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इस दिव्यांग के हौसले को सलाम, जुगाड़ की ट्राई साईकिल पर भर रहे उड़ान

छिंदवाड़ा के कृष्णा साहू बचपन से दिव्यांग हैं लेकिन प्रकृति का अन्याय से लड़ते हुए वह अपने सपनों को पूरा करना चाहते हैं. इसीलिए पिता की मदद से रोज जुगाड़ की ट्राई साइकलिंग पर कॉलेज आते हैं.

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Published : Oct 4, 2019, 3:33 PM IST

छिंदवाड़ा। मंजिल उन्हें मिलती है जिनके सपनों में जान होती है, पंखों से कुछ नहीं होता हौसलों से उड़ान होती है. इन पंक्तियों को साकार करता है छिंदवाड़ा के रोहनाकला गांव का रहने वाला कृष्णा साहू. बचपन से दिव्यांग कृष्णा के ना तो पैर काम करते हैं और ना ही हाथ लेकिन उसके हौसलें बुलंद हैं. पढ़ने की ऐसी इच्छाशक्ति है कि कोई भी परेशानी कृष्णा का रास्ता ना रोक पाये.

कृष्णा साहू के हौसले को सलाम

कृष्णा साहू अभी BA की पढ़ाई कर रहा है. कृष्णा साहू का सपना है कि वह पढ़ लिख कर सिविल सर्विस में जाए. इसके लिए उसके सपनों को पूरा करने के लिए उसके पिताजी भी पूरा साथ देते हैं. उसके पिता छिंदवाड़ा से करीब 10 किलोमीटर दूर गांव रोहना कला से हर दिन अपने बेटे को जुगाड़ की ट्रायसिकल से कॉलेज लेकर आते हैं. अपनी बाइक पर प्लास्टिक चेयर को बांधकर उसमें हर दिन अपने बेटे को स्कूल और फिर उसके बाद अब कॉलेज तक पहुंचाते हैं.

व्हील चेयर भी लाते हैं साथ में

कृष्णा साहू के पिता बताते हैं कि वह हर दिन गांव से अपने बेटे के सपने को पूरा करने के लिए बाइक में प्लास्टिक की चेयर बांधते हैं और उसके साथ ही व्हीलचेयर भी. ताकि कॉलेज जाने के बाद उसे उसे व्हीलचेयर की सहायता से कॉलेज के भीतर ले जाया जा सके.

लिखने के लिए सहायक

कृष्णा साहू के हाथ पैर काम नहीं करते लेकिन ये उसके सपनों के लिए बाधा ना बन सके इसलिए एक सहायक भी रखा गया है जो परीक्षा में कृष्णा साहू के हिसाब से प्रश्न पत्र हल करता है.

सरकार पोर्टल से परेशानी

कृष्णा साहू बताते हैं कि उन्हें हालांकि सरकार की तरफ से ट्राईसाईकिल और व्हील चेयर भी मिली है. लेकिन मुख्यमंत्री दिव्यांग प्रोत्साहन सहायता योजना की तरफ से स्कूटी मिलती है, जिसके लिए वे कई महीनों से कोशिश कर रहे हैं लेकिन पोर्टल नहीं खुलने की वजह से उनका आवेदन दर्ज नहीं हो रहा है.

कृष्णा साहू का पढ़ने और अपने सपनों को पूरा करने का ऐसा जज्बा देखकर कोई भी उनके हौसले की तारीफ किए बिना नहीं रह पाता. प्रकृति का अन्याय झेलने के बाद भी कृष्णा साहू का जुनून हम सभी के लिए एक प्रेरणास्त्रोत है.

छिंदवाड़ा। मंजिल उन्हें मिलती है जिनके सपनों में जान होती है, पंखों से कुछ नहीं होता हौसलों से उड़ान होती है. इन पंक्तियों को साकार करता है छिंदवाड़ा के रोहनाकला गांव का रहने वाला कृष्णा साहू. बचपन से दिव्यांग कृष्णा के ना तो पैर काम करते हैं और ना ही हाथ लेकिन उसके हौसलें बुलंद हैं. पढ़ने की ऐसी इच्छाशक्ति है कि कोई भी परेशानी कृष्णा का रास्ता ना रोक पाये.

कृष्णा साहू के हौसले को सलाम

कृष्णा साहू अभी BA की पढ़ाई कर रहा है. कृष्णा साहू का सपना है कि वह पढ़ लिख कर सिविल सर्विस में जाए. इसके लिए उसके सपनों को पूरा करने के लिए उसके पिताजी भी पूरा साथ देते हैं. उसके पिता छिंदवाड़ा से करीब 10 किलोमीटर दूर गांव रोहना कला से हर दिन अपने बेटे को जुगाड़ की ट्रायसिकल से कॉलेज लेकर आते हैं. अपनी बाइक पर प्लास्टिक चेयर को बांधकर उसमें हर दिन अपने बेटे को स्कूल और फिर उसके बाद अब कॉलेज तक पहुंचाते हैं.

