छिंदवाड़ा । खूनी खेल के नाम से पूरे विश्व मे प्रसिद्ध 'गोटमार मेला' पोला त्योहार के दूसरे दिन छिंदवाडा जिले के पांढुर्णा में खेला जाता है. सदियों से चली आ रही इस खूनी परंपरा में लोग एक दूसरे के खून के प्यासे हो जाते हैं, देखते ही देखते लोग एक दूसरे पर पत्थरों की बौछार कर और अपना खून बहाकर सदियों पुरानी परंपरा को निभा रहे हैं.
लेकिन इस साल कोरोना काल के चलते इस खूनी खेल पर कोरोना का साया साफ नजर आ रहा हैं. इस साल गोटमार मेले पर प्रशासन कोरोना का वास्ता देकर लोगों की जान बचाने का प्रयास करा रहा है. जिसके तहत इस खेल से कोरोना जैसी महामारी न फैल सके और लोगों की जान बचाई जा सके, इसलिए जाम नदी पर ये खूनी खेल नहीं खेला जाएगा और न ही लोग एक-दूसरे पर पत्थर बरसाएंगे.
गोटमार के दिन पूरे शहर में कर्फ्यू जैसे हालात बन सकते है, हालांकि कोरोना महामारी के कारण इस गोटमार मेले को लेकर आज पांढुर्णा के प्रशासनिक अधिकारियों ने पांढुर्णा और सावरगांव के लोगों की बैठक लेकर उनकी राय जानी हैं, दोनों पक्षों के मुताबिक पलाश रूपी झंडे को परंपरागत सुरेश कवाले के निवास से जाम नदी पर लाकर उसकी पूजा अर्चना कर, पांढुर्णा पक्ष के लोगों को सौंपा जाएगा. इस झंडे को मां चंडिका मंदिर में रखा जाएगा. इसे लेकर अधिकारियों ने दोनों पक्षों के लोगों से सहयोग मांगा गया हैं.
इसको लेकर 4 दिन तक पांढुर्णा क्षेत्र की सीमा सील करने की योजना बनाई जा रही हैं, जिससे 4 दिन तक तक कर्फ्यू बना रहेंगा, ताकी कोई भी इस मेले में हस्तक्षेप न कर सके. वहीं इस बार पोला उत्सव भी आयोजित नहीं किया जाएगा, अभी किसानों परंपरागत अपने बैलों कि पूजा अर्चना अपने खेत में ही करने की सलाह दी गई हैं.
बता दें, कि गोटमार की व्यवस्थाओं को लेकर हर साल 700 पुलिसकर्मी , एसडीओपी, अन्य तहसील के थानेदार, सब इंस्पेक्टर, एएसआई, प्रधान आरक्षक, आरक्षक, होमगार्ड, एसएएफ के जवान वन विभाग के कर्मचारियों की ड्यूटी लगाई जाती हैं. इस खूनी खेल में घायलों का इलाज कराने के लिए डॉक्टर की टीम, ड्रेसर और स्वास्थ कर्मी भी अपनी जिम्मेदारी निभाकर गोटमार में घायलों का इलाज करते है ताकी घायलों की जान बचाई जा सके.