छतरपुर। कहते हैं अगर हौसले बुलंद हों और मन में कुछ कर दिखाने की चाहत हो तो रास्ते में पड़े पत्थर भी सीढ़ी बनकर रास्ता दिखाने लगते हैं. कुछ ऐसी ही कहानी है छतरपुर जिले के कुर्राह गांव में रहने वाली साहिबा खान की. जो अपनी किस्मत अपने बुलंद हौसलो से लिख रही है.
बचपन से ही साहिब दिव्यांग है और उनकी लंबाई महज तीन फुट की है. लेकिन हौसले इतने बड़े हैं उनके सामने उनकी दिव्यांगता ने घुटने टेक दिए. साहिबा के हाथ एवं पैर ठीक से काम नहीं करते हैं. बावजूद इसके उन्होंने अपने पढ़ने लिखने की ललक को कम नहीं होने दिया. साहिबा ने हर चुनौतियों से लड़ते हुए अपनी पढ़ाई जारी रखी.
साहिबा D.Ed कर चुकी है और वो आंगे चलकर शिक्षक बनना चाहती हैं. ताकि आगे जाकर अपने जैसे बच्चों को पढ़ा कर एक बेहतर इंसान बना सकें. साहिबा के परिवार ने भी हमेशा उनका साथ दिया और उन्हें प्रोत्साहित किया. उनका भतीजा उनकी पढ़ाई में न सिर्फ सहयोग करता है बल्कि कॉलेज ले जाने और लाने का काम भी करते हैं.
साहिबा उन सभी लोगों को लिए मिशाल है जो दिव्यांगता को अपनी कमजोरी मानकर लाचार होकर बैठ जाते हैं. ऐसे सभी लोगों को साहिबा से सीख लेनी चाहिए कि अगर किसी काम को करने की ठान लिया जाए तो उसे पूरा करने से आपको कोई नहीं रोक सकता. साहिबा की लड़ाई आज भी जारी है. उन्हें इंतजार है तो उस दिन जब वे अपने शिक्षक बनने के सपने को पूरा करेगी.