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नई तकनीक अपनाकर किसानों ने पेश की मिसाल, ऐसे उगा रहे हैं फसल - छिंदवाड़ा नई फसल

पानी की कमी होने पर पठारी इलाकों में फसलें सूख जाती थी और अधिक बारिश होने पर जमीन दलदल में तब्दील हो जाती थी. जिसकी वजह से खेतों में फसल उगाना मुश्किल होता था. जिसके चलते छिंदवाड़ा के गाजनडोह के किसानों ने नई तकनीक अपनाते हुए एक बार में तीन से चार फसल लेना शुरू किया है. पेश है ये खास रिपोर्ट...

Crop grown in sacks
बोरी में उगाई फसल
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Published : Nov 22, 2020, 8:05 PM IST

छिंदवाड़ा। आमतौर पर अगर अधिक बारिश हो जाए तो फसल पानी के साथ बह जाती है और निचले इलाकों में दल-दल में तब्दील हो जाती है. इस कारण किसानों को फसल की सहीं उपज नहीं मिल पाती है. जिसके चलते छिंदवाड़ा के गाजनडोह के किसानों ने नई तकनीक अपनाते हुए एक बार में तीन से चार फसल लेना शुरू किया है. आमतौर पर घरों में किचन गार्डन की पद्धति को किसानों ने खेतों में अमलीजामा पहनाना शुरू किया है. दरअसल किसान पहले बोरी में मिट्टी वर्मी कंपोस्ट खाद भरते हैं और उसे खेतों में एक निश्चित दूरी पर रखते हैं. उसके बाद उसमें फसल लगाते हैं, जिसका उन्हें भरपूर फायदा मिल रहा है.

किसानों की फसल उगाने की नई तकनीक

बोरे में उगा रहे फसल, एक साथ मिल रही कई फसल

खेतों में आमतौर पर किसान एक समय में एक ही फसल ले सकता है, लेकिन बोरे पद्धति से किसान एक बार में तीन से चार फसल ले रहा है. किसान वीरन यादव ने बताया कि उन्होंने बोरे में पहले अरहर की खेती की उसके साथ ही उसमें बैंगन धनिया और लौकी की खेती भी एक साथ की है. इसका सबसे ज्यादा फायदा उन्हें मिल रहा है, क्योंकि कम लागत में ज्यादा उपज हो रही है.

New technology for growing crops
फसल उगाने की नई तकनीक

ये भी पढ़ें : आगर मालवा: सीएम शिवराज ने कामधेनु गौ अभ्यारण्य में किया गौ पूजन

खरपतवार और खेतों में जुताई की लागत से होती है बचत

किसान ने बताया कि खेतों में फसल लगाने के लिए सबसे पहले खेतों की जुताई करना होता है. उसके बाद खरपतवार उनके लिए एक बड़ी समस्या होती है. जिसमें अलग से खर्च करना होता है लेकिन बोरी में फसल उगाने से खरपतवार और जुताई का पैसा बच जाता है. जो सीधे-सीधे उन्हें लाभ पहुंचाता है.अधिकारियों ने बताया कि सबसे ज्यादा किसानों को बारिश के दिनों में तकलीफ होती है. कम पानी गिर जाए तो पठारी जमीन में फसल सूखती है. ज्यादा बारिश से जमीन दलदल में तब्दील होती है. जिससे फसल बर्बाद हो जाती है. इस पद्धति से राशिफल का खर्च बचता है बल्कि फसल की उपज की भी एक गारंटी होती है.

छिंदवाड़ा। आमतौर पर अगर अधिक बारिश हो जाए तो फसल पानी के साथ बह जाती है और निचले इलाकों में दल-दल में तब्दील हो जाती है. इस कारण किसानों को फसल की सहीं उपज नहीं मिल पाती है. जिसके चलते छिंदवाड़ा के गाजनडोह के किसानों ने नई तकनीक अपनाते हुए एक बार में तीन से चार फसल लेना शुरू किया है. आमतौर पर घरों में किचन गार्डन की पद्धति को किसानों ने खेतों में अमलीजामा पहनाना शुरू किया है. दरअसल किसान पहले बोरी में मिट्टी वर्मी कंपोस्ट खाद भरते हैं और उसे खेतों में एक निश्चित दूरी पर रखते हैं. उसके बाद उसमें फसल लगाते हैं, जिसका उन्हें भरपूर फायदा मिल रहा है.

किसानों की फसल उगाने की नई तकनीक

बोरे में उगा रहे फसल, एक साथ मिल रही कई फसल

खेतों में आमतौर पर किसान एक समय में एक ही फसल ले सकता है, लेकिन बोरे पद्धति से किसान एक बार में तीन से चार फसल ले रहा है. किसान वीरन यादव ने बताया कि उन्होंने बोरे में पहले अरहर की खेती की उसके साथ ही उसमें बैंगन धनिया और लौकी की खेती भी एक साथ की है. इसका सबसे ज्यादा फायदा उन्हें मिल रहा है, क्योंकि कम लागत में ज्यादा उपज हो रही है.

New technology for growing crops
फसल उगाने की नई तकनीक

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खरपतवार और खेतों में जुताई की लागत से होती है बचत

किसान ने बताया कि खेतों में फसल लगाने के लिए सबसे पहले खेतों की जुताई करना होता है. उसके बाद खरपतवार उनके लिए एक बड़ी समस्या होती है. जिसमें अलग से खर्च करना होता है लेकिन बोरी में फसल उगाने से खरपतवार और जुताई का पैसा बच जाता है. जो सीधे-सीधे उन्हें लाभ पहुंचाता है.अधिकारियों ने बताया कि सबसे ज्यादा किसानों को बारिश के दिनों में तकलीफ होती है. कम पानी गिर जाए तो पठारी जमीन में फसल सूखती है. ज्यादा बारिश से जमीन दलदल में तब्दील होती है. जिससे फसल बर्बाद हो जाती है. इस पद्धति से राशिफल का खर्च बचता है बल्कि फसल की उपज की भी एक गारंटी होती है.

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