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मक्के की फसल के सबसे बड़े दुश्मन की दस्तक, जानिए बचाने के उपाय

कृषि वैज्ञानिक ने ईटीवी भारत से खास बातचीत में मक्के की फसल में लगने वाले कीड़े से बचाव के बारे में बताया.

कृषि वैज्ञानिक ने ईटीवी भारत से की बातचीत
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Published : May 22, 2019, 10:22 AM IST

छिंदवाड़ा। देश में मक्का का सर्वाधिक उत्पादन करने वाले छिंदवाड़ा जिले के किसानों को इस बार खरीब के मौसम में परेशानी का सामना करना पड़ सकता है. फॉल आर्मीवर्म नाम का खतरनाक कीड़ा फसलों के लिए नुकसानदायक है. इस परेशानी से निजात पाने के उपाय कृषि वैज्ञानिक विजय पराड़कर ने ईटीवी भारत से खास बातचीत में बताया.

मध्यप्रदेश में सबसे ज्यादा मक्के की पैदावार छिंदवाड़ा जिले में होती है. छिंदवाड़ा स्थित आंचलिक कृषि अनुसंधान केंद्र के वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक विजय पराड़कर का कहना है कि गर्मी के सीजन में किसानों के खेतों में लगाई गई मक्के की फसल में फॉल आर्मीवर्म नाम के खतरनाक कीड़े का प्रकोप देखने को मिला है, जो फसल को पूरी तरह से नष्ट कर देता है. कृषि वैज्ञानिक ने बताया कि इससे बचने के लिए सावधानी ही सबसे बड़ा उपाय है.

  • बोनी के पहले जमीन की गहरी जोताई करें, जिससे कीट बाहर आ जाए और परभक्षी कीट उसको नष्ट कर सके.
  • किसान अंतरवर्तीय फसल लें, जिसमें से खासतौर पर दलहन की जगह पर ही मक्के की फसल लगाएं.
  • बीज को अच्छी तरीके से उपचारित करके जमीन पर डालें, जिससे की स्पर्श से कीट नष्ट हो सके.
  • मक्के के साथ जुड़ाव फसल जैसे मक्के के साथ अरहर,मूंग, उड़द फसलों को लगाएं.
    कृषि वैज्ञानिक ने ईटीवी भारत से की बातचीत

कीट लगने के बाद बचाव के उपाय
कृषि वैज्ञानिक के मुताबिक अगर मक्के की फसल में इस कीट का प्रकोप आ जाता है तो सबसे पहले क्लोरोपेरिफॉस,ट्राईजोफॉस कीटनाशक का छिड़काव कर सकते हैं. अगर इससे भी कन्ट्रोल नहीं होता है तो कृषि विभाग से सलाह लेना चाहिए.


फॉल आर्मीवर्म की कैसे करें पहचान
फॉल आर्मीवर्म की पहचान को लेकर उन्होंने बताया कि जब फसल 4 पत्तियों की हो जाए और पौधे लहलहाने की बजाय मुड़े और खुरदुरे से दिखें या फिर पत्तियों में हरे रंग की जगह बीच-बीच में ऐसे दाग दिखे. जिससे लगे कि पत्तियों में घर्षण हुआ है, तो ये इस खतरनाक कीट के लक्षण होते हैं. बता दें पूरे देश में करीब 14 फीसदी मक्के की फसल लगाई जाती है जिसमें से सबसे ज्यादा रकबा और उत्पादन छिंदवाड़ा जिले का रहता है, इसीलिए छिंदवाड़ा जिले को कॉर्न सिटी के नाम से भी जाना जाता है.

छिंदवाड़ा। देश में मक्का का सर्वाधिक उत्पादन करने वाले छिंदवाड़ा जिले के किसानों को इस बार खरीब के मौसम में परेशानी का सामना करना पड़ सकता है. फॉल आर्मीवर्म नाम का खतरनाक कीड़ा फसलों के लिए नुकसानदायक है. इस परेशानी से निजात पाने के उपाय कृषि वैज्ञानिक विजय पराड़कर ने ईटीवी भारत से खास बातचीत में बताया.

मध्यप्रदेश में सबसे ज्यादा मक्के की पैदावार छिंदवाड़ा जिले में होती है. छिंदवाड़ा स्थित आंचलिक कृषि अनुसंधान केंद्र के वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक विजय पराड़कर का कहना है कि गर्मी के सीजन में किसानों के खेतों में लगाई गई मक्के की फसल में फॉल आर्मीवर्म नाम के खतरनाक कीड़े का प्रकोप देखने को मिला है, जो फसल को पूरी तरह से नष्ट कर देता है. कृषि वैज्ञानिक ने बताया कि इससे बचने के लिए सावधानी ही सबसे बड़ा उपाय है.

  • बोनी के पहले जमीन की गहरी जोताई करें, जिससे कीट बाहर आ जाए और परभक्षी कीट उसको नष्ट कर सके.
  • किसान अंतरवर्तीय फसल लें, जिसमें से खासतौर पर दलहन की जगह पर ही मक्के की फसल लगाएं.
  • बीज को अच्छी तरीके से उपचारित करके जमीन पर डालें, जिससे की स्पर्श से कीट नष्ट हो सके.
  • मक्के के साथ जुड़ाव फसल जैसे मक्के के साथ अरहर,मूंग, उड़द फसलों को लगाएं.
    कृषि वैज्ञानिक ने ईटीवी भारत से की बातचीत

कीट लगने के बाद बचाव के उपाय
कृषि वैज्ञानिक के मुताबिक अगर मक्के की फसल में इस कीट का प्रकोप आ जाता है तो सबसे पहले क्लोरोपेरिफॉस,ट्राईजोफॉस कीटनाशक का छिड़काव कर सकते हैं. अगर इससे भी कन्ट्रोल नहीं होता है तो कृषि विभाग से सलाह लेना चाहिए.


