छिंदवाड़ा। खुद की आंखें गंवाने के बाद भी जिले के कमलेश साहू दिव्यांग बेटियों के जीवन में रोशनी बिखेरने का काम कर रहे हैं. अपनी जिंदादिली से कमलेश साहू ने सबित कर दिखाया है कि अगर आपमें जिंदगी जीने और कुछ कर दिखाने का हौसला हो, तो शारीरिक कमियां बाधा नहीं बन सकती हैं. कमलेश साहू 11वीं और 12वीं में पढ़ने वाली गरीब दिव्यांग लड़कियों के लिए निःशुल्क हॉस्टल चला रहे हैं, जिसमें छात्राओं को शिक्षा के साथ ही संगीत की भी ट्रेनिंग दी जा रही है.
जनसहयोग से चलता है हॉस्टल
बता दें कि दिव्यांग लड़कियों के लिए सरकार दसवीं तक फ्री में रहने और खाने की मदद करती है, लेकिन दसवीं के बाद सरकार कोई मदद नहीं करती. जब कमलेश को इस बाता का पता चला, तो उन्होंने गरीब बेटियों के भविष्य को संवारने का जिम्मा उठाया. एक सड़क हादसे में कमलेश की आंखों की रोशनी चली गई, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी. पहले तो वे किराए के मकान में हॉस्टल संचालित करते थे, लेकिन अब खुद के घर की छत के ऊपर हॉस्टल बनाकर उसमें 20 लड़कियों को पढ़ा रहे हैं. बिल्डिंग हालांकि उन्होंने खुद के खर्च से बनवाई है, लेकिन बेटियों के लिए लगने वाले दूसरे खर्च जनसहयोग से चलाते हैं.
स्कूल के अलावा घर में भी है शिक्षकों की व्यवस्था
हॉस्टल में रहने वाली सभी लड़कियां स्कूल में तो पढ़ाई करती ही हैं, लेकिन कमलेश साहू ने छात्राओं के लिए घर में भी पढ़ने के लिए 2 शिक्षक और एक संगीत शिक्षक अलग से इस हॉस्टल में व्यवस्था कर रखी है. कमलेश भी बच्चियों को संगीत सिखाते है. उनका कहना है कि दिव्यांग गरीब लड़कियों के पढ़ाने की व्यवस्था सामाजिक न्याय विभाग करता है, लेकिन उसके बाद पढ़ने की इच्छुक बेटियों को घर में बैठने के लिए मजबूर होना पड़ता है. अगर दसवीं के बाद दिव्यांग बेटियों को पढ़ना है, तो सरकार कोई मदद नहीं करती. इसके लिए उन्होंने दिव्यांगों के लिए फ्री में हॉस्टल शुरू किया है.
भले ही सरकार गरीब दिव्यांगों की मदद दसवीं कक्षा के बाद ना करती हो, लेकिन खुद दिव्यांगता के दौर से गुजर रहे शिक्षक कमलेश साहू ने जो कदम उठाया है, उसे देखकर कहा जा सकता है कि अगर जज्बा हो तो कोई काम नामुमकिन नहीं.