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पातालकोट: जहां मेघनाथ ने की थी अराधना, प्रकृति के आंचल में बसा खूबसूरती का तोहफा - प्राकृतिक सुंदरता

छिंदवाड़ा की कोख में जमीन से 1700 फिट नीचे बसे पातालकोट की प्राकृतिक खूबसूरती देखते ही बनती है. कुछ ही समय पहले बेपर्दा हुए पातालकोट में कई राज दफन हैं.

पातालकोट।
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Published : Mar 28, 2019, 5:26 PM IST

छिंदवाड़ा। कहते हैं प्रकृति के गर्भ में कई राज़ दफन हैं, ऐसे राज़ जिन्हें जानने के लिए प्रकृति की इजाजत जरूरी है. मध्यप्रदेश की धरती भी ऐसे ही कई खूबसूरत राज़ अपने दिल में छिपाए हुए है. छिंदवाड़ा के पास जमीन से 1700 फीट नीचे बसा पातालकोट भी ऐसा ही एक खूबसूरत राज़ है, जिसे कुछ वक्त पहले ही प्रकृति ने बेपर्दा किया.

पातालकोट।

सूरज की किरणों से दूर, पहाड़ों की आड़ में छुपे पातालकोट को देख ऐसा लगता है कि जैसे प्रकृति ने अपनी गोद में एक अलग दुनिया बसा दी हो. एक ऐसी दुनिया जो वास्तविक दुनिया के मायाजालों से दूर हो. सतपुड़ा के ऊंचे-ऊंचे पहाड़ आदिवासियों की इस खूबसूरत दुनिया को चारों ओर से घेरे हुए हैं.

कुदरती खूबसूरती से लबरेज इस जादुई दुनिया तक पहुंचने के 5 रास्ते हैं, जो घने जंगलों के बीच से गुजरते हैं. यह रास्ते हमें प्रकृति के उस रूप से रू-ब-रू कराते हैं जो प्रदुषण और आधुनिक जिंदगी की बुराइयों से अछूते हैं. इन खूबसूरत वादियों में बड़ी-बड़ी चट्टानों के बीच से बहता स्वच्छ पानी हमारे मन को निर्मल कर देता है. प्रकृति भी पातालकोट पर मेहरबान है, शायद इसीलिए उसने इस जगह को अपने आंचल में छिपा रखा है और ये आंचल कई बार सूरज की रोशनी को पातालकोट तक पहुंचने ही नहीं देता. गहराई में बसे पातालकोट के कई हिस्सों में सूरज की किरणें जमीन तक नहीं पहुंच पाती हैं.

एक ऐसे आंचल में जहां शाम होते ही पातालकोट का सूरज अस्त हो जाता है. वहीं कुछ तो ऐसे भी हैं जहां सूरज की किरणें जमीन तक नहीं पहुंच पाती हैं. पर्वतों की ओट में एक अलग ही दुनिया बसी हुई है जो अपनी विविधता की वजह से सबका ध्यान अपनी ओर खींचती है.

पातालकोट के बारे में एक मिथक भी प्रचलित है कि रावण का बेटा मेघनाथ इसी जगह पर शिव की आराधना कर पाताल लोक गया था, इसलिए इस जगह को पातालकोट के नाम से जाना जाता है. जमीन की गहराई में बसा पातालकोट अपनी आदिवासी सभ्यता के लिए भी मशहूर है. यहां करीब एक दर्जन गांव बसे हुए हैं. शहरी चकाचौंध से दूर गोंड और भाड़िया आदिवासी आज भी अपने पारंपरिक तौर-तरीकों से ज़िंदगी गुजार रहे हैं. उन्हें विकास का विरोधी तो नहीं कहा जा सकता, लेकिन प्राकृतिक खूबसूरती को बचाए रखने के लिए वे मशीनों और आधुनिक दुनिया से एक जरूरी दूरी बनाए रखना चाहते हैं. यहां तक कि इलाज के लिए डॉक्टरों की बजाय ये जड़ी-बूटियों के भरोसे रहते हैं. यहां मौजूद जड़ी-बूटियों को अद्भुत और दुर्लभ माना जाता है, जिनकी मदद से कई गंभीर बीमारियों के इलाज का दावा भी किया जाता है. यहां रहने वाली आदिवासी जातियां प्रकृति को मां की तरह मानती हैं, इसलिए उसे हल से छलनी करना इन्हें रास नहीं आता. ये लोग खेती के लिए किसी भी तरह के औजारों का इस्तेमाल नहीं करते.