फॉल आर्मीवर्म की कैसे करें पहचान
फॉल आर्मीवर्म की पहचान को लेकर उन्होंने बताया कि जब फसल 4 पत्तियों की हो जाए और पौधे लहलहाने की बजाय मुड़े और खुरदुरे से दिखें या फिर पत्तियों में हरे रंग की जगह बीच-बीच में ऐसे दाग दिखे. जिससे लगे कि पत्तियों में घर्षण हुआ है, तो ये इस खतरनाक कीट के लक्षण होते हैं. बता दें पूरे देश में करीब 14 फीसदी मक्के की फसल लगाई जाती है जिसमें से सबसे ज्यादा रकबा और उत्पादन छिंदवाड़ा जिले का रहता है, इसीलिए छिंदवाड़ा जिले को कॉर्न सिटी के नाम से भी जाना जाता है.

Intro:exclusive

छिंदवाड़ा । देश में मक्का का सर्वाधिक उत्पादन करने वाले छिंदवाड़ा जिले के किसानों को इस बार खरीब के मौसम में एक खतरनाक दुश्मन से सामना करना पड़ सकता है। दरअसल मध्यप्रदेश में सर्वाधिक मक्के की पैदावार छिंदवाड़ा जिले में होती है, गर्मी के सीजन में लगाई गई मक्के की फसल में खोज के दौरान कृषि वैज्ञानिकों ने पाया है कि फॉल आर्मीवर्म नाम के खतरनाक कीड़े का प्रकोप छिन्दवाड़ा में भी बढ़ रहा है जो किसानों के लिए काफी नुकसानदायक साबित हो सकता है। इस कीट से मक्के की फसल को बचाने के उपाय और सावधानी बरतने के लिए कृषि वैज्ञानिक से ईटीवी भारत ने की खास बातचीत।


Body:पूरे देश में करीब 14 फीसदी मक्के की फसल लगाई जाती है जिसमें से सबसे ज्यादा रकबा और उत्पादन छिन्दवाड़ा जिले का रहता है इसलिए छिन्दवाड़ा को कॉर्न सिटी के नाम से भी जाना जाता है। लेकिन इस बार एक खतरनाक कीड़े के आने से किसानों को काफी नुकसान हो सकता है। जवाहरलाल नेहरू कृषि विवि जबलपुर के छिन्दवाड़ा स्थित आँचलिक कृषि अनुसंधान केंद्र के वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक विजय पराड़कर का कहना है कि गर्मी के सीजन में किसानों के खेतों में लगाई गई मक्के की फसल में फॉल आर्मीवर्म नाम के खतरनाक कीड़े का प्रकोप देखने को मिला है जो अगर फसल में लग जाता है तो फसल पूरी तरह से नष्ट कर देता है।

सावधानी ही सबसे बड़ा उपचार है।

कृषि वैज्ञानिक का कहना है कि अगर इस ख़तरनाक कीट से फसल का बचाना है तो सबसे सावधानी बरतना चाहिए।
1. बोनी के पहले जमीन की गहरी जुताई करें, जिससे कीट बाहर आ जाए और परभक्षी कीट उसको नष्ट कर सके।

2. किसान भाई अंतरवर्तीय फसल लें जिसमें से खासतौर पर दलहन की जगह पर ही मक्के की फसल लगाएं

3. बीज को अच्छी तरीके से उपचारित करके जमीन पर डालें जिसके की स्पर्श से कीट नष्ट हो सके।
4. मक्के के साथ जुड़ाव फसलें जैसे कि मक्के के साथ अरहर,मूँग, उडद आदि फसलों को लगाएं।

कीट लगने के बाद बचाव के उपाय।
कृषि वैज्ञानिक ने बताया अगर मक्के की फसल में इस कीट का प्रकोप आ जाता है तो सबसे पहले क्लोरोपेरिफॉस,ट्राईजोफॉस कीटनाशक का छिड़काव कर सकते हैं अगर इससे भी कन्ट्रोल नहीं होता है तो कृषि विभाग से सलाह लेना चाहिए।


Conclusion:मक्की की फसल का उभरता दुश्मन फॉल आर्मीवर्म की पहचान करने के लिए कृषि वैज्ञानिक का कहना है कि जब फसल 4 पत्तियों की हो जाए और पौधे लहलहाने की बजाए मुड़े और खुरदुरे से दिखें या फिर पत्तियों में हरे रंग की जगह बीच बीच में ऐसे दाग दिखे जिससे लगे कि पत्तियों में घर्षण हुआ है तो ये इस खतरनाक कीट के लक्षण होते हैं। फ़िलहाल कृषि अनुसंधान केंद्र और कृषि विभाग इससे निपटने के लिए जागरूकता कार्यक्रम चला रहा है जिससे कि किसानों को सावधान होने का मौका मिल जाए।

इंटरविव-डॉ विजय पराड़कर,कृषि वैज्ञानिक
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