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पहाड़ी और ठंडे इलाकों में भी हो सकेगी संतरे की खेती, कृषि अनुसंधान केंद्र ने किए सफल परीक्षण

कृषि अनुसंधान केंद्र छिंदवाड़ा (Agricultural Research Center Chhindwara) ने संतरे की खेती (Orange Farming) को लेकर नया परीक्षण किया है. कृषि वैज्ञानिक (Agricultural Scientist) का कहना है कि अब पहाड़ी और ठंडे इलाकों में भी मीठे संतरे की खेती की जा सकेगी. पहले संतरे सिर्फ समतल भूमि और गर्म जलवायु पैदा होते थे. इस परीक्षण के बाद किसान संतरों को पहाड़ी इलाके में उगाकर अच्छा मुनाफा कमा सकेंगे.

Orange Farming
संतरे की खेती
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Published : Sep 8, 2021, 6:28 PM IST

Updated : Sep 8, 2021, 11:08 PM IST

छिंदवाड़ा। संतरा एक ऐसा फल है जिसकी खेती समान्यतः समतल भूमि और गर्म जलवायु में ही होती है. लेकिन अब संतरे खेती पठारी (Orange Farming) और ठंडे इलाकों में भी हो सकती है. छिंदवाड़ा कृषि अनुसंधान केंद्र (Agricultural Research Center Chhindwara) में कृषि वैज्ञानिकों (Agricultural Scientist) ने इसका सफल परीक्षण किया है. वैज्ञानिकों का कहना है कि इस परीक्षण से किसानों की समस्या का समाधान होगा, क्योंकि पहले संतरे सिर्फ समतल भूमि और गर्म जलवायु पैदा होते थे. इस परीक्षण के बाद किसान संतरों को पहाड़ी इलाके में उगाकर अच्छा मुनाफा कमा सकेंगे. पहाड़ों पर किस पद्धति से संतरे का उत्पादन किया जा सकता है इसको लेकर वरिष्ठ वैज्ञानिक विजय पराड़कर ने ETV Bharat से खास बातचीत की...

पहाड़ी और ठंडे इलाकों में भी हो सकेगी संतरे की खेती

23 हजार हेक्टेयर में होती है संतरे की खेती

वरिष्ठ वैज्ञानिक विजय बताते है कि छिंदवाड़ा के सौंसर और पांढुर्णा में करीब 23 हजार हेक्टेयर (57 हजार एकड़) जमीन में संतरे की खेती की जाती है. लोल ऐसा कहते कि समतल भूमि और गर्म इलाकों में ही अच्छे संतरे की पैदावार होती है. लेकिन छिंदवाड़ा के कृषि अनुसंधान केंद्र के वैज्ञानिकों की टीम ने पहाड़ी और ठंडे इलाकों में लगाने वाले संतरों की नई किस्म तैयार की है. वैज्ञानिकों का कहना है कि इस किस्म से पहाड़ी और ठंडे इलाकों में भी संतरे की खेती की जा सकेगी. इससे किसानों को अच्छा फायदा होगा.

Cultivation of oranges in hilly and cold areas
पहाड़ी और ठंडे इलाकों में हुई संतरे की खेती

रूट स्टॉक के लिए जंबूरी पौधों का होता है इस्तेमाल

कृषि वैज्ञानिक विजय ने बताया कि अधिकतर किसान भाई पौधे खरीद कर खेतों में लगा देते हैं, जो सफल नहीं हो पाते. अनुसंधान केंद्र में जेंबूरी और रंकूर पौधों को रूटस्टॉक के रूप में प्रयोग किया गया है. नागपुरी संतरे की कलम उसमें बडिंग की गई है. जिसके बाद एक सफल पौधा तैयार होता है, जो करीब 30 साल तक फल दे सकता है. किसान यदि इस पद्धति से खेती करते है तो उन्हें अच्छा लाभ होगा.