व्हील चेयर भी लाते हैं साथ में

कृष्णा साहू के पिता बताते हैं कि वह हर दिन गांव से अपने बेटे के सपने को पूरा करने के लिए बाइक में प्लास्टिक की चेयर बांधते हैं और उसके साथ ही व्हीलचेयर भी. ताकि कॉलेज जाने के बाद उसे उसे व्हीलचेयर की सहायता से कॉलेज के भीतर ले जाया जा सके.

लिखने के लिए सहायक

कृष्णा साहू के हाथ पैर काम नहीं करते लेकिन ये उसके सपनों के लिए बाधा ना बन सके इसलिए एक सहायक भी रखा गया है जो परीक्षा में कृष्णा साहू के हिसाब से प्रश्न पत्र हल करता है.

सरकार पोर्टल से परेशानी

कृष्णा साहू बताते हैं कि उन्हें हालांकि सरकार की तरफ से ट्राईसाईकिल और व्हील चेयर भी मिली है. लेकिन मुख्यमंत्री दिव्यांग प्रोत्साहन सहायता योजना की तरफ से स्कूटी मिलती है, जिसके लिए वे कई महीनों से कोशिश कर रहे हैं लेकिन पोर्टल नहीं खुलने की वजह से उनका आवेदन दर्ज नहीं हो रहा है.

कृष्णा साहू का पढ़ने और अपने सपनों को पूरा करने का ऐसा जज्बा देखकर कोई भी उनके हौसले की तारीफ किए बिना नहीं रह पाता. प्रकृति का अन्याय झेलने के बाद भी कृष्णा साहू का जुनून हम सभी के लिए एक प्रेरणास्त्रोत है.

Intro:स्पेशल

छिन्दवाड़ा। मंजिल उन्हें मिलती है जिनके सपनों में जान होती है पंखों से कुछ नहीं होता हौसलों से उड़ान होती है।
इन पंक्तियों को साकार करता है छिन्दवाड़ा के रोहनाकला गाँव का रहने वाला कृष्णा साहू बचपन से दिव्यांग कृष्णा के ना तो पैर काम करते हैं और ना ही हाथ लेकिन उसके हौसलें बुलंद हैं।


Body:
अपनी बाइक पर प्लास्टिक चेयर को बांधकर उसमें हर दिन अपने बेटे को स्कूल और फिर उसके बाद अब कॉलेज का सफर करवाते हैं कृष्णा साहू के पिताजी छिंदवाड़ा से करीब 10 किलोमीटर की दूर गांव रोहना कला से हर दिन अपने बेटे को कॉलेज लेकर आते हैं।

सिविल सर्विस में जाना चाहता है कृष्णा

भले ही कृष्णा साहू के हाथ पैर काम नहीं करते हो लेकिन उसके हौसले इतने हैं कि वह BA की पढ़ाई कर रहा है कृष्णा साहू का सपना है कि वह पढ़ लिख कर सिविल सर्विस मैं जाए इसके लिए उसके सपनों को पूरा करने के लिए उसके पिताजी भी पूरा साथ देते हैं और हर दिन अपने बेटे को जुगाड़ कि ट्रायसिकल से गांव से शहर लाते हैं।

व्हील चेयर भी लाते हैं साथ में

कृष्णा साहू के पिता बताते हैं कि वह हर दिन गांव से अपने बेटे के सपने को पूरा करने के लिए बाइक में प्लास्टिक की चेयर बांधते हैं और उसके साथ ही व्हीलचेयर भी ताकि कॉलेज जाने के बाद कॉलेज के भीतर उसे व्हीलचेयर की सहायता से ले जाया जा सके।

लिखने के लिए सहायक
कृष्णा साहू के हाथ पैर काम नहीं करते इसके लिए उसके सपनों को पूरा करने के लिए सहायक भी रखा गया है जो परीक्षा में कृष्णा साहू के हिसाब से प्रश्न पत्र हल करता है।


Conclusion:सरकार पोर्टल से परेशानी
कृष्णा साहू बताते हैं कि उन्हें हालांकि सरकार की तरफ से ट्राईसाईकिल और व्हील चेयर भी मिली है लेकिन मुख्यमंत्री दिव्यांग प्रोत्साहन सहायता योजना की तरफ से स्कूटी मिलती है जिसके लिए वे कई महीनों से कोशिश कर रहे हैं लेकिन पोर्टल नहीं खुलने की वजह से उनका आवेदन दर्ज नहीं हो रहा है।

बाइट-कृष्णा साहू, दिव्यांग
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