पातालकोट जमीन के गर्भ में बसी एक ऐसी अनोखी दुनिया है जहां खूबसूरती मतलब प्रकृति है. जमीन से कई फीट गहराई में सूरज की पहुंच से दूर फैले घने जंगल, आदिवासियों की अनोखी संस्कृति, प्रकृति के रहस्य और पूरी तरह प्राकृतिक वातावरण पातालकोट को किसी भी पर्यटक स्थल से जुदा करती हैं.

छिंदवाड़ा। कहते हैं प्रकृति के गर्भ में कई राज़ दफन हैं, ऐसे राज़ जिन्हें जानने के लिए प्रकृति की इजाजत जरूरी है. मध्यप्रदेश की धरती भी ऐसे ही कई खूबसूरत राज़ अपने दिल में छिपाए हुए है. छिंदवाड़ा के पास जमीन से 1700 फीट नीचे बसा पातालकोट भी ऐसा ही एक खूबसूरत राज़ है, जिसे कुछ वक्त पहले ही प्रकृति ने बेपर्दा किया.

पातालकोट।

सूरज की किरणों से दूर, पहाड़ों की आड़ में छुपे पातालकोट को देख ऐसा लगता है कि जैसे प्रकृति ने अपनी गोद में एक अलग दुनिया बसा दी हो. एक ऐसी दुनिया जो वास्तविक दुनिया के मायाजालों से दूर हो. सतपुड़ा के ऊंचे-ऊंचे पहाड़ आदिवासियों की इस खूबसूरत दुनिया को चारों ओर से घेरे हुए हैं.

कुदरती खूबसूरती से लबरेज इस जादुई दुनिया तक पहुंचने के 5 रास्ते हैं, जो घने जंगलों के बीच से गुजरते हैं. यह रास्ते हमें प्रकृति के उस रूप से रू-ब-रू कराते हैं जो प्रदुषण और आधुनिक जिंदगी की बुराइयों से अछूते हैं. इन खूबसूरत वादियों में बड़ी-बड़ी चट्टानों के बीच से बहता स्वच्छ पानी हमारे मन को निर्मल कर देता है. प्रकृति भी पातालकोट पर मेहरबान है, शायद इसीलिए उसने इस जगह को अपने आंचल में छिपा रखा है और ये आंचल कई बार सूरज की रोशनी को पातालकोट तक पहुंचने ही नहीं देता. गहराई में बसे पातालकोट के कई हिस्सों में सूरज की किरणें जमीन तक नहीं पहुंच पाती हैं.

एक ऐसे आंचल में जहां शाम होते ही पातालकोट का सूरज अस्त हो जाता है. वहीं कुछ तो ऐसे भी हैं जहां सूरज की किरणें जमीन तक नहीं पहुंच पाती हैं. पर्वतों की ओट में एक अलग ही दुनिया बसी हुई है जो अपनी विविधता की वजह से सबका ध्यान अपनी ओर खींचती है.

पातालकोट के बारे में एक मिथक भी प्रचलित है कि रावण का बेटा मेघनाथ इसी जगह पर शिव की आराधना कर पाताल लोक गया था, इसलिए इस जगह को पातालकोट के नाम से जाना जाता है. जमीन की गहराई में बसा पातालकोट अपनी आदिवासी सभ्यता के लिए भी मशहूर है. यहां करीब एक दर्जन गांव बसे हुए हैं. शहरी चकाचौंध से दूर गोंड और भाड़िया आदिवासी आज भी अपने पारंपरिक तौर-तरीकों से ज़िंदगी गुजार रहे हैं. उन्हें विकास का विरोधी तो नहीं कहा जा सकता, लेकिन प्राकृतिक खूबसूरती को बचाए रखने के लिए वे मशीनों और आधुनिक दुनिया से एक जरूरी दूरी बनाए रखना चाहते हैं. यहां तक कि इलाज के लिए डॉक्टरों की बजाय ये जड़ी-बूटियों के भरोसे रहते हैं. यहां मौजूद जड़ी-बूटियों को अद्भुत और दुर्लभ माना जाता है, जिनकी मदद से कई गंभीर बीमारियों के इलाज का दावा भी किया जाता है. यहां रहने वाली आदिवासी जातियां प्रकृति को मां की तरह मानती हैं, इसलिए उसे हल से छलनी करना इन्हें रास नहीं आता. ये लोग खेती के लिए किसी भी तरह के औजारों का इस्तेमाल नहीं करते.

पातालकोट जमीन के गर्भ में बसी एक ऐसी अनोखी दुनिया है जहां खूबसूरती मतलब प्रकृति है. जमीन से कई फीट गहराई में सूरज की पहुंच से दूर फैले घने जंगल, आदिवासियों की अनोखी संस्कृति, प्रकृति के रहस्य और पूरी तरह प्राकृतिक वातावरण पातालकोट को किसी भी पर्यटक स्थल से जुदा करती हैं.

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