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दिव्यांगता को हराकर, बुलंद हौसले लेकर अपनी किस्मत लिख रही 'साहिबा' - कुर्रह गांव

छतरपुर जिले के छोटे से गांव कुर्रह में रहने वाली 24 साल की साहिबा दिव्यांग लोगों के लिए एक मिसाल बनकर उभरी है. 24 साल की साहिबा दिव्यांग है बचपन से ही उनके हाथ एवं पैर ठीक से विकसित नहीं हो पाए जिस वजह से उनकी लंबाई महज 3 फुट की ही रह गई, लेकिन परिवार के लोगों एवं साहिबा ने कभी हार नहीं मानी और हालातों को चुनौती मानते हुए एक मुकाम हासिल करने की जिद कर ली.

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बुलंद हौसले लेकर अपनी किस्मत लिख रही 'साहिबा'
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Published : Dec 9, 2019, 4:12 PM IST

छतरपुर। कहते हैं अगर हौसले बुलंद हों और मन में कुछ कर दिखाने की चाहत हो तो रास्ते में पड़े पत्थर भी सीढ़ी बनकर रास्ता दिखाने लगते हैं. कुछ ऐसी ही कहानी है छतरपुर जिले के कुर्राह गांव में रहने वाली साहिबा खान की. जो अपनी किस्मत अपने बुलंद हौसलो से लिख रही है.

बुलंद हौसले लेकर अपनी किस्मत लिख रही 'साहिबा'

बचपन से ही साहिब दिव्यांग है और उनकी लंबाई महज तीन फुट की है. लेकिन हौसले इतने बड़े हैं उनके सामने उनकी दिव्यांगता ने घुटने टेक दिए. साहिबा के हाथ एवं पैर ठीक से काम नहीं करते हैं. बावजूद इसके उन्होंने अपने पढ़ने लिखने की ललक को कम नहीं होने दिया. साहिबा ने हर चुनौतियों से लड़ते हुए अपनी पढ़ाई जारी रखी.

साहिबा D.Ed कर चुकी है और वो आंगे चलकर शिक्षक बनना चाहती हैं. ताकि आगे जाकर अपने जैसे बच्चों को पढ़ा कर एक बेहतर इंसान बना सकें. साहिबा के परिवार ने भी हमेशा उनका साथ दिया और उन्हें प्रोत्साहित किया. उनका भतीजा उनकी पढ़ाई में न सिर्फ सहयोग करता है बल्कि कॉलेज ले जाने और लाने का काम भी करते हैं.

साहिबा उन सभी लोगों को लिए मिशाल है जो दिव्यांगता को अपनी कमजोरी मानकर लाचार होकर बैठ जाते हैं. ऐसे सभी लोगों को साहिबा से सीख लेनी चाहिए कि अगर किसी काम को करने की ठान लिया जाए तो उसे पूरा करने से आपको कोई नहीं रोक सकता. साहिबा की लड़ाई आज भी जारी है. उन्हें इंतजार है तो उस दिन जब वे अपने शिक्षक बनने के सपने को पूरा करेगी.

छतरपुर। कहते हैं अगर हौसले बुलंद हों और मन में कुछ कर दिखाने की चाहत हो तो रास्ते में पड़े पत्थर भी सीढ़ी बनकर रास्ता दिखाने लगते हैं. कुछ ऐसी ही कहानी है छतरपुर जिले के कुर्राह गांव में रहने वाली साहिबा खान की. जो अपनी किस्मत अपने बुलंद हौसलो से लिख रही है.

बुलंद हौसले लेकर अपनी किस्मत लिख रही 'साहिबा'

बचपन से ही साहिब दिव्यांग है और उनकी लंबाई महज तीन फुट की है. लेकिन हौसले इतने बड़े हैं उनके सामने उनकी दिव्यांगता ने घुटने टेक दिए. साहिबा के हाथ एवं पैर ठीक से काम नहीं करते हैं. बावजूद इसके उन्होंने अपने पढ़ने लिखने की ललक को कम नहीं होने दिया. साहिबा ने हर चुनौतियों से लड़ते हुए अपनी पढ़ाई जारी रखी.

साहिबा D.Ed कर चुकी है और वो आंगे चलकर शिक्षक बनना चाहती हैं. ताकि आगे जाकर अपने जैसे बच्चों को पढ़ा कर एक बेहतर इंसान बना सकें. साहिबा के परिवार ने भी हमेशा उनका साथ दिया और उन्हें प्रोत्साहित किया. उनका भतीजा उनकी पढ़ाई में न सिर्फ सहयोग करता है बल्कि कॉलेज ले जाने और लाने का काम भी करते हैं.

