छिंदवाड़ा। जिले के पांढुर्णा तहसील में 31 अगस्त को गोटमार मेले का आयोजन किया जाएगा. यहां परंपरा के नाम पर हर साल सैकड़ों लोगों का खून बहाया जाता है. सबसे बड़ी बात ये है कि इस पूरे कार्यक्रम का आयोजन खुद प्रशासन कराता है. इस बार खून-खराबा कम हो, इसके लिए प्रशासन ने गोटमार समिति के साथ बैठक का आयोजन किया. बैठक में सुरक्षा को लेकर चर्चा की गई.
पत्थबाजी के इस खेल में प्रशासन भी नाकाम
गोटमार नाम से मशहूर ये खेल पत्थरों से खेला जाता है. पिछले कई सालों में पत्थरबाजी के इस खेल में 13 लोगों की जान जा चुकी है. बावजूद इसके पांढुर्णा के लोग इसे छोड़ने तैयार नहीं हैं. हालांकि बाद में प्रशासन ने इस खेल को बंद करने के लिए कई बार कोशिश की, लेकिन प्रशासन इसमें नाकाम साबित हुआ. तकरीबन 140 साल पहले शुरू हुई यह परंपरा आज भी नहीं बदली.
प्रेमी युगल की कहानी से शुरू हुई थी परंपरा
दरअसल हर साल पोला पर्व के एक दिन बाद जिले के पांढुर्णा और सावरगांव के बीच जाम नदी के किनारे एक मेला लगता है. जिसे लोग गोटमार मेले के नाम से जानते हैं. इस मेले में लोग एक-दूसरे को पत्थर मारते हैं और खून बहाते हैं.
बता दें कि गोटमार की यह परंपरा प्रेम कहानी से जुड़ी है. इसी प्रेम कहानी से आज गोटमार परंपरा बन गई है. कहा जाता है कि ये खेल दो गांव की दुश्मनी और प्रेम करने वाले युगल के याद में शुरू हुई थी.
गोटमार मेले की परंपरा निभाने के पीछे किवदन्तियां और कहानियां जुड़़ी हैं. किवदन्ती के अनुसार पांढुर्ना के युवक और सावरगांव की युवती के बीच प्रेम संबंध था. एक दिन प्रेमी युवक ने सांवरगांव पहुंचकर युवती को भगाकर पांढुर्ना लाना चाहा, जैसे ही दोनों जाम नदी के बीच पहुंचे, तो सांवरगांव के लोगों को खबर लगी. प्रेमी युगल को रोकने के लिए पत्थर बरसाए गए, जिसके कारण प्रेमी की मौत हो गई. इस कहानी को गोटमार मेले के आयोजन से जोड़ा जाता है.
हिंसा से भरा मेला लेता है लोगों की जान
हैरानी की बात तो ये है कि इस मेले में कई लोग इसी खेल के चक्कर में अपंग हो जाते हैं, लेकिन हिंसा से भरा मेला ऐसे ही चलता रहता है. इतना ही नहीं यहां हर व्यक्ति आस्था के नाम पर शराब पीता है, हालांकि कुछ लोग इसका विरोध भी करते हैं. वहीं प्रशासन ने यहां 500 से ज्यादा जवानों की तैनाती की है.