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परंपरा के नाम पर गोटमार मेले में फिर बरसेंगे पत्थर, पांढुर्णा में 31 अगस्त को होगा मेले का आयोजन

परंपरा के नाम पर छिंदवाड़ा जिले के पांढुर्णा तहसील में हर साल की तरह इस बार भी गोटमार मेले का आयोजन किया जाएगा. जिसमें लोग एक-दूसरे को पत्थर बरसाकर खून बहाएंगे.

गोटमार मेले में परंपरा के नाम पर खूनी खेल
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Published : Aug 20, 2019, 12:05 PM IST

छिंदवाड़ा। जिले के पांढुर्णा तहसील में 31 अगस्त को गोटमार मेले का आयोजन किया जाएगा. यहां परंपरा के नाम पर हर साल सैकड़ों लोगों का खून बहाया जाता है. सबसे बड़ी बात ये है कि इस पूरे कार्यक्रम का आयोजन खुद प्रशासन कराता है. इस बार खून-खराबा कम हो, इसके लिए प्रशासन ने गोटमार समिति के साथ बैठक का आयोजन किया. बैठक में सुरक्षा को लेकर चर्चा की गई.

गोटमार मेले में परंपरा के नाम पर खूनी खेल

पत्थबाजी के इस खेल में प्रशासन भी नाकाम
गोटमार नाम से मशहूर ये खेल पत्थरों से खेला जाता है. पिछले कई सालों में पत्थरबाजी के इस खेल में 13 लोगों की जान जा चुकी है. बावजूद इसके पांढुर्णा के लोग इसे छोड़ने तैयार नहीं हैं. हालांकि बाद में प्रशासन ने इस खेल को बंद करने के लिए कई बार कोशिश की, लेकिन प्रशासन इसमें नाकाम साबित हुआ. तकरीबन 140 साल पहले शुरू हुई यह परंपरा आज भी नहीं बदली.

प्रेमी युगल की कहानी से शुरू हुई थी परंपरा
दरअसल हर साल पोला पर्व के एक दिन बाद जिले के पांढुर्णा और सावरगांव के बीच जाम नदी के किनारे एक मेला लगता है. जिसे लोग गोटमार मेले के नाम से जानते हैं. इस मेले में लोग एक-दूसरे को पत्थर मारते हैं और खून बहाते हैं.

बता दें कि गोटमार की यह परंपरा प्रेम कहानी से जुड़ी है. इसी प्रेम कहानी से आज गोटमार परंपरा बन गई है. कहा जाता है कि ये खेल दो गांव की दुश्मनी और प्रेम करने वाले युगल के याद में शुरू हुई थी.

गोटमार मेले की परंपरा निभाने के पीछे किवदन्तियां और कहानियां जुड़़ी हैं. किवदन्ती के अनुसार पांढुर्ना के युवक और सावरगांव की युवती के बीच प्रेम संबंध था. एक दिन प्रेमी युवक ने सांवरगांव पहुंचकर युवती को भगाकर पांढुर्ना लाना चाहा, जैसे ही दोनों जाम नदी के बीच पहुंचे, तो सांवरगांव के लोगों को खबर लगी. प्रेमी युगल को रोकने के लिए पत्थर बरसाए गए, जिसके कारण प्रेमी की मौत हो गई. इस कहानी को गोटमार मेले के आयोजन से जोड़ा जाता है.

हिंसा से भरा मेला लेता है लोगों की जान
हैरानी की बात तो ये है कि इस मेले में कई लोग इसी खेल के चक्कर में अपंग हो जाते हैं, लेकिन हिंसा से भरा मेला ऐसे ही चलता रहता है. इतना ही नहीं यहां हर व्यक्ति आस्था के नाम पर शराब पीता है, हालांकि कुछ लोग इसका विरोध भी करते हैं. वहीं प्रशासन ने यहां 500 से ज्यादा जवानों की तैनाती की है.

छिंदवाड़ा। जिले के पांढुर्णा तहसील में 31 अगस्त को गोटमार मेले का आयोजन किया जाएगा. यहां परंपरा के नाम पर हर साल सैकड़ों लोगों का खून बहाया जाता है. सबसे बड़ी बात ये है कि इस पूरे कार्यक्रम का आयोजन खुद प्रशासन कराता है. इस बार खून-खराबा कम हो, इसके लिए प्रशासन ने गोटमार समिति के साथ बैठक का आयोजन किया. बैठक में सुरक्षा को लेकर चर्चा की गई.

गोटमार मेले में परंपरा के नाम पर खूनी खेल

पत्थबाजी के इस खेल में प्रशासन भी नाकाम
गोटमार नाम से मशहूर ये खेल पत्थरों से खेला जाता है. पिछले कई सालों में पत्थरबाजी के इस खेल में 13 लोगों की जान जा चुकी है. बावजूद इसके पांढुर्णा के लोग इसे छोड़ने तैयार नहीं हैं. हालांकि बाद में प्रशासन ने इस खेल को बंद करने के लिए कई बार कोशिश की, लेकिन प्रशासन इसमें नाकाम साबित हुआ. तकरीबन 140 साल पहले शुरू हुई यह परंपरा आज भी नहीं बदली.

प्रेमी युगल की कहानी से शुरू हुई थी परंपरा
दरअसल हर साल पोला पर्व के एक दिन बाद जिले के पांढुर्णा और सावरगांव के बीच जाम नदी के किनारे एक मेला लगता है. जिसे लोग गोटमार मेले के नाम से जानते हैं. इस मेले में लोग एक-दूसरे को पत्थर मारते हैं और खून बहाते हैं.