साहिबा उन सभी लोगों को लिए मिशाल है जो दिव्यांगता को अपनी कमजोरी मानकर लाचार होकर बैठ जाते हैं. ऐसे सभी लोगों को साहिबा से सीख लेनी चाहिए कि अगर किसी काम को करने की ठान लिया जाए तो उसे पूरा करने से आपको कोई नहीं रोक सकता. साहिबा की लड़ाई आज भी जारी है. उन्हें इंतजार है तो उस दिन जब वे अपने शिक्षक बनने के सपने को पूरा करेगी.

Intro:कहते हैं लोग अपनी किस्मत अपने हाथों से लिखते हैं लेकिन छतरपुर जिले के एक छोटे से गांव में रहने वाली 24 वर्ष की साहिबा ने अपनी किस्मत अपने हौसले से लिखी है! साहिब दिव्यांग है और उनकी लंबाई महज 3 फुट की है लेकिन हौसले इतने बड़े हैं उनके सामने उनकी दिव्यांग ताने घुटने टेक दिए!


Body:छतरपुर जिले के छोटे से गांव कुर्रह में रहने वाली 24 साल की साहिबा अपने गांव एवं आसपास के गांव में रहने अपने जैसे तमाम लोगों के लिए एक मशाल बनकर उभरी है 24 साल की साहिबा दिव्यांग है बचपन से ही उनके हाथ एवं पैर ठीक से विकसित नहीं हो पाए जिस वजह से उनकी लंबाई महज 3 फुट की ही रह गई लेकिन परिवार के लोगों एवं साहिबा ने कभी हार नहीं मानी और हालातों को चुनौती मानते हुए एक मुकाम हासिल करने की जिद कर ली!

साहिबा के हाथ एवं पैर ठीक से काम नहीं करते हैं बावजूद इसके उन्होंने 12वी एवं 10वी न सिर्फ अच्छे अंको से पास की है बल्कि कई विषयों में महारत हासिल करते हुए अच्छे अंक भी प्राप्त किए हैं और अब साहिबा D.Ed कर रही हैं साहिबा का सपना है कि वह पढ़ लिखकर एक अच्छी शिक्षक बनना चाहती है ताकि आगे जाकर अपने जैसे बच्चों को पढ़ा कर एक बेहतर इंसान बना सकें!

साहिबा जिस गांव में रहती है उस गांव की कुल आबादी लगभग 55 सौ के आसपास है और यह एक मुश्लिम बाहुल्य गांव है जिसमे लगभग 85 प्रतिसत मुस्लिम परिवार रहते है!

साहिबा बताती है कि उनके परिवार के लोग उन्हें काफी प्रोत्साहित करते है उनका भतीजा उनकी पढ़ाई में न सिर्फ सहयोग करता है बल्कि उन्हें बस अड्डे तक छोड़ने एवं ले जाने का काम भी करता है!

साहिबा बताती है कि उन्हें कभी भी उनके सहपाठियों ने परेसान नही किया लेकिन बस कंडेक्टर जरूर कभी कभी असहज महसूस करा देते है साहिबा कहां मध्यप्रदेश शासन एवं केंद्र शासन से भी अनुरोध है कि बसों में दिव्यांग लोगों के लिए उचित व्यवस्था की जाए या उनके चढ़ने उतरने के लिए कोई रैक बनाई जाए जिससे दिव्यांग भाई-बहन आसानी से अपना सफर कर सके और उन्हें किसी प्रकार की कोई परेशानी ना हो!

बाइट_साहिबा खान

साहिबा खान का भतीजा जमीर खान का कहना है कि उनकी बुआ बेहद संघर्ष करते हुए अपनी पढ़ाई पूरी कर करनी है हम सभी लोग उनका बराबर सहयोग करते हैं उनकी बुआ आगे जाकर शिक्षक बनना चाहती हैं और अगर ऐसा होता है तो निश्चित ही उन्हें बेहद खुशी होगी!

बाइट_भतीजा जमीर खान



Conclusion: साहिबा महज 3 फुट की है और अपने तमाम काम ब खुद बिना किसी सहयोग के कर लेती हैं दसवीं से लेकर 12वीं और उसके बाद शिक्षक बनने की पढ़ाई भी अपने हौसले के दम पर ही शुरू कर दी है और उन्हें उम्मीद है कि जल्द ही वह एक शिक्षक बनकर आने वाले समय मे अपने जैसे बच्चों का भविष्य सावरेंगी!
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