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ग्रामीण महिला दिवस विशेष: आदिवासी परिवार में जन्मी बेटी ने तय किया गांव से राज्यपाल तक का सफर

15 अक्टूबर को पूरे विश्व में अंतरराष्ट्रीय ग्रामीण महिला दिवस मनाया जा रहा है. हमारे देश में ऐसी कई हस्तियां हैं, जिन्होंने बुलंदियों को छूकर एक नई मिसाल पेश की है.

आदिवासी परिवार में जन्मी अनुसुईया ऊइके
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Published : Oct 15, 2019, 6:00 PM IST

छिंदवाड़ा। 15 अक्टूबर को देश सहित पूरे विश्व में अंतरराष्ट्रीय ग्रामीण महिला दिवस मनाया जा रहा है. ग्रामीण इलाकों की महिलाएं पूरे विश्व में कामयाबी की मिसालें पेश कर रही है. ऐसी ही प्रेरक कहानी छिंदवाड़ा के रोहनाकला के आदिवासी परिवार में जन्मी अनुसुईया ऊइके की है. जो एक साधारण से आदिवासी परिवार से राज्यपाल के पद तक पहुंच गई.

आदिवासी परिवार में जन्मी अनुसुईया ऊइके

रोहनाकला के आदिवासी परिवार में लखनलाल और जेएम ऊइके के यहां अनुसुईया ऊइके का जन्म 10 अप्रैल 1957 को हुआ था. साधारण आदिवासी परिवार में जन्मी और पली बढ़ी अनुसुईया ऊइके शुरू से ही ग्रामीणों और आदिवासियों के लिए कुछ करना चाहती था, हमेशा आदिवासियों के हित में काम करने लगी.

गरीबी को मात देकर पिता ने दिलाई उच्च शिक्षा

जिस दौर में बेटियों को कोख में ही मार दिया जाता था, उस दौर में उनके पिता ने अपनी बेटी की लगन और मेहनत को देखते हुए गरीबी को मात देकर पढ़ाया लिखाया. इसके बाद उच्च शिक्षा के दौरान ऊइके ने राजनीति की तरफ रुख किया. उसी दौरान अनुसुईया ऊइके 1971 से 1981 छिंदवाड़ा शासकीय कॉलेज में उपाध्यक्ष और सचिव भी रही.

कॉलेज में रही असिस्टेंट प्रोफेसर

अर्थशास्त्र में एमए और कानून की एलएलबी डिग्री लेने के बाद अनुसुईया ऊइके ने आदिवासी अंचल तामिया के सरकारी कॉलेज में 1982 से 1984 तक असिस्टेंट प्रोफेसर के रूप में काम किया.

1985 में पहली बार पहुंची विधानसभा

कॉलेज से नौकरी छोड़ने के बाद अनुसूईया उइके ने आदिवासियों और गरीबो के उत्थान के लिए राजनीति का रुख लिया और 1984 में कांग्रेस का दामन थाम लिया. जिसके बाद 1985 में छिंदवाड़ा के दमुआ से विधानसभा चुनाव में जीतकर पहली बार विधानसभा पहुंची. वहीं अर्जून सिंह की सरकार में 1988 से 1989 तक महिला एवं बाल विकास मंत्री भी रही.

1991 में भाजपा का दामन थामी,अब राज्यपाल

उइके ने 1991 में राजनैतिक अपवादों के चलते कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया और भाजपा का दामन थाम लिया. उइके राष्ट्रीय महिला आयोग की सदस्य, मध्यप्रदेश राज्य जनजाति आयोग की अध्यक्ष, राज्यसभा सदस्य और राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग की उपाध्यक्ष सहित कई महत्वपूर्ण पदों पर रही. 16 जुलाई 2019 को उन्हें छत्तीसगढ़ का राज्यपाल नियुक्त किया गया.