बता दें कि गोटमार की यह परंपरा प्रेम कहानी से जुड़ी है. इसी प्रेम कहानी से आज गोटमार परंपरा बन गई है. कहा जाता है कि ये खेल दो गांव की दुश्मनी और प्रेम करने वाले युगल के याद में शुरू हुई थी.

गोटमार मेले की परंपरा निभाने के पीछे किवदन्तियां और कहानियां जुड़़ी हैं. किवदन्ती के अनुसार पांढुर्ना के युवक और सावरगांव की युवती के बीच प्रेम संबंध था. एक दिन प्रेमी युवक ने सांवरगांव पहुंचकर युवती को भगाकर पांढुर्ना लाना चाहा, जैसे ही दोनों जाम नदी के बीच पहुंचे, तो सांवरगांव के लोगों को खबर लगी. प्रेमी युगल को रोकने के लिए पत्थर बरसाए गए, जिसके कारण प्रेमी की मौत हो गई. इस कहानी को गोटमार मेले के आयोजन से जोड़ा जाता है.

हिंसा से भरा मेला लेता है लोगों की जान
हैरानी की बात तो ये है कि इस मेले में कई लोग इसी खेल के चक्कर में अपंग हो जाते हैं, लेकिन हिंसा से भरा मेला ऐसे ही चलता रहता है. इतना ही नहीं यहां हर व्यक्ति आस्था के नाम पर शराब पीता है, हालांकि कुछ लोग इसका विरोध भी करते हैं. वहीं प्रशासन ने यहां 500 से ज्यादा जवानों की तैनाती की है.

Intro:छिंदवाड़ा। संसार में अपनी अलग छाप छोड़ने वाले गोटमार मेले में मध्यप्रदेश के छिंदवाड़ा जिले के पांढुर्णा तहसील में 31 अगस्त को जमकर पत्थर चलेंगे। यहाँ परम्परा के नाम पर खूब खून खराबा भी होगा। सबसे बड़ी बात की इस पूरे कार्यक्रम का आयोजन खुद प्रशासन करवाएगा। पिछले कई वर्षों में पत्थरबाजी के इस खेल में 13 लोगो की जान जा चुकी है। बावजूद इसके पांढुर्णा के लोग इस जुनून को छोड़ने तैयार नही है।प्रशासन ने इस खेल को बंद करने लाख जतन किये।लेकिन प्रशासन के सारे अरमानों पर साल दर साल पानी फिरता गया।पांढुर्णा के लोग इस खेल को गोटमार कहते है।Body:दरअसल हर वर्ष पोला पर्व के एक दिन बाद जिले के पांढुर्णा और सावरगांव के बीच जाम नदी के किनारे एक मेला लगता है।जिसे लोग गोटमार मेले के नाम से जानते हैं। इस मेले में लोग एक-दूसरे को पत्थर मारते हैं और खून बहाते हैं। प्रशासन ने इस खून खराबे को रोकने की खूब कोशिश की, लेकिन लगभग 140 वर्ष पहले की यह परंपरा आज भी नहीं बदली।

प्रेम कहानी बनी गोटमार का कारण

गोटमार की यह परंपरा एक प्रेम कहानी से जुड़ी है।इसी प्रेम कहानी से आज गोटमार परम्परा बन गई है।इस परंपरा से जुड़ी एक किवदंती है।कहते हैं कि यह दो गांव की दुश्मनी और प्रेम करने वाले युगल के याद में शुरू हुई।सावरगांव की लड़की थी और पांढुर्णा का लड़का,जो एक-दूसरे को प्रेम करते थे। एक दिन लड़का-लड़की को लेकर भाग रहा था और जाम नदी को पार करते समय लड़की पक्ष के लोगों ने देख लिया। फिर पत्थर मारकर रोकने की कोशिश की।यह बात लड़का पक्ष को पता चली तो वह उन्हें बचाने के लिए लड़की वालों पर पत्थर बाजी करने लगे। हालांकि प्रेमी प्रेमिका कौन थे आज तक किसी को पता नहीं।तबसे लेकर आज तक यह परम्परा चली आ रही है।Conclusion:अगर मेले की बात की जाए तो सैकड़ों लोग अपंग हो चुके हैं।13 लोगों की पत्थर लगने से मौत हो चुकी है। फिर भी बराबर हिंसा से भरा मेला नहीं रुका। यहां हर व्यक्ति आस्था के नाम पर शराब पीता है और इंसानियत भूल जाता है।इसमें धर्म जैसी कोई चीज दिखाई नहीं देती।कुछ लोग इसका विरोध भी करते हैं। प्रशासन भी चाहता है यह मेला बंद हो जाए। एक बार यहां पर पत्थरों की जगह गेंद को भी प्रशासन ने रखा लेकिन लोगों ने पत्थरों से ही खेल को खेला , इस बार भी इस खूनी खेल में किसी प्रकार की दुर्घटना ना हो इसलिए प्रशासन ने 5 सौ से ज्यादा जवानों की तैनाती की है ।
हालांकि इस खूनी खेल को बंद करने के लिए प्रशासन हर बार कदम उठाती है लेकिन परंपरा के नाम पर लोग इसे बंद करने की सोचते भी नहीं है इस बार फिर दुनिया की अनोखी परंपरा एक बार फिर निभाई जाएगी।

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