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आदर्श गांव का हाल-बेहाल, लोगों को कब्र के लिए दो गज जमीन नहीं हो रही नसीब

आदर्श गांव में अन्नदाता को खुद की कब्र के लिए दो गज जमीन नसीब नहीं हो रही है. यहां मृतक के परिजन कई किलोमीटर दूर रिश्तेदारों के घर से अर्थियां उठाने को मजबूर हैं.

ग्रामीणों के हाल-बेहाल
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Published : May 8, 2019, 1:21 PM IST

छिंदवाड़ा। आदर्श गांव धनौरा और बारह बरियारी गांव आज भी बुनियादी सुविधाओं से महरूम है. यहां ना पीने को पानी है और ना ही स्वास्थ्य सुविधाएं हैं. यहीं नहीं यहां कब्र के लिए दो गज जमीन मिलना भी मुश्किल है. लोग शवों को दफनाने के लिए दूसरे गांव के कब्रिस्तान में जाने के लिए मजबूर हैं. वहीं शवों को जलाने के लिए श्मशान घाट भी नहीं है.

ग्रामीणों के हाल-बेहाल

धनौरा के रहने वाले नवाब मंसूरी के बेटे की बीमारी के चलते मौत हो गई थी. घर के चिराग के बुझ जाने से परिवार में गमगीन माहौल था, लेकिन नवाब मंसूरी को अपने बेटे के शव को दफनाने की चिंता सता रही थी. गांव में कब्रिस्तान नहीं होने के चलते वह अपने बेटे के शव को 40 किमी दूर अपने रिश्तेदार के घर लेकर गए और अंतिम संस्कार किया.

ग्रामीणों का कहना है कि जब उनकी जमीन ली जा रही थी, तब उन्हें सुविधाओं का लालच दिया गया था, लेकिन अब ना तो स्वास्थ्य सुविधाएं हैं और ना पीने का पानी. धनौरा और बारह बरियारी आदर्श गांव हैं. यहां आदर्श गांव का बड़ा सा स्वागत द्वार भी है, लेकिन गांव में ना अस्पताल है और ना ही पीने का पानी. जिले में बने सबसे बड़े डैम माचागोरा को लेकर राजनीतिक दलों में श्रेय लेने की होड़ लगी है. जिसके नाम पर चुनाव में खूब वोट भी मांगे गए, लेकिन हकीकत कुछ और ही नजर आती है.

छिंदवाड़ा। आदर्श गांव धनौरा और बारह बरियारी गांव आज भी बुनियादी सुविधाओं से महरूम है. यहां ना पीने को पानी है और ना ही स्वास्थ्य सुविधाएं हैं. यहीं नहीं यहां कब्र के लिए दो गज जमीन मिलना भी मुश्किल है. लोग शवों को दफनाने के लिए दूसरे गांव के कब्रिस्तान में जाने के लिए मजबूर हैं. वहीं शवों को जलाने के लिए श्मशान घाट भी नहीं है.

ग्रामीणों के हाल-बेहाल

धनौरा के रहने वाले नवाब मंसूरी के बेटे की बीमारी के चलते मौत हो गई थी. घर के चिराग के बुझ जाने से परिवार में गमगीन माहौल था, लेकिन नवाब मंसूरी को अपने बेटे के शव को दफनाने की चिंता सता रही थी. गांव में कब्रिस्तान नहीं होने के चलते वह अपने बेटे के शव को 40 किमी दूर अपने रिश्तेदार के घर लेकर गए और अंतिम संस्कार किया.

