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लाखों की लागत से बना रेशम केंद्र खंडहर में तब्दील, दशकों से बंद पड़ी है खेती

बिजावर विधानसभा क्षेत्र के गांव महुआझालाल में कई सालों से बंद पड़ा रेशम का केंद्र अब खंडहर में तब्दील हो चुका है, लेकिन जनप्रतिनिधियों ने अभी तक कोई सुध नहीं ली.

रेशम केंद्र दशकों से पड़ा बंद
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Published : Aug 5, 2019, 9:25 AM IST

छतरपुर। बिजावर मुख्यालय से कुछ ही दूरी पर गांव महुआझाला में बना रेशम केंद्र अब खंडहर में तब्दील हो गया है. यहां सरकार ने रेशम केंद्र के लिए 25 एकड़ जमीन उपलब्ध कराई थी, लेकिन जनप्रतिनिधियों और प्रशासन की सांठ-गांठ से जमीन को लीज पर दे दिया गया, लिहाजा रेशम का यह केंद्र बर्बादी की भेंट चढ़ गया.

रेशम केंद्र दशकों से पड़ा बंद
साल 1986 में सरकार ने रेशम केंद्र शुरू करने के लिए 25 एकड़ जमीन उपलब्ध कराई थी. इस पर रेशम केंद्र शुरू किया गया और यहां बेशकीमती रेशम के पौधे लगाए गए, लेकिन महज दो-तीन सालों तक रेशम केंद्र संचालित हुआ.

साल 1990 में इसे बंद कर दिया गया. इतना ही नहीं अभी तक किसी भी जिम्मेदार अधिकारी और नेता ने रेशम केंद्र को संचालित करने की कोशिश नहीं की. रेशम के कपड़ों की देश में ही नहीं विदेशों में भी मांग है, जिसे बेहद पसंद किया जाता है.

हैरानी की बात ये है कि रेशम उद्योग की शुरुआत करने के लिए लाखों रुपए की मशीनरी लगाई गई, लेकिन इनका आज कुछ पता ही नहीं है. हालांकि बिजावर उद्योग विहीन क्षेत्र है. रेशम उद्योग शुरुआती समय में स्थानीय लोगों के लिए रोजगार का साधन बन गया था.

छतरपुर। बिजावर मुख्यालय से कुछ ही दूरी पर गांव महुआझाला में बना रेशम केंद्र अब खंडहर में तब्दील हो गया है. यहां सरकार ने रेशम केंद्र के लिए 25 एकड़ जमीन उपलब्ध कराई थी, लेकिन जनप्रतिनिधियों और प्रशासन की सांठ-गांठ से जमीन को लीज पर दे दिया गया, लिहाजा रेशम का यह केंद्र बर्बादी की भेंट चढ़ गया.

रेशम केंद्र दशकों से पड़ा बंद
साल 1986 में सरकार ने रेशम केंद्र शुरू करने के लिए 25 एकड़ जमीन उपलब्ध कराई थी. इस पर रेशम केंद्र शुरू किया गया और यहां बेशकीमती रेशम के पौधे लगाए गए, लेकिन महज दो-तीन सालों तक रेशम केंद्र संचालित हुआ.

साल 1990 में इसे बंद कर दिया गया. इतना ही नहीं अभी तक किसी भी जिम्मेदार अधिकारी और नेता ने रेशम केंद्र को संचालित करने की कोशिश नहीं की. रेशम के कपड़ों की देश में ही नहीं विदेशों में भी मांग है, जिसे बेहद पसंद किया जाता है.

हैरानी की बात ये है कि रेशम उद्योग की शुरुआत करने के लिए लाखों रुपए की मशीनरी लगाई गई, लेकिन इनका आज कुछ पता ही नहीं है. हालांकि बिजावर उद्योग विहीन क्षेत्र है. रेशम उद्योग शुरुआती समय में स्थानीय लोगों के लिए रोजगार का साधन बन गया था.

Intro:स्पेशल --

बिजावर
रेशम कीट पालन का हुआ बिनाश,दशको से बंद पड़ी खेती,

बिजावर मुख्यालय से कुछ ही दूरी पर ग्राम महुआझाला में बना रेशम केंद्र अब खण्डहर में बदल गया,
यहाँ सरकार द्वारा 25 एकड़ जमीन रेशम केंद्र के लिए उपलब्ध कराई गई थी,और बर्ष 1986 में रेशम केंद्र का प्रारम्भ किया गया जहाँ वेश कीमती रेशम के पेड़ लगाए गए लाखो रुपये खर्च कर बिल्डिंग निर्माण की गई ,रेशम के कीटो का पालन किया गया,लेकिन महज दो- तीन बर्ष तक रेशम केंद्र काफी अच्छी हालत में सुचारू रूप से चलता रहा,फिर जनप्रतिनिधियों और अधिकारियों की उदासीनता के चलते सब कुछ बर्बादी की भेंट चढ़ गया,Body: रेशम केंद्र को बर्ष 1990 में इसे बंद कर अब तक किसी भी जिम्मेदार अधिकारी व नेता द्वारा इसे संचालित करने का प्रयास नही किये एवं रेशम केंद्र की जमीन को सांठ-गांठ कर निजी खेती के लिए लीच पर दे दिया गया,
रेशम के कपड़ो की देश मे ही नही विदेशो में भी मांग है जिसे बेहद पसंद किया जाता है रेशम के बस्त्रो को बस्त्रो की रानी कहा जाता है रेशम उद्योग की शुरुवात करने के लिए लाखों रुपये खर्च कर कच्चा रेशम निकालने के लिए उपयोगी मशीनरी का कोई अता-पता नही,
बैसे भी बिजावर उद्योग बिहीन क्षेत्र है रेशम एक बेशकीमती कपड़ा है रेशम उद्योग शुरुवाती समय में स्थानीय लोगो के लिए रोजगार का साधन बन गया था

Conclusion: प्रशासन और जनप्रतिनिधियों की सांठ-गांठ से जमीन के लालचियों को निजी खेती के लिए जमीन मुहैया करा दी गयी ,जिसमे कीट पालन बेरोजगार किसान अपना भविष्य देख रहे थे जो हो सकता था रेशम केंद्र आज बिजावर क्षेत्र की पहचान बन जाता,

रेशम कृषि पर आधारित कुटीर उद्योग है इसे बहुत सस्ती कीमत पर ग्रामीण क्षेत्रो में लगाया जा सकता है इसमे ग्रामीणों को इसमें अच्छा रोजगार मिल सकता है और यह खेती पर्यावरण संतुलन के लिए लाभदायक साबित होती है

बाईट-1- रामेश्वर प्रसाद चऊदा (बरिष्ठ नागरिक बिजावर)
बाईट-2 - अखिलेश उपाध्याय ( जनपद सी.ई.ओ बिजवार)
स्पेशल-
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