बदा दें अनुसुईया उइके ने सामाजिक जीवन जीने के लिए गृहस्थ जीवन में प्रवेश नहीं किया. छिंदवाड़ा की इस बेटी ने देश सहित विदेशों नें भी कई मुकाम हासिल किए हैं. अनुसुईया ऊइके को 1985 में तत्कालीन सोवियत यूनियन के मास्को और ताशकंद में आयोजित अंतर्राष्ट्रीय युवा महोत्सव में शामिल हुई थी. उन्हें 1990 में दलित उत्थान के लिए डॉ. भीमराव अंबेडकर फेलोशिप और 1989 में जागरूक विधायक का तमगा भी मिला है.

छिंदवाड़ा। 15 अक्टूबर को देश सहित पूरे विश्व में अंतरराष्ट्रीय ग्रामीण महिला दिवस मनाया जा रहा है. ग्रामीण इलाकों की महिलाएं पूरे विश्व में कामयाबी की मिसालें पेश कर रही है. ऐसी ही प्रेरक कहानी छिंदवाड़ा के रोहनाकला के आदिवासी परिवार में जन्मी अनुसुईया ऊइके की है. जो एक साधारण से आदिवासी परिवार से राज्यपाल के पद तक पहुंच गई.

आदिवासी परिवार में जन्मी अनुसुईया ऊइके

रोहनाकला के आदिवासी परिवार में लखनलाल और जेएम ऊइके के यहां अनुसुईया ऊइके का जन्म 10 अप्रैल 1957 को हुआ था. साधारण आदिवासी परिवार में जन्मी और पली बढ़ी अनुसुईया ऊइके शुरू से ही ग्रामीणों और आदिवासियों के लिए कुछ करना चाहती था, हमेशा आदिवासियों के हित में काम करने लगी.

गरीबी को मात देकर पिता ने दिलाई उच्च शिक्षा

जिस दौर में बेटियों को कोख में ही मार दिया जाता था, उस दौर में उनके पिता ने अपनी बेटी की लगन और मेहनत को देखते हुए गरीबी को मात देकर पढ़ाया लिखाया. इसके बाद उच्च शिक्षा के दौरान ऊइके ने राजनीति की तरफ रुख किया. उसी दौरान अनुसुईया ऊइके 1971 से 1981 छिंदवाड़ा शासकीय कॉलेज में उपाध्यक्ष और सचिव भी रही.

कॉलेज में रही असिस्टेंट प्रोफेसर

अर्थशास्त्र में एमए और कानून की एलएलबी डिग्री लेने के बाद अनुसुईया ऊइके ने आदिवासी अंचल तामिया के सरकारी कॉलेज में 1982 से 1984 तक असिस्टेंट प्रोफेसर के रूप में काम किया.

1985 में पहली बार पहुंची विधानसभा

कॉलेज से नौकरी छोड़ने के बाद अनुसूईया उइके ने आदिवासियों और गरीबो के उत्थान के लिए राजनीति का रुख लिया और 1984 में कांग्रेस का दामन थाम लिया. जिसके बाद 1985 में छिंदवाड़ा के दमुआ से विधानसभा चुनाव में जीतकर पहली बार विधानसभा पहुंची. वहीं अर्जून सिंह की सरकार में 1988 से 1989 तक महिला एवं बाल विकास मंत्री भी रही.

1991 में भाजपा का दामन थामी,अब राज्यपाल

उइके ने 1991 में राजनैतिक अपवादों के चलते कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया और भाजपा का दामन थाम लिया. उइके राष्ट्रीय महिला आयोग की सदस्य, मध्यप्रदेश राज्य जनजाति आयोग की अध्यक्ष, राज्यसभा सदस्य और राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग की उपाध्यक्ष सहित कई महत्वपूर्ण पदों पर रही. 16 जुलाई 2019 को उन्हें छत्तीसगढ़ का राज्यपाल नियुक्त किया गया.

