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बर्दाश्त नहीं पुरखों का अपमान! राम नहीं यहां रावण हैं भगवान, महिषासुर की भी होती है पूजा

भले ही पूरे देश में बुराई पर अच्छाई की जीत के प्रतीक दशहरे पर रावण के पुतले का दहन किया जाता है, लेकिन 50 गांव ऐसे हैं, जहां रावण दहन नहीं बल्कि रावण पूजन की परंपरा है, यहां के लोग रावण और महिषासुर को अपना पूर्वज मानते हैं, इसलिए दोनों की पूजा करते हैं.

ravan worship in chhindwara
राम नहीं यहां रावण हैं भगवान
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Published : Oct 15, 2021, 9:37 AM IST

छिंदवाड़ा। बुराई पर अच्छाई की जीत के प्रतीक रावण के पुतले का दशहरा के दिन पूरे देश में दहन किया जाता है, लेकिन छिंदवाड़ा के करीब 40 से 50 गांव ऐसे हैं, जहां रावण को भगवान मानकर पूजा की जाती है और दशहरा के दूसरे दिन सांस्कृतिक कार्यक्रम भी आयोजित किए जाते हैं.

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आदिवासी मानते हैं रावण को अपना पूर्वज

दशहरा के दूसरे दिन बिछुआ विकास खंड के जामुन टोला गांव में बड़ा जलसा होता है, जलसे में आदिवासी समाज भगवान रावण को अपना पूर्वज मानते हुए राजा रावण की पूजा करते हैं, स्थानीय लोगों का कहना है कि रावण उनके पूर्वज ही नहीं बल्कि भगवान भी थे, इसलिए भी उनकी पूजा करते हैं.

राम नहीं यहां रावण हैं भगवान

रावण दहन करना आदिवासियों का अपमान

रावण की पूजा करने वाले आदिवासी समाज का कहना है कि रावण उनके पूर्वज और भगवान थे, दशहरे के दिन रावण का पुतला दहन किया जाता है, जो आदिवासी समाज का अपमान है, 4 साल पहले छोटे से कार्यक्रम से रावण पूजा की शुरुआत हुई थी, जो अब बड़ा रूप ले चुकी है.

राजा रावण एवं महिषासुर की होगी गोंगो पूजा

दशहरा के दूसरे दिन यानि शनिवार को जामुन टोला गांव में आदिवासी समाज राजा रावण मंडावी एवं महिषासुर गूंगो की पूजा करेंगे, इसके लिए तैयारियां शुरू हो गई है, स्थानीय लोगों ने बताया कि इस दिन सुबह 7:00 बजे से 11:00 बजे तक कलश यात्रा के साथ ही गोंगो पूजा होगी, उसके बाद दोपहर 12:00 बजे से सामाजिक वक्ताओं का उद्बोधन एवं सांस्कृतिक कार्यक्रम भी होगा.

सम्मेलन में जुड़ेंगे धर्मगुरु-सामाजिक वक्ता

रावण पूजा के बाद धर्म गुरु और सामाजिक वक्ताओं का सम्मेलन होगा, जो समाजिक मार्गदर्शन देंगे, आदिवासी युवाओं ने बताया कि आदिवासी संस्कृति से लोगों को परिचित कराना और आदिवासी समाज को अपनी विरासत के बारे में अधिक से अधिक समझाने के लिए धर्मगुरु और सामाजिक वक्ता अपने विचार रखेंगे.

40-50 गांव में नहीं होता रावण दहन

बिछुआ आदिवासी बाहुल्य ब्लॉक है, इसमें करीब 40 से 50 ऐसे गांव हैं, जहां रावण के पुतले का दहन नहीं किया जाता है, लोगों ने बताया कि धीरे-धीरे आदिवासी समाज के लोगों को अपने धर्म और संस्कृति का ज्ञान हो रहा है, जिसकी वजह से अपने पूर्वज रावण के पुतला दहन की जगह अब उनकी पूजा करने लगे हैं, जामुनटोला में होने वाले कार्यक्रम में बिछुआ ब्लॉक के अधिकतर आदिवासी गांव के लोग पहुंचते हैं.

छिंदवाड़ा। बुराई पर अच्छाई की जीत के प्रतीक रावण के पुतले का दशहरा के दिन पूरे देश में दहन किया जाता है, लेकिन छिंदवाड़ा के करीब 40 से 50 गांव ऐसे हैं, जहां रावण को भगवान मानकर पूजा की जाती है और दशहरा के दूसरे दिन सांस्कृतिक कार्यक्रम भी आयोजित किए जाते हैं.

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आदिवासी मानते हैं रावण को अपना पूर्वज

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रावण दहन करना आदिवासियों का अपमान

रावण की पूजा करने वाले आदिवासी समाज का कहना है कि रावण उनके पूर्वज और भगवान थे, दशहरे के दिन रावण का पुतला दहन किया जाता है, जो आदिवासी समाज का अपमान है, 4 साल पहले छोटे से कार्यक्रम से रावण पूजा की शुरुआत हुई थी, जो अब बड़ा रूप ले चुकी है.

राजा रावण एवं महिषासुर की होगी गोंगो पूजा

दशहरा के दूसरे दिन यानि शनिवार को जामुन टोला गांव में आदिवासी समाज राजा रावण मंडावी एवं महिषासुर गूंगो की पूजा करेंगे, इसके लिए तैयारियां शुरू हो गई है, स्थानीय लोगों ने बताया कि इस दिन सुबह 7:00 बजे से 11:00 बजे तक कलश यात्रा के साथ ही गोंगो पूजा होगी, उसके बाद दोपहर 12:00 बजे से सामाजिक वक्ताओं का उद्बोधन एवं सांस्कृतिक कार्यक्रम भी होगा.

सम्मेलन में जुड़ेंगे धर्मगुरु-सामाजिक वक्ता

रावण पूजा के बाद धर्म गुरु और सामाजिक वक्ताओं का सम्मेलन होगा, जो समाजिक मार्गदर्शन देंगे, आदिवासी युवाओं ने बताया कि आदिवासी संस्कृति से लोगों को परिचित कराना और आदिवासी समाज को अपनी विरासत के बारे में अधिक से अधिक समझाने के लिए धर्मगुरु और सामाजिक वक्ता अपने विचार रखेंगे.

40-50 गांव में नहीं होता रावण दहन

बिछुआ आदिवासी बाहुल्य ब्लॉक है, इसमें करीब 40 से 50 ऐसे गांव हैं, जहां रावण के पुतले का दहन नहीं किया जाता है, लोगों ने बताया कि धीरे-धीरे आदिवासी समाज के लोगों को अपने धर्म और संस्कृति का ज्ञान हो रहा है, जिसकी वजह से अपने पूर्वज रावण के पुतला दहन की जगह अब उनकी पूजा करने लगे हैं, जामुनटोला में होने वाले कार्यक्रम में बिछुआ ब्लॉक के अधिकतर आदिवासी गांव के लोग पहुंचते हैं.

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