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प्रवासी मजदूरों की मदद के लिए गली-गली घूम रहीं तीन बच्चियां, जुटा रहीं चंदा - three friends are raising donations

टीवी में मजदूरों की परेशानी देख छतरपुर की तीन नाबालिग सहेलियां अपने नन्हें कदमों से उस धरती नापने निकल पड़ीं, जहां बेबस और लाचार मजबूर भूख-प्यास से तड़प रहे थे, प्रवासी मजदूरों की भूख-प्यास मिटाने के लिए चंदा मांगकर पैसे जुटा रही हैं.

Collecting funds
जुटा रहीं चंदा
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Published : May 23, 2020, 3:49 PM IST

Updated : May 23, 2020, 9:02 PM IST

छतरपुर। कुछ करने के लिए उम्र नहीं हौसला होना चाहिए, बड़े कदम नहीं बड़ा मन होना चाहिए, जब कुछ कर गुजरने का मन होता है तो इच्छाशक्ति भी आ ही जाती है, अपने लिए तो सभी जीते हैं, लेकिन जो दूसरों के लिए जीते हैं, सच में वही जिंदा होते हैं, उसमें ही सच्ची इंसानियत होती है, लेकिन बच्चे तो हमेशा ही मन के सच्चे होते हैं, इसीलिए तो कहते हैं कि बच्चे भगवान का रूप होते हैं. पर हां, लॉकडाउन में प्रवासी मजदूरों के लिए तीन नाबालिग सहेलियां मसीहा साबित हो रही हैं, जो मजदूरों के लिए रोटी-पानी का इंतजाम करने के लिए चंदा तक मांग रही हैं.

जुटा रहीं चंदा

छतरपुर शहर में संकटमोचन मंदिर के पास रहने वालीं तीन नाबालिग सहेलियां सुर्खियों में हैं, 6वी में पढ़ने वाली पल मिश्रा ने बताया कि उसकी उम्र 10 साल है और तीनों सहेलियां एक ही स्कूल में पढ़ती हैं. सभी की उम्र भी लगभग एक समान है. उन्होंने टीवी पर देखा कि किस तरह प्रवासी मजदूर परेशानियों का सामना कर रहे हैं. मजदूरों को आने-जाने के साथ-साथ खाने की परेशानी से जूझना पड़ रहा है. यही वजह है कि इन बच्चों ने तय किया कि वे भी प्रवासी मजदूरों के लिए कुछ करेंगी. परिवार के सहयोग से उन्होंने एक छोटा सा बॉक्स तैयार कर उस पर एक पर्ची लगाई, जिसमें लिखा है कि देश में कोरोना महामारी चल रही है और वे मजदूरों की मदद करना चाहती हैं. जो भी पैसे मिलेंगे, उससे वे मजदूरों के लिए राशन खरीदेंगी.

महज 10 साल की उम्र की ये तीनों सहेलियां तेज धूप में गलियों में घूम-घूम कर चंदा इकट्ठा कर रही हैं, पल मिश्रा और अंशिका ने बताया कि वे अभी तक 300 रुपए ही जुटा पाई हैं, उन्हें उम्मीद है कि लोग दान करेंगे, जिससे ज्यादा राशन खरीदकर वो मजदूरों को बांट पाएंगी. अंशिका और भूमि के जोशी मोहल्ले में रहने वाले कन्हैया लाल विश्वकर्मा बताते हैं कि 3 बच्चियां उनके पास एक बॉक्स लेकर आई थीं, जिसमें उन्होंने दान दिया था. सुनील खटीक ने बताया कि ये बच्चियां लगातार मजदूरों के राशन के लिए चंदा मांग रही हैं.

भले ही इन बच्चियों की मदद छोटी है, पर कोरोना काल में ये मदद भी डूबते को तिनके जैसा है, जो उसे पानी के गर्त में डूबने से बचा लेता है, इन तीनों सहेलियों ने साबित कर दिया है कि प्रार्थना करने वाले हाथों से अच्छे मदद के लिए उठने वाले हाथ होते हैं.

छतरपुर। कुछ करने के लिए उम्र नहीं हौसला होना चाहिए, बड़े कदम नहीं बड़ा मन होना चाहिए, जब कुछ कर गुजरने का मन होता है तो इच्छाशक्ति भी आ ही जाती है, अपने लिए तो सभी जीते हैं, लेकिन जो दूसरों के लिए जीते हैं, सच में वही जिंदा होते हैं, उसमें ही सच्ची इंसानियत होती है, लेकिन बच्चे तो हमेशा ही मन के सच्चे होते हैं, इसीलिए तो कहते हैं कि बच्चे भगवान का रूप होते हैं. पर हां, लॉकडाउन में प्रवासी मजदूरों के लिए तीन नाबालिग सहेलियां मसीहा साबित हो रही हैं, जो मजदूरों के लिए रोटी-पानी का इंतजाम करने के लिए चंदा तक मांग रही हैं.

जुटा रहीं चंदा

छतरपुर शहर में संकटमोचन मंदिर के पास रहने वालीं तीन नाबालिग सहेलियां सुर्खियों में हैं, 6वी में पढ़ने वाली पल मिश्रा ने बताया कि उसकी उम्र 10 साल है और तीनों सहेलियां एक ही स्कूल में पढ़ती हैं. सभी की उम्र भी लगभग एक समान है. उन्होंने टीवी पर देखा कि किस तरह प्रवासी मजदूर परेशानियों का सामना कर रहे हैं. मजदूरों को आने-जाने के साथ-साथ खाने की परेशानी से जूझना पड़ रहा है. यही वजह है कि इन बच्चों ने तय किया कि वे भी प्रवासी मजदूरों के लिए कुछ करेंगी. परिवार के सहयोग से उन्होंने एक छोटा सा बॉक्स तैयार कर उस पर एक पर्ची लगाई, जिसमें लिखा है कि देश में कोरोना महामारी चल रही है और वे मजदूरों की मदद करना चाहती हैं. जो भी पैसे मिलेंगे, उससे वे मजदूरों के लिए राशन खरीदेंगी.

महज 10 साल की उम्र की ये तीनों सहेलियां तेज धूप में गलियों में घूम-घूम कर चंदा इकट्ठा कर रही हैं, पल मिश्रा और अंशिका ने बताया कि वे अभी तक 300 रुपए ही जुटा पाई हैं, उन्हें उम्मीद है कि लोग दान करेंगे, जिससे ज्यादा राशन खरीदकर वो मजदूरों को बांट पाएंगी. अंशिका और भूमि के जोशी मोहल्ले में रहने वाले कन्हैया लाल विश्वकर्मा बताते हैं कि 3 बच्चियां उनके पास एक बॉक्स लेकर आई थीं, जिसमें उन्होंने दान दिया था. सुनील खटीक ने बताया कि ये बच्चियां लगातार मजदूरों के राशन के लिए चंदा मांग रही हैं.

भले ही इन बच्चियों की मदद छोटी है, पर कोरोना काल में ये मदद भी डूबते को तिनके जैसा है, जो उसे पानी के गर्त में डूबने से बचा लेता है, इन तीनों सहेलियों ने साबित कर दिया है कि प्रार्थना करने वाले हाथों से अच्छे मदद के लिए उठने वाले हाथ होते हैं.

Last Updated : May 23, 2020, 9:02 PM IST
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