Workers preparing oranges to be sold in the market
संतरे को बाजार में बेचने के लिए तैयार करते कर्मचारी

MP में आम और संतरे से किसान होंगे मालामाल

किसी भी इलाके में कर सकते है संतरे की खेती

कृषि वैज्ञानिक विजय पराड़कर ने ईटीवी भारत से बातचीत में बताया कि महाराष्ट्र के विदर्भ इलाके से लगा सौंसर और पांढुर्णा में ज्यादा तापमान और समतल भूमि के कारण नागपुरी संतरे का उत्पादन होता है. दूसरे किसान भाईयों को भ्रांति थी कि इस इलाके में ही मीठे संतरे की पैदावार हो सकती है, लेकिन कृषि अनुसन्धान केंद्र में तैयार की गई संतरे के पौधों से किसान भाई छिंदवाड़ा जिले के किसी भी इलाके में संतरे की खेती कर सकते है.

Senior Agricultural Scientist Vijay Paradkar
वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक विजय पराड़कर

भारत सरकार की योजना के चलते किया प्रैक्टिकल

दरअसल खेती को मुनाफे का जरिया बनाने के लिए किसान भी प्रयासरत रहते हैं. इसमें संतरे की खेती काफी अहम है, लेकिन ठंडा इलाका और समतल भूमि की जरूरत के चलते छिंदवाड़ा का किसान संतरे का उत्पादन नहीं कर पा रहा था. भारत सरकार की टीएमएसडी (Technical Machine Seed Development) योजना के तहत कृषि अनुसंधान केंद्र में करीब 3 एकड़ में इसका सफल परीक्षण किया गया है. जिसमें संतरे की फसल भी खूब आ रही है और क्वालिटी भी दूसरों की तरह ही है.

Agricultural Research Center Chhindwara
कृषि अनुसंधान केंद्र छिंदवाड़ा

महाराष्ट्र : आसमान छू रहे संतरे के दाम, किसान बेहाल

बिचोलिये किसानों से करते हैं ठगी

कृषि वैज्ञानिक ने बताया कि अधिकतर लोग दलालों के माध्यम से पौधों की खरीद करते हैं, जो कश्मीर के जंगलों में होने वाले किसी पौधे का रूटस्टॉक इस्तेमाल करते हैं. जिसे लगाने के बाद संतरे की फसल में बीमारी हो जाती है. पौधों की उम्र अधिकतर 12 से 15 साल ही रहती है.

उद्यानिकी विभाग से मिलती है अनुदान राशि

संतरे की खेती करने वाले किसानों के लिए कृषि अनुसंधान केंद्र में शासकीय दर पर संतरे के पौधे उपलब्ध है. इसके लिए उद्यानिकी विभाग अलग-अलग योजनाओं में किसानों को सब्सिडी भी देता है. जिससे कि किसान कम लागत में अधिक मुनाफा कमा सकें.

छिंदवाड़ा। संतरा एक ऐसा फल है जिसकी खेती समान्यतः समतल भूमि और गर्म जलवायु में ही होती है. लेकिन अब संतरे खेती पठारी (Orange Farming) और ठंडे इलाकों में भी हो सकती है. छिंदवाड़ा कृषि अनुसंधान केंद्र (Agricultural Research Center Chhindwara) में कृषि वैज्ञानिकों (Agricultural Scientist) ने इसका सफल परीक्षण किया है. वैज्ञानिकों का कहना है कि इस परीक्षण से किसानों की समस्या का समाधान होगा, क्योंकि पहले संतरे सिर्फ समतल भूमि और गर्म जलवायु पैदा होते थे. इस परीक्षण के बाद किसान संतरों को पहाड़ी इलाके में उगाकर अच्छा मुनाफा कमा सकेंगे. पहाड़ों पर किस पद्धति से संतरे का उत्पादन किया जा सकता है इसको लेकर वरिष्ठ वैज्ञानिक विजय पराड़कर ने ETV Bharat से खास बातचीत की...

पहाड़ी और ठंडे इलाकों में भी हो सकेगी संतरे की खेती

23 हजार हेक्टेयर में होती है संतरे की खेती

वरिष्ठ वैज्ञानिक विजय बताते है कि छिंदवाड़ा के सौंसर और पांढुर्णा में करीब 23 हजार हेक्टेयर (57 हजार एकड़) जमीन में संतरे की खेती की जाती है. लोल ऐसा कहते कि समतल भूमि और गर्म इलाकों में ही अच्छे संतरे की पैदावार होती है. लेकिन छिंदवाड़ा के कृषि अनुसंधान केंद्र के वैज्ञानिकों की टीम ने पहाड़ी और ठंडे इलाकों में लगाने वाले संतरों की नई किस्म तैयार की है. वैज्ञानिकों का कहना है कि इस किस्म से पहाड़ी और ठंडे इलाकों में भी संतरे की खेती की जा सकेगी. इससे किसानों को अच्छा फायदा होगा.

