छिंदवाड़ा। देशभर में लॉकडाउन के बीच भीषण गर्मी का दौर शुरू हो गया है. वैश्विक महामारी कोरोना को लेकर लॉकडाउन भी जारी है. लोग घरों में कैद हैं. इस बीच पेयजल संकट ने घरों में कैद लोगों को बाहर निकलने पर मजबूर कर दिया है.
ये है पूर्व सीएम के गृह जिले का हाल
दरअसल ये हाल है विकास का मॉडल कहे जाने वाला जिला छिंदवाड़ा का. ये वही छिंदवाड़ा है, जहां सूबे के पूर्व मुखिया कमलनाथ अपने जिले के विकास की तारीफ करते नहीं थकते हैं... लेकिन यहां के लोगों का कहना है कि कोरोना वायरस का तो पता नहीं लेकिन पानी की किल्लत के चलते जरूर मर जाएंगे. यहां पानी की इतनी किल्लत है कि इस लॉकडाउन के दौरान भी पूरा गांव सिर्फ एक नल के सहारे पानी भरने को मजबूर है. और सूबे के पूर्व मुखिया पानी संकट को लेकर अपनी सरकार में पानी अधिकार कानून बनाया..लेकिन इस कानून से अपने गृह जिले के ग्रामीणों की प्यास नहीं बुझा सके.
जिम्मेदारों की ये कौन सी जिम्मेदारी ?
कोरोना वायरस का खौफ और चिलचिलाती धूप, लेकिन फिर भी हाथ में खाली बर्तन लेकर भीड़ लगाए खड़े बच्चे बुजुर्ग और महिलाएं, यह नजारा है पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ के जिले का. जहां पर पीने के पानी के लिए लोगों को जद्दोजहद करनी पड़ रही है. सांवली के ग्रामीणों का कहना है कि उन्होंने जनप्रतिनिधियों से लेकर अधिकारियों के दरवाजे कई बार खटखटाया, लेकिन सिर्फ आश्वासन ही मिलता है जनप्रतिनिधि तो आकर झांकते भी नहीं है.
साहब कोरोना से नहीं, 'पानी के बिन जाएंगे'
और इस विकास के मॉडल की तहकीकात करने ईटीवी भारत की टीम सांवली गांव पहुंचती है, तो यहां का नजारा चौका देने वाले थे. इस इलाके में महज एक नल के सहारे सैकड़ों लोग पानी भरने की जद्दोजहद कर रहे थे.अपने नंबर का इंतजार कर रही महिलाओं का कहना है कि लॉकडाउन के दौरान कोरोना का खतरा है लेकिन उन्हें इससे ज्यादा खतरा है कि अगर पानी ना मिला तो वह प्यास से मर जाएंगे, फिर चाहे बच्चे हो या फिर बुजुर्ग हों क्योंकि पानी तो सबके लिए अनमोल है.
गांव के छात्रों का दर्द
पानी भरते हुए छोटे बच्चों से लेकर कॉलेज जाती बच्चियों ने ईटीवी भारत से भावुक होकर बताया कि सिर्फ गर्मी में ही नहीं पूरे साल उनके गांव के यही हालात होते हैं. इसके चलते स्कूल कॉलेज और पढ़ाई की चिंता के पहले पानी भरने की फिकर होती है. कई बार यह हालात होता है कि 5 किलोमीटर दूर तक उन्हें पानी लाने के लिए जाना पड़ता है. इसलिए पढ़ाई से पहले उन्हें पानी के लिए संघर्ष के सफर की दूरी तय करनी होती है.
पानी की टंकी में पानी नहीं
और इन सबके बीच खास बात यह है कि यहां पर दिखावे के लिए प्रशासन ने पानी की टंकी तो बनाई है. लेकिन उस पर पानी भरने के लिए कोई व्यवस्था नहीं की गई है. नेशनल हाईवे के बगल से लगा गांव जहां से हर दिन जनप्रतिनिधि और अधिकारी गुजरते हैं, लेकिन फिर भी किसी की नजर नहीं पड़ती है. ये अपने आप में एक बड़ा सवाल है.