंकने का मजबूर

दूसरों को भी दे रहे रोजगार
कुछ महीनों पहले तक दोनों भाई जहां किसी कंपनी में नौकरी करते थे, दूसरे के लिए काम करते थे, अब वो खुद लोगों को रोजगार दे रहे हैं. साथ ही खुद भी हर महीने 4 से ₹5 लाख रुपए के फूल बेचते हैं. हालांकि युवा इंजीनियर्स का कहना है कि खेती करने के लिए काफी महंगी दवाइयां और खाद का उपयोग करना पड़ता है, तब जाकर झरबेरा का पौधा छिंदवाड़ा की जलवायु में तैयार हो रहा है. (polyhouse farming in Chhindwara) (Flower farming in Chhindwara) (engineer brothers of Chhindwara)

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