ग्रामीणों का कहना है कि जब उनकी जमीन ली जा रही थी, तब उन्हें सुविधाओं का लालच दिया गया था, लेकिन अब ना तो स्वास्थ्य सुविधाएं हैं और ना पीने का पानी. धनौरा और बारह बरियारी आदर्श गांव हैं. यहां आदर्श गांव का बड़ा सा स्वागत द्वार भी है, लेकिन गांव में ना अस्पताल है और ना ही पीने का पानी. जिले में बने सबसे बड़े डैम माचागोरा को लेकर राजनीतिक दलों में श्रेय लेने की होड़ लगी है. जिसके नाम पर चुनाव में खूब वोट भी मांगे गए, लेकिन हकीकत कुछ और ही नजर आती है.

Intro:हर इंसान की आखिरी ख्वाहिश होती है कि कम से कम उसकी अर्थी तो अपने घर से ही उठे लेकिन छिन्दवाड़ा के धनौरा और बारहबरियारी गाँव के लोंगो को ये भी नसीब नहीं हो रहा है। दरअसल माचागोरा डैम बनाने के लिए प्रशासन ने इन गाँव को अधिग्रहित कर दूसरी जगह विस्थापित किया था, जहाँ पर मूलभूत सुविधाएँ तो दूर गाँव में कब्रिस्तान भी नहीं है जिसकी वजह से किसी के घर में मौत हो जाए तो उसकी अर्थी उठाने के लिए रिश्तेदारों के घर और दफनाने के लिए दूसरे गाँव के कब्रिस्तान का सहारा लेना पड़ रहा है।


Body:धनौरा के रहने वाले नवाब मंसूरी के बेटे की बीमारी के चलते मौत हो गई थी,पूरे परिवार के ऊपर जहाँ घर के चिराग के बुझ जाने का गम था लेकिन नबाव मंसूरी को अपने बेटे को दफनाने की चिंता सता रही थी क्योंकि इनके गाँव में कब्रिस्तान नहीं होने की वजह से इन्होंने अपने बेटे को 40 किमी दूर छिन्दवाड़ा में अपने रिश्तेदार के घर लेकर अंतिम संस्कार किया।

सुविधाओं का लालच देकर किया था विस्थापित।

ग्रामीणों का कहना है कि जब उनकी जमीन ली जा रही थी तो उनको सारी सुविधाओं का लालच दिया गया था लेकिन न तो स्वास्थ्य सुविधा है और ना पीने को पानी,दोनों गाँव को मिलाकर करीब 25 मुस्लिम परिवार यहाँ रहते हैं जिसके घर में भी मौत होती है उनको अंतिम संस्कार के लिए रिश्तेदारों का सहारा लेना पड़ता है। हिंदुओं का कहना है कि मोक्षधाम के नाम से बीच गाँव में एक शेड लगाया गया जिसका वे विरोध कर रहे हैं हालाँकि हिन्दू दाह संस्कार करते हैं इसलिए वे कहीं भी खुली जगह में कर देते हैं लेकिन मुस्लिम समाज के लिए परेशानी है।

बाइट- नबाव मंसूरी,पीड़ित
बाइट-परसराम वर्मा,सरपंच धनौरा

प्रशासन की नजर में आदर्श गाँव।

धनौरा और बारह बरियारी गाँव में आप जैसे ही प्रवेश करेंगे तो आदर्श गांव का बड़ा सा स्वागत द्वार और गाँव की सुविधाओं को बखान करता एक बोर्ड आपको मिलेगा लेकिन हकीकत में जहाँ पीने का पानी ना हो,अंतिम संस्कार करने के लिए जमीन ना हो और ईलाज के लिए अस्पताल ना हो क्या यही आदर्श गाँव की परिभाषा है ।


Conclusion:जिले में बने सबसे बड़े डैम माचागोरा को लेकर राजनीतिक दलों में श्रेय लेने की होड़ लगी है कि उसे हमने बनवाया है और उसके नाम से चुनाव में वोट भी खूब माँगे गए लेकिन डैम बनाने के लिए जिन अन्नदाताओं ने अपना सबकुछ लुटा दिया उनके हालात को देखने के लिए और उनकी जिम्मेदारी लेने के लिए कोई आगे नहीं आ रहा है।
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