Cultivation of oranges in hilly and cold areas
पहाड़ी और ठंडे इलाकों में हुई संतरे की खेती

रूट स्टॉक के लिए जंबूरी पौधों का होता है इस्तेमाल

कृषि वैज्ञानिक विजय ने बताया कि अधिकतर किसान भाई पौधे खरीद कर खेतों में लगा देते हैं, जो सफल नहीं हो पाते. अनुसंधान केंद्र में जेंबूरी और रंकूर पौधों को रूटस्टॉक के रूप में प्रयोग किया गया है. नागपुरी संतरे की कलम उसमें बडिंग की गई है. जिसके बाद एक सफल पौधा तैयार होता है, जो करीब 30 साल तक फल दे सकता है. किसान यदि इस पद्धति से खेती करते है तो उन्हें अच्छा लाभ होगा.

Workers preparing oranges to be sold in the market
संतरे को बाजार में बेचने के लिए तैयार करते कर्मचारी

MP में आम और संतरे से किसान होंगे मालामाल

किसी भी इलाके में कर सकते है संतरे की खेती

कृषि वैज्ञानिक विजय पराड़कर ने ईटीवी भारत से बातचीत में बताया कि महाराष्ट्र के विदर्भ इलाके से लगा सौंसर और पांढुर्णा में ज्यादा तापमान और समतल भूमि के कारण नागपुरी संतरे का उत्पादन होता है. दूसरे किसान भाईयों को भ्रांति थी कि इस इलाके में ही मीठे संतरे की पैदावार हो सकती है, लेकिन कृषि अनुसन्धान केंद्र में तैयार की गई संतरे के पौधों से किसान भाई छिंदवाड़ा जिले के किसी भी इलाके में संतरे की खेती कर सकते है.

Senior Agricultural Scientist Vijay Paradkar
वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक विजय पराड़कर

भारत सरकार की योजना के चलते किया प्रैक्टिकल

दरअसल खेती को मुनाफे का जरिया बनाने के लिए किसान भी प्रयासरत रहते हैं. इसमें संतरे की खेती काफी अहम है, लेकिन ठंडा इलाका और समतल भूमि की जरूरत के चलते छिंदवाड़ा का किसान संतरे का उत्पादन नहीं कर पा रहा था. भारत सरकार की टीएमएसडी (Technical Machine Seed Development) योजना के तहत कृषि अनुसंधान केंद्र में करीब 3 एकड़ में इसका सफल परीक्षण किया गया है. जिसमें संतरे की फसल भी खूब आ रही है और क्वालिटी भी दूसरों की तरह ही है.

Agricultural Research Center Chhindwara
कृषि अनुसंधान केंद्र छिंदवाड़ा

महाराष्ट्र : आसमान छू रहे संतरे के दाम, किसान बेहाल

बिचोलिये किसानों से करते हैं ठगी

कृषि वैज्ञानिक ने बताया कि अधिकतर लोग दलालों के माध्यम से पौधों की खरीद करते हैं, जो कश्मीर के जंगलों में होने वाले किसी पौधे का रूटस्टॉक इस्तेमाल करते हैं. जिसे लगाने के बाद संतरे की फसल में बीमारी हो जाती है. पौधों की उम्र अधिकतर 12 से 15 साल ही रहती है.

उद्यानिकी विभाग से मिलती है अनुदान राशि

संतरे की खेती करने वाले किसानों के लिए कृषि अनुसंधान केंद्र में शासकीय दर पर संतरे के पौधे उपलब्ध है. इसके लिए उद्यानिकी विभाग अलग-अलग योजनाओं में किसानों को सब्सिडी भी देता है. जिससे कि किसान कम लागत में अधिक मुनाफा कमा सकें.

Last Updated : Sep 8, 2021, 11:08 PM IST
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