छिंदवाड़ा। 15 अक्टूबर को देश सहित पूरे विश्व में अंतरराष्ट्रीय ग्रामीण महिला दिवस मनाया जा रहा है. ग्रामीण इलाकों की महिलाएं पूरे विश्व में कामयाबी की मिसालें पेश कर रही है. ऐसी ही प्रेरक कहानी छिंदवाड़ा के रोहनाकला के आदिवासी परिवार में जन्मी अनुसुईया ऊइके की है. जो एक साधारण से आदिवासी परिवार से राज्यपाल के पद तक पहुंच गई.
रोहनाकला के आदिवासी परिवार में लखनलाल और जेएम ऊइके के यहां अनुसुईया ऊइके का जन्म 10 अप्रैल 1957 को हुआ था. साधारण आदिवासी परिवार में जन्मी और पली बढ़ी अनुसुईया ऊइके शुरू से ही ग्रामीणों और आदिवासियों के लिए कुछ करना चाहती था, हमेशा आदिवासियों के हित में काम करने लगी.
गरीबी को मात देकर पिता ने दिलाई उच्च शिक्षा
जिस दौर में बेटियों को कोख में ही मार दिया जाता था, उस दौर में उनके पिता ने अपनी बेटी की लगन और मेहनत को देखते हुए गरीबी को मात देकर पढ़ाया लिखाया. इसके बाद उच्च शिक्षा के दौरान ऊइके ने राजनीति की तरफ रुख किया. उसी दौरान अनुसुईया ऊइके 1971 से 1981 छिंदवाड़ा शासकीय कॉलेज में उपाध्यक्ष और सचिव भी रही.
कॉलेज में रही असिस्टेंट प्रोफेसर
अर्थशास्त्र में एमए और कानून की एलएलबी डिग्री लेने के बाद अनुसुईया ऊइके ने आदिवासी अंचल तामिया के सरकारी कॉलेज में 1982 से 1984 तक असिस्टेंट प्रोफेसर के रूप में काम किया.
1985 में पहली बार पहुंची विधानसभा
कॉलेज से नौकरी छोड़ने के बाद अनुसूईया उइके ने आदिवासियों और गरीबो के उत्थान के लिए राजनीति का रुख लिया और 1984 में कांग्रेस का दामन थाम लिया. जिसके बाद 1985 में छिंदवाड़ा के दमुआ से विधानसभा चुनाव में जीतकर पहली बार विधानसभा पहुंची. वहीं अर्जून सिंह की सरकार में 1988 से 1989 तक महिला एवं बाल विकास मंत्री भी रही.
1991 में भाजपा का दामन थामी,अब राज्यपाल
उइके ने 1991 में राजनैतिक अपवादों के चलते कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया और भाजपा का दामन थाम लिया. उइके राष्ट्रीय महिला आयोग की सदस्य, मध्यप्रदेश राज्य जनजाति आयोग की अध्यक्ष, राज्यसभा सदस्य और राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग की उपाध्यक्ष सहित कई महत्वपूर्ण पदों पर रही. 16 जुलाई 2019 को उन्हें छत्तीसगढ़ का राज्यपाल नियुक्त किया गया.
बदा दें अनुसुईया उइके ने सामाजिक जीवन जीने के लिए गृहस्थ जीवन में प्रवेश नहीं किया. छिंदवाड़ा की इस बेटी ने देश सहित विदेशों नें भी कई मुकाम हासिल किए हैं. अनुसुईया ऊइके को 1985 में तत्कालीन सोवियत यूनियन के मास्को और ताशकंद में आयोजित अंतर्राष्ट्रीय युवा महोत्सव में शामिल हुई थी. उन्हें 1990 में दलित उत्थान के लिए डॉ. भीमराव अंबेडकर फेलोशिप और 1989 में जागरूक विधायक का तमगा भी मिला है.