बदा दें अनुसुईया उइके ने सामाजिक जीवन जीने के लिए गृहस्थ जीवन में प्रवेश नहीं किया. छिंदवाड़ा की इस बेटी ने देश सहित विदेशों नें भी कई मुकाम हासिल किए हैं. अनुसुईया ऊइके को 1985 में तत्कालीन सोवियत यूनियन के मास्को और ताशकंद में आयोजित अंतर्राष्ट्रीय युवा महोत्सव में शामिल हुई थी. उन्हें 1990 में दलित उत्थान के लिए डॉ. भीमराव अंबेडकर फेलोशिप और 1989 में जागरूक विधायक का तमगा भी मिला है.

Intro:ग्रामीण महिला दिवस विशेष

छिंदवाड़ा । छिंदवाड़ा के रोहनाकला गांव में आदिवासी परिवार में लखनलाल और जेएम ऊइके के यहाँ अनुसुईया ऊइके का जन्म 10 अप्रैल 1957 को हुआ । साधारण आदिवासी परिवार में जन्मी और पली बढ़ी अनुसुईया ऊइके को शुरू से ही ग्रामीण और आदिवासी उत्थान के काम में लगी रही और आज छत्तीसगढ़ की राज्यपाल हैं।


Body:जिस दौर में बेटियों को पढ़ाना किसी भी ग्रामीण के लिए बहुत कठिन काम था और आदिवासी परिवारों के लिए तो नामुनकिन जैसा लेकिन पिता ने उनको उच्च शिक्षा तक पढ़ाया और उसी दौरान ऊइके ने राजनीति में पदार्पण किया अनुसुईया ऊइके 1971 से 1981 छिन्दवाड़ा शासकीय कॉलेज में उपाध्यक्ष और सचिव रही ।

कॉलेज में रही असिस्टेंट प्रोफेसर

अर्थशास्त्र में एमए की पढ़ाई के और कानून की एलएलबी डिग्री लेने के बाद अनुसुईया ऊइके ने आदिवासी अंचल तामिया के सरकारी कॉलेज में 1982 से 1984 तक असिस्टेंट प्रोफेसर के रूप में काम किया।

1984 में राजनीति में आकर विधानसभा पहुँची।

कॉलेज से सिस्टम ऑफिसर की नौकरी छोड़ने के बाद में सोच और ऐसे लोगों ने कांग्रेस का दामन थामा और 1985 में छिंदवाड़ा के दमुआ से विधानसभा चुनाव में जीतकर विधानसभा पहुंची। इस दौरान 1988 से 1989 में अर्जुन सिंह की सरकार में महिला एवं बाल विकास मंत्री भी रही।

1991 में भाजपा का दामन थामी,अब राज्यपाल

1991 में उन्होंने कांग्रेस छोड़कर भाजपा का दामन थाम लिया उसके बाद भाजपा ने उन्हें विधायक का टिकिट दिया लेकिन वे हार गई, उसके बाद सन 2000 से 2005 तक राष्ट्रीय महिला आयोग की सदस्य,मप्र राज्य जनजाति आयोग की अध्यक्ष,राज्यसभा सदस्य,और राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग की उपाध्यक्ष के बाद 16 जुलाई को छग का राज्यपाल नियुक्त किया गया।




Conclusion:छिंदवाड़ा के छोटे से गांव में जन्मी छिंदवाड़ा की बेटी ने सामाजिक जीवन जीने के लिए गृहस्थ जीवन में प्रवेश नहीं किया। छिंदवाड़ा की बेटी ने सिर्फ देश ही नहीं नहीं विदेशों में भी अपनी बुलंदियों को मनवाया है सुश्री अनुसुईया ऊइके को 1985 में तत्कालीन सोवियत यूनियन के मास्को और ताशकंद में आयोजित अंतर्राष्ट्रीय युवा महोत्सव में शामिल हुई,1990 में दलित उत्थान के लिए डॉ भीमराव अंबेडकर फेलोशिप, और 1989 में जागरूक विधायक का तमगा लोकसभा अध्यक्ष बलराम जाखड़ ने दिया था।
भी मिला।

नोट-छग की राज्यपाल नियुक्त होने के बाद पहली बार छिन्दवाड़ा आई थी जब के फाइल विसुअल और बाइट हैं
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